मेरे अरमानों को काश इतनी समझ हो 'वहशत',
कि वह उन आंखों से मुरव्वत का तकाजा न करें।
-'वहशत' कलकतवी
1.मुरव्वत - लिहाज, शील, संकोच, रिआयत 2. तकाजा - माँग
*****
लेदे के अपने पास फकत इक नजर तो है,
क्यों देखें जिन्दगी को, किसी की नजर से हम।
माना कि इस हमीं को न गुलजार कर सके,
कुछ खार कम तो कर गए गुजरे जिधर से हम।
1.गुलजार - (i) उद्यान, बाग (ii) वह स्थान जहाँ चहल-पहल और रौनक हो
*****
सफीना जब तेरे होते हुए भी डूब सकता है,
उठायें फिर तेरे एहसान क्यों ऐ नाखुदा कोई।
-फारिंग सीमाबी
1.सफीना - नाव, नौका 2.नाखुदा - मल्लाह, नाविक
*****
है अगर बेदर्दियाँ अपनों की दिल को नागवार,
नागवार उससे सिवा गैरों की हैं गमख्वारियाँ।
-ख्वाजा हाली
1.बेदर्दी - निर्दयता, बेरहमी 2.नागवार - जो पसन्द न हो,
जो अच्छी न लगे 3.सिवा - अधिक, जियादा
4. गमख्वारी - सहानुभूति, हमदर्दी, गमगुसारी
*****
न पूछो क्या गुजरती है, दिले-खुद्दार पर अक्सर,
किसी बेमेहर को जब मेहरबां कहना ही पड़ता है।
-जगन्नाथ आजाद
1.दिले-खुद्दार - स्वाभिमानी दिल
2. बेमेहर - (i) निष्ठुर, जिसमें ममता न हो (ii) निर्दयी, बेरहम
*****
परीशां हाल हैं लेकिन हमें है पासे-खुद्दारी,
हमारा सर किसी के आस्तां पर खम नहीं होता।
-शंकर जोधपुरी
1.पास - शील, संकोच, लिहाज 2.आस्तां -चौखट, दहलीज 3.खम - झुकना
*****
पेशे-अरबाबे-करम वह हाथ क्या फैलाता,
जिसको तिनके का भी एहसान गवारा न हुआ।
-साकिब लखनवी
1.पेशे-अरबाबे-करम - मेहरबानी या दया दिखाने वालों के सामने
*****
मुझको यह पासे-जब्त कि मुंह खोलना गुनाह,
उनकी यह आरजू कि इल्तिजा करे कोइ।
-हबीब अहमद सिद्दकी
1. पास - शील, संकोच, लिहाज 2. जब्त - सब्र
*****
जो नजर की इल्तिजा समझा नहीं,
हाथ उसके सामने फैलायें क्या?
-'शातिर' हाकिमी
1. इल्तिजा - प्रार्थना, दरख्वास्त
*****
तुझे यह नाज कि जन्नत की भीक मांगूगा,
मुझे यह जिद् कि तकाजा मेरा उसूल नहीं।
-मंजूर अहमद मंजूर
1.तकाजा - मांग, दिये हुए रूपये या वस्तु की मांग (ii) आवश्यकता, जरूरत (iii) किसी काम के लिए किसी से बराबर कहना
*****
दर्द मन्नतकशे-दवा न हुआ,
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ।
जम्अ करते हो क्यों रकीबों को,
इक तमाशा हुआ, गिला न हुआ।
-मिर्जा 'गालिब'
1.मन्नतकशे-दवा - दवा के लिए प्रार्थना या मिन्नत करना
2.रकीब- किसी स्त्री से प्रेम करने वाले दो व्यक्ति
परस्पर रकीब होते हैं, प्रतिद्वंद्वी
*****
दिल रहे या न रहे, जख्म भरें या न भरें,
चारासाजों की खुशामद मुझे पसंद नहीं।
-नातिक लखनवी
1.चारासाजों - चिकित्कों
*****
अलग हम सबसे रहते हैं मिसाले तारे - तंबूरा,
जरा छेड़े से मिलते हैं मिला ले जिसका जी चाहे।
1.मिसाले - सम्मान
*****
एक तुम हो कि वफा तुमसे न होगी, न हुई,
एक हम कि तकाजा न किया है, न करेंगे।
-हसरत मोहानी
1.वफा - मित्र के साथ तन,मन और धन से निबाहना,
वफादारी, निबाह, निर्वाह
2.तकाजा - माँग, किसी काम के लिए किसी से बराबर कहना
*****
खाली है मेरा सागर तो सही, साकी को इशारा कौन करे,
खुद्दारिये-साइल भी कुछ है, हर बार तकाजा कौन करे।
-आनन्द नारायण मुल्ला
1.सागर - शराब का पिलाया, पानपात्र 2. खुद्दारिये-साइल - (i) मांगने वाला, भिक्षुक (ii) प्रार्थी, दरख्वास्त करने वाला 3.तकाजा - माँग, दिए हुए रूपए या वस्तु की मांग, किसी काम के लिए किसी से बराबर कहना
*****
छोड़ दीजे मुझको मेरे हाल पर,
जो गुजरती है गुजर ही जायेगी।
-असर लखनवी
*****
Saturday, November 27, 2010
Thursday, November 25, 2010
Desh Ratna's Collection -- Sher-o-Shayari - कश्ती-और-तूफ़ान
अगर ऐ नाखुदा तूफान से लड़ने का दमखम है,
इधर कश्ती को मत लाना, इधर पानी बहुत कम है।
1.नाखुदा - मल्लाह, केवट, नाविक, कर्णधार
2. दमखम - शक्ति, हिम्मत, उत्साह, उमंग, हौसला
*****
उम्मीदी-नाउम्मेदी का वहम होना वही जाने,
कि जिसने कश्तियों को डूबते देखा हो साहिल पर।
साहिल-किनारा।
*****
कनारों से मुझे ऐ नाखुदा तुम दूर ही रखना,
तहाँ लेकर चलो तूफां जहाँ से उठने वाला है।
1. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, कर्णधार
*****
कश्ती को भंवर में घिरने दो, मौजों के थपेड़े सहने दे,
जिन्दों में अगर जीना है तुम्हें, तूफान की हलचल रहने दे।
-सागर
*****
कहा था सबने, डूबेगी यह कश्ती,
मगर हम जानकर बैठे उसी में।
-खलीक बीकानेरी
*****
किश्ती को तूफान से बचाना तो सहज है,
तूफान के वकार का दिल टूट जायेगा।
-नरेश कुमार 'शाद'
1.वकार - प्रतिष्ठा, इज्जत
*****
खेलना जब उनको तूफानों से आता ही न था,
फिर वो कश्ती के हमारे, नाखुदा क्यों हो गये।
-'अफसर' मेरठी
1. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, केवट, कर्णधार
*****
खोला है किसने अपने सफीने का बादबां,
तूफां सिमट गये हैं कनारों की गोद में।
1. सफीना - नाव, नौका, कश्ती
2.बादबां - पोतपट, मरूतपट, जहाज में
लगाया जाने वाला पर्दा, जिसमें हवा भरने से जहाज चलता है।
*****
जब कश्ती साबितो-सालिम थी, साहिल की तमन्ना किसको थी,
अब ऐसी शिकस्ता कश्ती पर, साहिल की तमन्ना कौन करे।
-मुइन अहसन 'जज्बी'
1. साबितो-सालिम - ठीकठाक 2. साहिल - किनारा, तट
3. शिकस्ता - टूटी हुई
*****
जरा थमे जो यह तूफां तो हो कुछ अन्दाजा,
कहाँ हूँ मैं कहाँ कश्ती, कहाँ किनारा है।
*****
तूफाँ बड़े गरूर से ललकारता रहा,
कश्ती बड़ी नियाज से जिद पर अड़ी रही।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1. नियाज - निष्ठा
*****
तूफाँ से खेलना अगर इन्सान सीख ले,
मौजों से आप उभरें, किनारे नये-नये।
-'असर' लखनवी
*****
तूफान कर रहा था मेरे अज्म का तवाफ,
दुनिया समझ रही थी कश्ती भंवर में है।
1.अज्म - संकल्प, साहस, दृढ़, निश्चय
2.तवाफ - परिक्रमा, चक्कर काटना
*****
तौहीने - जिन्दगी है कनारे की जुस्तजू,
मझदार में सफीना - ए - हस्ती उतार दे।
फिर देख की उसका रंग निखरता है किस तरह
दोशीजए - खिजां को खिताबे – बहार दे।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1.जुस्तजू - तलाश, खोज 2.हस्ती - जीवन नौका 3. दोशीजए-खिजां- पतझड़ रूपी युवती 4.खिताबे–बहार - बहार का नाम या बहार की संज्ञा
*****
धारे के मुआफिक बहना क्या, तौहीने-दस्तोबाजू है,
पर्रवर्दए-तूफाँ किश्ती को, धारे के मुखालिफ बहने दे।
सागर निजामी
1. मुआफिक - ओर 2. पर्रवर्दए-तूफाँ - तूफान में पले हुए या पली हुई
*****
पर्वर्द-ए-तूफां इन्सां को, कश्ती की नहीं हाजत,
मौजों के तलातुम में उनको, साहिल नजर आता है।
-जिगर मुरादाबादी
1.पर्वर्द-ए-तूफां - तूफान में पले हुए 2. हाजत - जरूरत, आवश्यकता
3. मौजों - लहरें 4. तलातुम - हलचल 5. साहिल - किनारा, तट
*****
भरोसा है खुदी पर, नाखुदा की इल्तिजाकैसी,
मेरी कश्ती ही साहिल है, मेरी कश्ती में साहिल है।
-दाग
1.खुदी - स्वयं 2. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, कर्णधार
3. इल्तिजा - प्रार्थना, दरखास्त 4. साहिल - किनारा, तट
*****
मझदार में जब कश्ती पहूँची, कश्ती वालों पै क्या गुजरी,
यह तूफानों की बातें हैं, आसूदा-ए-साहिल क्या जाने।
-जगन्नाथ आजाद
1. आसूदा-ए-साहिल - किनारे पर रहकर संतोष करने वाले
*****
यूँ ही डूबोता रहा अगर किश्तियाँ सैलाब,
तो सतहे-आब पै चलना भी आ ही जायेगा।
1. सैलाब - बाढ़ 2. सतहे-आब - पानी की सतह
*****
मरने की दुआयें क्यों माँगू जीने की तमन्ना कौन करे,
ये दुनिया या वो दुनिया अब ख्वाहिशे-दुनिया कौन करे?
जब कश्ती साबितो-सालिम थी, साहिल की तमन्ना किसको थी,
अब ऐसी शिकस्ता कश्ती पर, साहिल की तमन्ना कौन करें?
-मुईन अहसन जज्बी
1.साबितो-सालिम - ठीकठाक, सही हालत में
2.साहिल - किनारा, तट 3.शिकस्ता - टूटी हुई
*****
मैंने यूं कश्ती का रूख सू-ए-तूफां कर दिया,
साजगारे-दिल हवा-ए-दामने-साहिल न था।
-'अलम' मुजफ्फरनगरी
1.सू-ए-तूफां - तूफान की ओर 2. साजगारे-दिल - दिल के मुआफिक या अनुकूल, जो बात दिल को पसंद आ जाए
3. हवा-ए-दामने-साहिल - साहिल के आँचल की हवा
*****
इधर कश्ती को मत लाना, इधर पानी बहुत कम है।
1.नाखुदा - मल्लाह, केवट, नाविक, कर्णधार
2. दमखम - शक्ति, हिम्मत, उत्साह, उमंग, हौसला
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उम्मीदी-नाउम्मेदी का वहम होना वही जाने,
कि जिसने कश्तियों को डूबते देखा हो साहिल पर।
साहिल-किनारा।
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कनारों से मुझे ऐ नाखुदा तुम दूर ही रखना,
तहाँ लेकर चलो तूफां जहाँ से उठने वाला है।
1. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, कर्णधार
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कश्ती को भंवर में घिरने दो, मौजों के थपेड़े सहने दे,
जिन्दों में अगर जीना है तुम्हें, तूफान की हलचल रहने दे।
-सागर
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कहा था सबने, डूबेगी यह कश्ती,
मगर हम जानकर बैठे उसी में।
-खलीक बीकानेरी
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किश्ती को तूफान से बचाना तो सहज है,
तूफान के वकार का दिल टूट जायेगा।
-नरेश कुमार 'शाद'
1.वकार - प्रतिष्ठा, इज्जत
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खेलना जब उनको तूफानों से आता ही न था,
फिर वो कश्ती के हमारे, नाखुदा क्यों हो गये।
-'अफसर' मेरठी
1. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, केवट, कर्णधार
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खोला है किसने अपने सफीने का बादबां,
तूफां सिमट गये हैं कनारों की गोद में।
1. सफीना - नाव, नौका, कश्ती
2.बादबां - पोतपट, मरूतपट, जहाज में
लगाया जाने वाला पर्दा, जिसमें हवा भरने से जहाज चलता है।
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जब कश्ती साबितो-सालिम थी, साहिल की तमन्ना किसको थी,
अब ऐसी शिकस्ता कश्ती पर, साहिल की तमन्ना कौन करे।
-मुइन अहसन 'जज्बी'
1. साबितो-सालिम - ठीकठाक 2. साहिल - किनारा, तट
3. शिकस्ता - टूटी हुई
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जरा थमे जो यह तूफां तो हो कुछ अन्दाजा,
कहाँ हूँ मैं कहाँ कश्ती, कहाँ किनारा है।
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तूफाँ बड़े गरूर से ललकारता रहा,
कश्ती बड़ी नियाज से जिद पर अड़ी रही।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1. नियाज - निष्ठा
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तूफाँ से खेलना अगर इन्सान सीख ले,
मौजों से आप उभरें, किनारे नये-नये।
-'असर' लखनवी
*****
तूफान कर रहा था मेरे अज्म का तवाफ,
दुनिया समझ रही थी कश्ती भंवर में है।
1.अज्म - संकल्प, साहस, दृढ़, निश्चय
2.तवाफ - परिक्रमा, चक्कर काटना
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तौहीने - जिन्दगी है कनारे की जुस्तजू,
मझदार में सफीना - ए - हस्ती उतार दे।
फिर देख की उसका रंग निखरता है किस तरह
दोशीजए - खिजां को खिताबे – बहार दे।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1.जुस्तजू - तलाश, खोज 2.हस्ती - जीवन नौका 3. दोशीजए-खिजां- पतझड़ रूपी युवती 4.खिताबे–बहार - बहार का नाम या बहार की संज्ञा
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धारे के मुआफिक बहना क्या, तौहीने-दस्तोबाजू है,
पर्रवर्दए-तूफाँ किश्ती को, धारे के मुखालिफ बहने दे।
सागर निजामी
1. मुआफिक - ओर 2. पर्रवर्दए-तूफाँ - तूफान में पले हुए या पली हुई
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पर्वर्द-ए-तूफां इन्सां को, कश्ती की नहीं हाजत,
मौजों के तलातुम में उनको, साहिल नजर आता है।
-जिगर मुरादाबादी
1.पर्वर्द-ए-तूफां - तूफान में पले हुए 2. हाजत - जरूरत, आवश्यकता
3. मौजों - लहरें 4. तलातुम - हलचल 5. साहिल - किनारा, तट
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भरोसा है खुदी पर, नाखुदा की इल्तिजाकैसी,
मेरी कश्ती ही साहिल है, मेरी कश्ती में साहिल है।
-दाग
1.खुदी - स्वयं 2. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, कर्णधार
3. इल्तिजा - प्रार्थना, दरखास्त 4. साहिल - किनारा, तट
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मझदार में जब कश्ती पहूँची, कश्ती वालों पै क्या गुजरी,
यह तूफानों की बातें हैं, आसूदा-ए-साहिल क्या जाने।
-जगन्नाथ आजाद
1. आसूदा-ए-साहिल - किनारे पर रहकर संतोष करने वाले
*****
यूँ ही डूबोता रहा अगर किश्तियाँ सैलाब,
तो सतहे-आब पै चलना भी आ ही जायेगा।
1. सैलाब - बाढ़ 2. सतहे-आब - पानी की सतह
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मरने की दुआयें क्यों माँगू जीने की तमन्ना कौन करे,
ये दुनिया या वो दुनिया अब ख्वाहिशे-दुनिया कौन करे?
जब कश्ती साबितो-सालिम थी, साहिल की तमन्ना किसको थी,
अब ऐसी शिकस्ता कश्ती पर, साहिल की तमन्ना कौन करें?
-मुईन अहसन जज्बी
1.साबितो-सालिम - ठीकठाक, सही हालत में
2.साहिल - किनारा, तट 3.शिकस्ता - टूटी हुई
*****
मैंने यूं कश्ती का रूख सू-ए-तूफां कर दिया,
साजगारे-दिल हवा-ए-दामने-साहिल न था।
-'अलम' मुजफ्फरनगरी
1.सू-ए-तूफां - तूफान की ओर 2. साजगारे-दिल - दिल के मुआफिक या अनुकूल, जो बात दिल को पसंद आ जाए
3. हवा-ए-दामने-साहिल - साहिल के आँचल की हवा
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Desh Ratna's Collection -- Sher-o-Shayari - जिंदादिली
अगर खो गया इक निशेमन तो क्या गम,
मुकामाते - आहो - फुगाँ और भी है।
कनाअत न कर आलमे-रंगो - बू पर,
चमन और भी आशियाँ और भी हैं।
तू शाही है परवाज है काम तेरा,
तेरे सामने आसमाँ और भी है।
-मोहम्मद इकबाल
1.निशेमन - आशियाना, घोंसला, नीड़
2. मुकामात - (i) स्थान, जगह (ii) पड़ाव, मंजिल (iii) प्रतिष्ठा, इज्जत
3. फुगाँ - आर्तनाद, फरियाद, नाला 4. कनाअत - पर्दा
5. आलमे-रंगो - बू - रंग और खुशबू की दुनिया (यानी दुनिया की रंगीनियाँ)
6. शाही - बाज पक्षी, श्येन 7.परवाज - उड़ान, उड़ना
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अगर छुट गये कारवाँ से तो क्या गम,
कभी शामिले - कारवाँ भी रहे हैं।
-मुजीब
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अच्छा है दिल के पास रहे पासबाने-अक्ल,
लेकिन कभी-कभी इसे तन्हा भी छोड़ दें।
-मोहम्मद इकबाल
1. पासबाने - द्वारपाल, प्रहरी
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अपनी तबाहियों का मुझे कोई गम नहीं,
तुमने किसी के साथ मुहब्बत निभा तो दी।
-साहिर लुधियानवी
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अभी आस टूटी नहीं है खुशी की,
अभी गम उठाने को जी चाहता है।
तबस्सुम हो जिसमें निहाँ जिन्दगी का,
वह आंसू बहाने को जी चाहता है।
-'अदीब' मालीगाँवी
1.तबस्सुम - मुस्कान, मुस्कुराहट 2.निहाँ - छुपा हुआ।
असीरों के हक में यही फैसला है,
कफस को समझते रहें आशियाना।
-दिल शाहजहांपुरी
1.असीर - बंदी, कैदी 2.कफस - पिंजड़ा, कैद
3. आशियाना - घोंसला, नीड़
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आज तारीकिए-माहौल से दम घुटता है,
कल खुदा चाहेगा 'तालिब' तो सहर भी होगी।
-तालिब देहलवी
1.तारीकी- अंधकार, अंधेरा, धुंधलापन 2. सहर - सुबह, सबेरा
*****
आता है जज्बे-दिल को यह अंदाजे-मैकशी,
रिन्दों में रिन्द भी रहें,दामन भी तर न हो।
-जोश मल्सियानी
1.जज्बे-दिल - दिल की कशिश 2. अंदाजे-मैकशी - शराब पीने का अंदाज 3.रिन्द - शराबी
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आदमी को सिर्फ वहम है, पास उसके ही इतना गम है,
पूछो हंसते हुए चेहरों से, आंख भीतर से कितनी नम है।
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इक तबस्सुम हजार शिकवों का,
कितना प्यारा जवाब होता है।
1.तबस्सुम - मुस्कान, मुस्कुराहट
*****
इक न इक जुल्मत से जब वाबस्ता रहना है 'जोश',
जिन्दगी पर साया - ए -जुल्फे-परीशाँ क्यों न हो।
-जोश मलीहाबादी
1.जुल्मत - अंधियारा, अंधेरा, अंधकार, तिमिर 2. वाबस्ता - जुड़ा रहना 3. साया-ए-जुल्फे-परीशाँ - बिखरी जुल्फों का साया
*****
इक नई बुनियाद डालेंगे तजस्सुम की 'शफा',
हर गुबारे-कारवाँ में कारवाँ ढूंढ़ेंगे हम।
-शफा ग्वालियरी
1.तजस्सुम - खोज, तलाश 2. गुबार - धूल, रज, गर्द।
*****
इन बेनियाजियों पै दिल है रहीने-शौक,
क्या जाने इसको क्या हो, जो परवा करे कोई।
-त्रिलोकचन्द महरूम
1.बेनियाजी- उपेक्षा, अनदेखी, बेरूखी
2. रहीने-शौक - उत्साहित, लालायित
*****
इन्हीं गम की घटाओं से खुशी का चाँद निकलेगा,
अंधेरी रात के पर्दों में दिन की रौशनी भी है।
*****
इन्हीं जर्रों से कल होंगे नये कुछ कारवाँ पैदा,
जो जर्रे आज उड़ते हैं गुबारे-कारवाँ होकर।
-'शफक' टौंकी
*****
इशरतकदे को खाना-ए-वीरां बनायेंगे,
छोटे से अपने घर को बियाबाँ बनायेंगे।
-मिर्जा गालिब
1. इशरतकदा - आनन्द महल, रंगभवन
, रंगशाला, रंगमहल 2. खाना-ए-वीरां - वीरान घर
3. बियाबाँ - जंगल, कानन
*****
इशरते-सोहबते-खूबाँ ही गनीमत समझो,
न हुई 'गालिब' अगर उम्रे-तबीई न सही।
-मिर्जा गालिब
1. इशरते-सोहबते-खूबाँ - हसीनों की सोहबत का आनन्द
2.तबीई - प्राकृतिक
*****
उजाला तो हुआ कुछ देर को सहने-गुलिस्ताँ में,
बला से फूँक डाला बिजलियों ने आशियाँ मेरा।
-मिर्जा गालिब
1.सहन - आँगन
*****
उनको देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वह समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को 'गालिब' ये ख्यालअच्छा है।
-मिर्जा गालिब
*****
उनपै हँसिये शौक से जो माइले-फरियाद है,
उनसे डरिये जो सितम पर मुस्कुराकर रह गये।
-'असर' लखनवी
1.माइल - आसक्त, आशिक, प्रवृत्त, झुकाव रखने वाला आमादा
2. फरियाद - (i) सहायता के लिए पुकार, दुहाई (ii) शिकायत, परिवाद
(iii) आर्तनाद, दुख की आवाज (iv) नालिश, न्याय याचना।
3. सितम - जुल्म, अत्याचार
*****
उम्र भर रेंगते रहने से तो बेहतर है,
एक लमहा जो तेरी रूह में वुसअत भर दे।
-'साहिर' लुधियानवी
1.वुसअत - (i) शक्ति, ताकत, सामर्थ्य (ii) उदारता (iii) विस्तार
*****
उम्र फानी है तो फिर मौत से क्या डरना,
इक न इक रोज यह हंगामा हुआ रखा है।
-मिर्जा 'गालिब'
1.फानी - नश्वर, नाशवान, मिट जाने वाला, न रहने वाला।
*****
उस अश्क की तासीर से अल्लाह बचाये,
जो अश्क आंखों में रहे और न बरसे।
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एक हंगामे पै मौकूफ है घर की रौनक,
नौहा-ए-गम ही सही, नग्मा-ए-शादी न सही।
-मिर्जा गालिब
1.मौकूफ - आधारित, निर्भर 2. नौहा-ए-गम - गमी का शोक, गमी में रोना-पीटना। 3. शादी - (i) हर्ष, आनन्द (ii) विवाह, व्याह
*****
एक हँसती हुई परेशानी,
वाह क्या जिन्दगी हमारी है।
*****
एक लमहा भी मसर्रत का बहुत होता है,
लोग जीने का सलीका ही कहाँ रखते हैं।
1. मसर्रत - आनन्द, हर्ष, खुशी
*****
एहतिरामे-खिजाँ करो यारों,
यह नवेदे-बहार होती है।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1.एहतिरामे-खिजाँ - पतझड़ ऋतु का स्वागत 2. नवेदे-बहार - बहार के आने की शुभ सूचना, बहार के आगमन की खुशखबरी
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ऐ गमे-दुनिया न हो नाराज,
मुझको आदत है मुस्कुराने की।
-अब्दुल हमीद अदम
*****
ऐ शम्अ तेरी उम्र तवाई है एक रात,
रोकर गुजारा दे इसे, या हँसकर गुजार दे।
-अब्राहम जौक
1. तवाई - तवील, लंबी
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ऐ दिल जो हो सके तो लुत्फे-गम उठा ले,
तन्हाइयों में रो ले, महफिल में मुस्कुरा ले।
जिस दिन यह हाथ फैले अहले-करम के आगे,
ऐ काश उसके पहले हमको खुदा उठा ले।
-'शमीम' जयपुरी
1. अहले-करम - मेहरबानी करने वाले
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ऐ मौत आ के हमको खामोश तो कर गई तू,
मगर सदियों दिलों के अंदर, हम गूंजते रहेंगे।
-फिराक गोरखपुरी
*****
ऐसा लगता है, हर इम्तिहाँ के लिए,
किसी ने जिन्दगी को हमारा पता दे दिया है।
*****
कट गई यह बहरे-गमे मौजों से हँसते-खेलते,
बहते-बहते देख आखिर आ लगे साहिल से हम।
- फिराक गोरखपुरी
1.बहरे-गमे - गमों का सागर
2. मौज - लहर, तरंग 3. साहिल - तट, किनारा
*****
कफस में खींच ले जाये मुकद्दर या नशेमन में,
हमें परवाजे-मतलब है, हवा कोई भी चलती हो।
-सीमाब अकबराबादी
1.नशेमन - आशियाना, घोंसला, नीड़ 2. परवाज - उड़ान
*****
कभी शाखे-सब्जा-ओ- बर्ग पर, कभी गुंचा-ओ-गुलो -खार पर,
मैं चमन में चाहे जहाँ रहूँ, मुझे हक है फस्ले - बहार पर।
-जिगर मुरादाबादी
1.शाखे-सब्जा - हरियाली से भरी टहनी 2. बर्ग -पत्ता, पत्ती 3.गुंचा - कली 4.फस्ले - बहार - बसन्त ऋतु, बहार का मौसम
*****
कर्ज की पीते थे मय, लेकिन समझते थे कि हाँ,
रंग लायेगी हमारी फाकामस्ती एक दिन।
-मिर्जा गालिब
1.मय - शराब, मदिरा
2. फाकामस्ती - फाकों (निराहार, उपवास, अनशन) में बसर करना।
*****
कल जो अपने थे अब पराये हे, क्या सितम आसमाँ ने ढाये है,
दिल दुखा होंठ मुस्कराये है, हमने ऐसे भी गम उठाये हैं।
-'बेताब' अलीपुरी
*****
कहाँ दूर हट के जायें, हम दिल की सरजमीं से,
दोनों जहां की सैरें, हासिल है सब यहीं से।
-जिगर मुरादाबादी
1.सरजमीं - (i) पृथ्वी, जमीन (ii) देश, मुल्क
*****
कांटों से घिरा रहता है चारों तरफ से फूल,
फिर भी खिला ही रहता है, क्या खुशमजाज है।
*****
कारगाहे-हयात में ऐ दोस्त यह हकीकत मुझे नजर आई,
हर उजाले में तीरगी देखी, हर अंधेरे में रौशनी पाई।
-जिगर मुरादाबादी
1.कारगाह - कार्यालय, काम करने का स्थान 2. हयात - जिन्दगी 3.तीरगी - अंधेरा, अंधकार
*****
मुकामाते - आहो - फुगाँ और भी है।
कनाअत न कर आलमे-रंगो - बू पर,
चमन और भी आशियाँ और भी हैं।
तू शाही है परवाज है काम तेरा,
तेरे सामने आसमाँ और भी है।
-मोहम्मद इकबाल
1.निशेमन - आशियाना, घोंसला, नीड़
2. मुकामात - (i) स्थान, जगह (ii) पड़ाव, मंजिल (iii) प्रतिष्ठा, इज्जत
3. फुगाँ - आर्तनाद, फरियाद, नाला 4. कनाअत - पर्दा
5. आलमे-रंगो - बू - रंग और खुशबू की दुनिया (यानी दुनिया की रंगीनियाँ)
6. शाही - बाज पक्षी, श्येन 7.परवाज - उड़ान, उड़ना
*****
अगर छुट गये कारवाँ से तो क्या गम,
कभी शामिले - कारवाँ भी रहे हैं।
-मुजीब
*****
अच्छा है दिल के पास रहे पासबाने-अक्ल,
लेकिन कभी-कभी इसे तन्हा भी छोड़ दें।
-मोहम्मद इकबाल
1. पासबाने - द्वारपाल, प्रहरी
*****
अपनी तबाहियों का मुझे कोई गम नहीं,
तुमने किसी के साथ मुहब्बत निभा तो दी।
-साहिर लुधियानवी
*****
अभी आस टूटी नहीं है खुशी की,
अभी गम उठाने को जी चाहता है।
तबस्सुम हो जिसमें निहाँ जिन्दगी का,
वह आंसू बहाने को जी चाहता है।
-'अदीब' मालीगाँवी
1.तबस्सुम - मुस्कान, मुस्कुराहट 2.निहाँ - छुपा हुआ।
असीरों के हक में यही फैसला है,
कफस को समझते रहें आशियाना।
-दिल शाहजहांपुरी
1.असीर - बंदी, कैदी 2.कफस - पिंजड़ा, कैद
3. आशियाना - घोंसला, नीड़
*****
आज तारीकिए-माहौल से दम घुटता है,
कल खुदा चाहेगा 'तालिब' तो सहर भी होगी।
-तालिब देहलवी
1.तारीकी- अंधकार, अंधेरा, धुंधलापन 2. सहर - सुबह, सबेरा
*****
आता है जज्बे-दिल को यह अंदाजे-मैकशी,
रिन्दों में रिन्द भी रहें,दामन भी तर न हो।
-जोश मल्सियानी
1.जज्बे-दिल - दिल की कशिश 2. अंदाजे-मैकशी - शराब पीने का अंदाज 3.रिन्द - शराबी
*****
आदमी को सिर्फ वहम है, पास उसके ही इतना गम है,
पूछो हंसते हुए चेहरों से, आंख भीतर से कितनी नम है।
*****
इक तबस्सुम हजार शिकवों का,
कितना प्यारा जवाब होता है।
1.तबस्सुम - मुस्कान, मुस्कुराहट
*****
इक न इक जुल्मत से जब वाबस्ता रहना है 'जोश',
जिन्दगी पर साया - ए -जुल्फे-परीशाँ क्यों न हो।
-जोश मलीहाबादी
1.जुल्मत - अंधियारा, अंधेरा, अंधकार, तिमिर 2. वाबस्ता - जुड़ा रहना 3. साया-ए-जुल्फे-परीशाँ - बिखरी जुल्फों का साया
*****
इक नई बुनियाद डालेंगे तजस्सुम की 'शफा',
हर गुबारे-कारवाँ में कारवाँ ढूंढ़ेंगे हम।
-शफा ग्वालियरी
1.तजस्सुम - खोज, तलाश 2. गुबार - धूल, रज, गर्द।
*****
इन बेनियाजियों पै दिल है रहीने-शौक,
क्या जाने इसको क्या हो, जो परवा करे कोई।
-त्रिलोकचन्द महरूम
1.बेनियाजी- उपेक्षा, अनदेखी, बेरूखी
2. रहीने-शौक - उत्साहित, लालायित
*****
इन्हीं गम की घटाओं से खुशी का चाँद निकलेगा,
अंधेरी रात के पर्दों में दिन की रौशनी भी है।
*****
इन्हीं जर्रों से कल होंगे नये कुछ कारवाँ पैदा,
जो जर्रे आज उड़ते हैं गुबारे-कारवाँ होकर।
-'शफक' टौंकी
*****
इशरतकदे को खाना-ए-वीरां बनायेंगे,
छोटे से अपने घर को बियाबाँ बनायेंगे।
-मिर्जा गालिब
1. इशरतकदा - आनन्द महल, रंगभवन
, रंगशाला, रंगमहल 2. खाना-ए-वीरां - वीरान घर
3. बियाबाँ - जंगल, कानन
*****
इशरते-सोहबते-खूबाँ ही गनीमत समझो,
न हुई 'गालिब' अगर उम्रे-तबीई न सही।
-मिर्जा गालिब
1. इशरते-सोहबते-खूबाँ - हसीनों की सोहबत का आनन्द
2.तबीई - प्राकृतिक
*****
उजाला तो हुआ कुछ देर को सहने-गुलिस्ताँ में,
बला से फूँक डाला बिजलियों ने आशियाँ मेरा।
-मिर्जा गालिब
1.सहन - आँगन
*****
उनको देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वह समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को 'गालिब' ये ख्यालअच्छा है।
-मिर्जा गालिब
*****
उनपै हँसिये शौक से जो माइले-फरियाद है,
उनसे डरिये जो सितम पर मुस्कुराकर रह गये।
-'असर' लखनवी
1.माइल - आसक्त, आशिक, प्रवृत्त, झुकाव रखने वाला आमादा
2. फरियाद - (i) सहायता के लिए पुकार, दुहाई (ii) शिकायत, परिवाद
(iii) आर्तनाद, दुख की आवाज (iv) नालिश, न्याय याचना।
3. सितम - जुल्म, अत्याचार
*****
उम्र भर रेंगते रहने से तो बेहतर है,
एक लमहा जो तेरी रूह में वुसअत भर दे।
-'साहिर' लुधियानवी
1.वुसअत - (i) शक्ति, ताकत, सामर्थ्य (ii) उदारता (iii) विस्तार
*****
उम्र फानी है तो फिर मौत से क्या डरना,
इक न इक रोज यह हंगामा हुआ रखा है।
-मिर्जा 'गालिब'
1.फानी - नश्वर, नाशवान, मिट जाने वाला, न रहने वाला।
*****
उस अश्क की तासीर से अल्लाह बचाये,
जो अश्क आंखों में रहे और न बरसे।
*****
एक हंगामे पै मौकूफ है घर की रौनक,
नौहा-ए-गम ही सही, नग्मा-ए-शादी न सही।
-मिर्जा गालिब
1.मौकूफ - आधारित, निर्भर 2. नौहा-ए-गम - गमी का शोक, गमी में रोना-पीटना। 3. शादी - (i) हर्ष, आनन्द (ii) विवाह, व्याह
*****
एक हँसती हुई परेशानी,
वाह क्या जिन्दगी हमारी है।
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एक लमहा भी मसर्रत का बहुत होता है,
लोग जीने का सलीका ही कहाँ रखते हैं।
1. मसर्रत - आनन्द, हर्ष, खुशी
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एहतिरामे-खिजाँ करो यारों,
यह नवेदे-बहार होती है।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1.एहतिरामे-खिजाँ - पतझड़ ऋतु का स्वागत 2. नवेदे-बहार - बहार के आने की शुभ सूचना, बहार के आगमन की खुशखबरी
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ऐ गमे-दुनिया न हो नाराज,
मुझको आदत है मुस्कुराने की।
-अब्दुल हमीद अदम
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ऐ शम्अ तेरी उम्र तवाई है एक रात,
रोकर गुजारा दे इसे, या हँसकर गुजार दे।
-अब्राहम जौक
1. तवाई - तवील, लंबी
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ऐ दिल जो हो सके तो लुत्फे-गम उठा ले,
तन्हाइयों में रो ले, महफिल में मुस्कुरा ले।
जिस दिन यह हाथ फैले अहले-करम के आगे,
ऐ काश उसके पहले हमको खुदा उठा ले।
-'शमीम' जयपुरी
1. अहले-करम - मेहरबानी करने वाले
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ऐ मौत आ के हमको खामोश तो कर गई तू,
मगर सदियों दिलों के अंदर, हम गूंजते रहेंगे।
-फिराक गोरखपुरी
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ऐसा लगता है, हर इम्तिहाँ के लिए,
किसी ने जिन्दगी को हमारा पता दे दिया है।
*****
कट गई यह बहरे-गमे मौजों से हँसते-खेलते,
बहते-बहते देख आखिर आ लगे साहिल से हम।
- फिराक गोरखपुरी
1.बहरे-गमे - गमों का सागर
2. मौज - लहर, तरंग 3. साहिल - तट, किनारा
*****
कफस में खींच ले जाये मुकद्दर या नशेमन में,
हमें परवाजे-मतलब है, हवा कोई भी चलती हो।
-सीमाब अकबराबादी
1.नशेमन - आशियाना, घोंसला, नीड़ 2. परवाज - उड़ान
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कभी शाखे-सब्जा-ओ- बर्ग पर, कभी गुंचा-ओ-गुलो -खार पर,
मैं चमन में चाहे जहाँ रहूँ, मुझे हक है फस्ले - बहार पर।
-जिगर मुरादाबादी
1.शाखे-सब्जा - हरियाली से भरी टहनी 2. बर्ग -पत्ता, पत्ती 3.गुंचा - कली 4.फस्ले - बहार - बसन्त ऋतु, बहार का मौसम
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कर्ज की पीते थे मय, लेकिन समझते थे कि हाँ,
रंग लायेगी हमारी फाकामस्ती एक दिन।
-मिर्जा गालिब
1.मय - शराब, मदिरा
2. फाकामस्ती - फाकों (निराहार, उपवास, अनशन) में बसर करना।
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कल जो अपने थे अब पराये हे, क्या सितम आसमाँ ने ढाये है,
दिल दुखा होंठ मुस्कराये है, हमने ऐसे भी गम उठाये हैं।
-'बेताब' अलीपुरी
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कहाँ दूर हट के जायें, हम दिल की सरजमीं से,
दोनों जहां की सैरें, हासिल है सब यहीं से।
-जिगर मुरादाबादी
1.सरजमीं - (i) पृथ्वी, जमीन (ii) देश, मुल्क
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कांटों से घिरा रहता है चारों तरफ से फूल,
फिर भी खिला ही रहता है, क्या खुशमजाज है।
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कारगाहे-हयात में ऐ दोस्त यह हकीकत मुझे नजर आई,
हर उजाले में तीरगी देखी, हर अंधेरे में रौशनी पाई।
-जिगर मुरादाबादी
1.कारगाह - कार्यालय, काम करने का स्थान 2. हयात - जिन्दगी 3.तीरगी - अंधेरा, अंधकार
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Desh Ratna's Collection - Sher - नक़ाब
तेरे और उसके दरमियाँ, तेरी खुदी हिजाब है,
अपना निशान खोयेजा, उसका निशान पायेजा।
-अख्तर शीरानी
1.खुदी - अहंकार, घमंड, अहंभाव, यह भाव कि बस हमीं हम हैं,अभिमान 2.हिजाब - पर्दा
*****
नहीं है राज कोई राज दीदावर के लिये,
नकाब पर्दा नहीं शौक की नजर के लिये।
-आर्श मल्सियानी
1.दीदावर - जोहरी, पारखी, किसी चींज के गुण-दोष को
अच्छी तरह समझने वाला
*****
हिजाबे-जलवा की अहले-नजर परवा नहीं करते,
वह तो पर्दों में भी उनका रू-ए-जेबा देख लेते हैं।
-जोश मल्सियानी
1.हिजाबे-जलवा - बनाव-सिंगार पर घूँघट डालना
2. अहले-नजर - नजर वाले 3.रू-ए-जेबा - सुन्दर मुखड़ा या चेहरा
*****
जलवे की रोकथाम करेगा हिजाब क्या,
दरिया के आगे आबे-रवाँ की बिसात क्या?
-हसन बरेलवी
1.हिजाब - (i) आड़, पर्दा, ओट (ii) मुखावरण, बुर्का, पर्दा
2.आबे-रवाँ - तेजी से बहता पानी 3.बिसात - साहस, हिम्मत, सामर्थ्य
*****
नकाबे-रूख उलटने तक तो मुझको होश था लेकिन,
भरी महफिल मं उसके बाद क्या गुजरी खुदा जाने।
-सईद अहमद खां
1. नकाबे-रूख - मुखावरण ,मुखपट, पर्दा
*****
मुझको यह आरजू है वह उठाएं नकाब खुद,
उनकी यह इल्तिजा तकाजा करे कोई।
-मजाज
1.नकाब - घूँघट, मुखावरण, मुखपट 2.इल्तिजा - प्रार्थना, दरखास्त
3.तकाजा - माँग, फर्माइश
*****
वह बेनकाब कहीं बेनकाब होता है,
कि आफताब खुद अपना हिजाब होता है।
-'नातिक' लखनवी
1.आफताब - सूरज, सूर्य 2.हिजाब - (i) आड़, पर्दा, ओट (ii) लाज, शर्म
*****
हया बेहोश होकर गिर रही है,
किसी की बेहिजाबी तौबा-तौबा।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1.हया - लज्जा, शर्म, व्रीड़ा 2.बेहिजाबी - घूँघट उठाना
3. तौबा-तौबा - किसी बुरे काम से बाज रहने की दृढ़ प्रतिज्ञा
*****
है देखने वालों को संभलने का इशारा,
थोड़ी-सी नकाब वह सरकाये हुए हैं।
-अर्श मल्सियानी
1. नकाब - घूँघट, मुखावरण, पर्दा, बुर्का
*****
यह शर्मगीं निगाह,यह तबस्सुम निकाब में,
क्या बेहिजबियाँ है, तुम्हारे हिजाब में।
-जकी
1.शर्मगीं - शर्म से झुकी हुई
2.तबस्सुम - मुस्कान, मुस्कराहट, स्मित, मंदहास
3.निकाब - (i) घूँघट, मुखावरण, मुखापट (ii) ओट, आड़
4.बेहिजबियाँ - घूँघट हटा देना 5. हिजाब - आड़, पर्दा, ओट
*****
नकाब कहती है मैं पर्दा-ए-कयामत हूँ,
अगर यकीं न हो तो देख लो उठा के मुझे।
-'जलील' मानिकपुरी
1.नकाब - मुखवरण, मुखपट, पर्दा, बुर्का
*****
नकाब उनके चेहरे का सरका है शायद,
बड़ी दूर तक बर्क लहरा नहीं है।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1.बर्क - बिजली, सौदामिनी, , तड़ित, चंचला
*****
फैला है हुस्ने-आरिजे-रौशन नकाब में,
क्या-क्या तड़प रही है तजल्ली हिजाब में।
-साकिब लखनवी
1.हुस्ने-आरिजे-रौशन - उज्जवल गाल का सौन्दर्य 2. नकाब - घूँघट, मुखावरण, मुखपट, बुर्का 3.तजल्ली - प्रकाश, आभा, नूर
*****
बताइए रहेगी शम्अ किस तरह हिजाब में,
यह क्या समझ के हुस्न को छुपाया है निकाब में।
-'साकिब' लखनवी
1.हिजाब - (i)आड़, पर्दा, ओट (ii) लज्जा , लाज, शर्म
2. निकाब - मुखावरण, मुखपट, बुर्का, घूँघट, ओट, आड़
*****
उठा सके आदमी तो पहले नजर से अपनी नकाब उठाए,
जमाने भर की तजल्लियों से नकाब उल्टी हुई मिलेगी।
-नवाब झांसवी
1.नकाब - पर्दा, घूँघट, ओट, आड़ 2.तजल्लियों - (i) आभा, प्रकाश, नूर, रौशनी (ii) प्रताप, जलाल (iii) अध्यात्मज्योति, नूरे-हक
*****
एक से लगते हैं सब ही कौन अपना, कौन गैर,
बेनकाब आये कोई तो, हम दरे -दिल वा करें।
-खलील
1.दरे–दिल - दिल का दरवाजा 2. वा - खोलना
*****
अपना निशान खोयेजा, उसका निशान पायेजा।
-अख्तर शीरानी
1.खुदी - अहंकार, घमंड, अहंभाव, यह भाव कि बस हमीं हम हैं,अभिमान 2.हिजाब - पर्दा
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नहीं है राज कोई राज दीदावर के लिये,
नकाब पर्दा नहीं शौक की नजर के लिये।
-आर्श मल्सियानी
1.दीदावर - जोहरी, पारखी, किसी चींज के गुण-दोष को
अच्छी तरह समझने वाला
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हिजाबे-जलवा की अहले-नजर परवा नहीं करते,
वह तो पर्दों में भी उनका रू-ए-जेबा देख लेते हैं।
-जोश मल्सियानी
1.हिजाबे-जलवा - बनाव-सिंगार पर घूँघट डालना
2. अहले-नजर - नजर वाले 3.रू-ए-जेबा - सुन्दर मुखड़ा या चेहरा
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जलवे की रोकथाम करेगा हिजाब क्या,
दरिया के आगे आबे-रवाँ की बिसात क्या?
-हसन बरेलवी
1.हिजाब - (i) आड़, पर्दा, ओट (ii) मुखावरण, बुर्का, पर्दा
2.आबे-रवाँ - तेजी से बहता पानी 3.बिसात - साहस, हिम्मत, सामर्थ्य
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नकाबे-रूख उलटने तक तो मुझको होश था लेकिन,
भरी महफिल मं उसके बाद क्या गुजरी खुदा जाने।
-सईद अहमद खां
1. नकाबे-रूख - मुखावरण ,मुखपट, पर्दा
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मुझको यह आरजू है वह उठाएं नकाब खुद,
उनकी यह इल्तिजा तकाजा करे कोई।
-मजाज
1.नकाब - घूँघट, मुखावरण, मुखपट 2.इल्तिजा - प्रार्थना, दरखास्त
3.तकाजा - माँग, फर्माइश
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वह बेनकाब कहीं बेनकाब होता है,
कि आफताब खुद अपना हिजाब होता है।
-'नातिक' लखनवी
1.आफताब - सूरज, सूर्य 2.हिजाब - (i) आड़, पर्दा, ओट (ii) लाज, शर्म
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हया बेहोश होकर गिर रही है,
किसी की बेहिजाबी तौबा-तौबा।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1.हया - लज्जा, शर्म, व्रीड़ा 2.बेहिजाबी - घूँघट उठाना
3. तौबा-तौबा - किसी बुरे काम से बाज रहने की दृढ़ प्रतिज्ञा
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है देखने वालों को संभलने का इशारा,
थोड़ी-सी नकाब वह सरकाये हुए हैं।
-अर्श मल्सियानी
1. नकाब - घूँघट, मुखावरण, पर्दा, बुर्का
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यह शर्मगीं निगाह,यह तबस्सुम निकाब में,
क्या बेहिजबियाँ है, तुम्हारे हिजाब में।
-जकी
1.शर्मगीं - शर्म से झुकी हुई
2.तबस्सुम - मुस्कान, मुस्कराहट, स्मित, मंदहास
3.निकाब - (i) घूँघट, मुखावरण, मुखापट (ii) ओट, आड़
4.बेहिजबियाँ - घूँघट हटा देना 5. हिजाब - आड़, पर्दा, ओट
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नकाब कहती है मैं पर्दा-ए-कयामत हूँ,
अगर यकीं न हो तो देख लो उठा के मुझे।
-'जलील' मानिकपुरी
1.नकाब - मुखवरण, मुखपट, पर्दा, बुर्का
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नकाब उनके चेहरे का सरका है शायद,
बड़ी दूर तक बर्क लहरा नहीं है।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1.बर्क - बिजली, सौदामिनी, , तड़ित, चंचला
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फैला है हुस्ने-आरिजे-रौशन नकाब में,
क्या-क्या तड़प रही है तजल्ली हिजाब में।
-साकिब लखनवी
1.हुस्ने-आरिजे-रौशन - उज्जवल गाल का सौन्दर्य 2. नकाब - घूँघट, मुखावरण, मुखपट, बुर्का 3.तजल्ली - प्रकाश, आभा, नूर
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बताइए रहेगी शम्अ किस तरह हिजाब में,
यह क्या समझ के हुस्न को छुपाया है निकाब में।
-'साकिब' लखनवी
1.हिजाब - (i)आड़, पर्दा, ओट (ii) लज्जा , लाज, शर्म
2. निकाब - मुखावरण, मुखपट, बुर्का, घूँघट, ओट, आड़
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उठा सके आदमी तो पहले नजर से अपनी नकाब उठाए,
जमाने भर की तजल्लियों से नकाब उल्टी हुई मिलेगी।
-नवाब झांसवी
1.नकाब - पर्दा, घूँघट, ओट, आड़ 2.तजल्लियों - (i) आभा, प्रकाश, नूर, रौशनी (ii) प्रताप, जलाल (iii) अध्यात्मज्योति, नूरे-हक
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एक से लगते हैं सब ही कौन अपना, कौन गैर,
बेनकाब आये कोई तो, हम दरे -दिल वा करें।
-खलील
1.दरे–दिल - दिल का दरवाजा 2. वा - खोलना
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Desh Ratna's Collection - Sher "ख़ुदा "
अपना तो आशिकी का किस्सा-ए-मुख्तसर है,
हम जा मिले खुदा से दिलबर बदल-बदल कर।
1.मुख्तसर - संक्षिप्त कहानी
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अब तो चलते हैं बुतकदे से ऐ 'मीर',
फिर मिलेंगे गर खुदा लाया।
-मीरतकी मीर
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आदम को मत खुदा कहो, आदम खुदा नही,
लेकिन खुदा के नूर से, आदम जुदा नहीं।
*****
आशिकी से मिलेगा खुदा,
बंदगी से खुदा नहीं मिलता।
-दाग
इक नहीं मांगी खुदा से आदमीयत की रविश,
और हर शै के लिए बंदे दुआ करते रहे।
1. रविश- शैली, तर्ज, आचार-व्यवहार
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इन्सान की बदबख्ती अन्दाज से बाहर है,
कमबख्त खुदा होकर भी बंदा नजर आता है।
1.बदबख्ती - बदनसीबी, बदकिस्मती
2.कमबख्त - अभागा, भाग्य का मारा, वदकिस्मत
*****
इलाही कैसे होते है जिन्हें है बंदगी की ख्वाहिश,
हमें तो शर्म दामनगीर होती है खुदा होते हुए।
-मीरतकी मीर
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कह दे ये कोई जाकर दुनिया के बागबाँ से ,
गुल मुतमइन नहीं हैं, तरतीबे-गुलिस्ताँ से।
-एहसन दानिश
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कहने को यूँ जहाँ में हजारों हैं यार-दोस्त
मुश्किल के वक्त एक है, परवरदिगार दोस्त।
-असीर
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कुछ लोगों से जब तक मुलाकात न हुई थी
मैं भी यह समझा था, खुदा सबसे बड़ा है।
*****
खिरदमंदों से क्या पुछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फिक्र में रहता हूँ मेरी इन्तिहा क्या है,
खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तकदीर से पहले
खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है?
-मोहम्मद इकबाल
1.खिरदमंद - बुद्धिमान, अक्लमंद 2.इब्तिदा - प्रारम्भ, आरम्भ, शुरूआत 3. इन्तिहा - अंत, आखिरी हद या छोर 4. रजा - इच्छा, तमन्ना, ख्वाहिश
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खुदा तौफीक देता है उन्हें जो यह समझते हैं,
कि खुद अपने ही हाथों से बना करती हैं तकदीरें।
-'अफसर' मेरठी
1.तौफीक - (i) दैव योग से ऐसे कारण पैदा हो जाना जिससे अभिलषित वस्तु की प्राप्ति में सुगमता हो, ईश्वर की कृपा, दैवानुग्रह (ii) सामर्थ्य, शक्ति (iii) योग्यता, पात्रता, अहलियत
*****
खुदा और नाखुदा मिलकर डुबो दें यह तो मुमकिन है,
मेरी वजहे-तबाही सिर्फ तूफां हो नहीं सकता।
-सीमाब अकबराबादी
1. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, केवट, कर्णधार
*****
खुदा तो इक तरफ, खुद से भी कोसों दूर होता है,
बशर जिस वक्त ताकत के नशे में चूर होता है।
1. बशर - मानव, आदमी, मनुष्य
*****
खुदा या नाखुदा अब जिसको चाहो बख्श दो इज्जत,
हकीकत में तो कश्ती इत्तिफाकन बच गई अपनी।
-गोपाल मित्तल
1. कश्ती - नौका, नाव
*****
खुदाबंदा मेरी गुमराहियों पर दरगुजर फरमां,
मै उस माहौल में रहता हूँ जिसका नाम दुनिया है।
-'अकबर' हैदरी
1. खुदाबंदा -. हे ईश्वर, हे खुदा 2. गुमराहियों-. गलतियों, गुनाहों, रास्ता भूलना 3. दरगुजर - दोष देखकर उसे अनदेखा कर देना, चश्मपोशी
*****
खुदी की इब्तिदा यह थी कि अपने आप में गुम थे,
खूदी की इन्तिहा ये है कि खुदा को याद करता हूँ।
1.खुदी - यह भाव कि बस हमीं हम है, अहंकार, गर्व, घमंड
2.इब्तिदा - शुरूआत, आरम्भ
*****
खुलूसे-दिल से हो सिज्दे तो उन सिज्दों का क्या कहना,
सरक आया वहीं काबा, जहां हमने जबीं रख दी।
1.खुलूसे-दिल - सच्चे दिल से, निष्कपट दिल से 2. काबा - मक्के की एक इमारत जिसे मुसलमान ईश्वर का घर मानते हैं 3. जबीं - माथा, भाल
*****
छोड़ा नहीं खुदी को, दौड़े खुदा के पीछे,
आसां को छोड़ बंदे, मुश्किल को ढूंढ़ते हैं।
1.खुदी - अहंकार, अभिमान, यह भाव कि हमीं हम है
*****
'जफर' आदमी उसको न जानिएगा,
हों वो कैसा ही साहिबे-फहमो-जका।
जिसे ऐश में यादे - खुदा न रहा,
जिसे तैश में खौफे - खुदा न रहा।
-'जफर'
1.साहिबे-फहमो-जका - समझ-बूझ वाला, विवेकशील, समझदार
2. ऐश - भोग-विलास, खाने-पीने का आनन्द, विषयवासना
3.तैश - क्रोध, कोप, गुस्सा
*****
जहाँ सिज्दे को मन आया वहीं पर लिया सिज्दा,
न कोई संगे - दर अपना न कोई आस्तां अपना।
1.सिज्दा - ईश्वर के लिए सर झुकाना, नमाज में जमीन पर सर रखना
2संगे–दर - चौखट 3. आस्तां - दहलीज, ड्योढ़ी, चौखट.
*****
जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर,
या वो जगह बता दे जहां पर खुदा नहीं।
1.जाहिद - संयम, नियम और जप-तप करने वाला व्यक्ति
*****
जिन्दगीअपनी जब इस शक्ल से गुजरी 'गालिब',
हम भी क्या याद करेंगे कि खुदा रखते थे।
-मिर्जा 'गालिब'
*****
तिफ्ल-ए-शीरख्वार को ज्यों-ज्यों शऊर हो चला,
जितना खुदा के पास था, उतना ही दूर हो चला।
1.शीरख्वार - दूध मुंहा बच्चा
2.शऊर - (i) विवेक, समझ, अच्छे-बुरे की पहचान
(ii) सभ्यता, तमीज (iii) शिष्टता, सलीका
*****
तेरा करम तो आम है दुनिया के वास्ते,
मैं कितना ले सका, मुकद्दर की बात है।
1. करम - कृपा, मेहरबानी
*****
दावर के सामने बुते-काफिर को क्या कहें,
दोनों की शक्ल एक है, किसको खुदा कहूँ
मारो भी तुम, जिलाओ भी तुम तुमको क्या कहूँ,
तुमको खुदा कहूँ या खुदा को खुदा कहूँ।
-रियाज खैराबादी
1. दावर – ईश्वर 2.बुते-काफिर - बेहद हसीन औरत
*****
बंदे न होंगे जितने खुदा हैं खुदाई में,
किस-किस खुदा के सामने सिज्दा करे कोई।
*****
यही हुस्नो-इश्क का राज है कोई राज इसके सिवा नहीं
जो खुदा नहीं तो खुदी नही, जो खुदी नहीं तो खुदा नहीं।
-जिगर मुरादाबादी
1.खुदी - (i) यह भाव की हम है (ii) अहंकार, अभिमान, घमंड
*****
रकीबों ने रपट लिखवाई है यह जा के थाने में,
कि 'अकबर' नाम लेता है खुदा का इस जमाने में।
-अकबर इलाहाबादी
1.रकीबों - प्रतिद्वंदियों, एक स्त्री से प्रेम करने वाले दो व्यक्ति परस्पर रकीब होते हैं।
*****
रिन्दाने-जहां से ये नफरत, ऐ हजरते-वाइज क्या कहना,
अल्लाह के आगे बस न चला, बंदों से बगावत कर बैठे।
-फैज अहमद 'फैज'
1.रिन्दाने-जहां - मैकशी की दुनिया यानी शराब पीने वाले
2.हजरते-वाइज - धर्मोपदेशक महोदय
*****
सिज्दे करते भी हैं इंसां खुद दरे-इंसां पै रोज,
और फिर कहते भी है, बंदा खुदा होता नहीं।
-अर्श मल्सियानी
*****
हम खुदा थे गर न होता दिल में कोई मुद्दआ,
आरजूओं ने हमारी हमको बंदा कर दिया।
1.मुद्दआ - (i) स्वार्थ, गरज (ii) मतलब, आशय (iii) उद्देश्य, मंशा
*****
हर जर्रा चमकता है, अनवारे – इलाही से,
हर सांस यह कहती है, हम हैं तो खुदा भी है।
-अकबर इलाहाबादी
1. अनवार - प्रकाशपुंज, जगमगाहट, रोशनियां('नूर’ का बहुबचन)
2. इलाही - ईश्वर, खुदा, मेरा ईश्वर, मेरा खुदा
*****
हम जा मिले खुदा से दिलबर बदल-बदल कर।
1.मुख्तसर - संक्षिप्त कहानी
*****
अब तो चलते हैं बुतकदे से ऐ 'मीर',
फिर मिलेंगे गर खुदा लाया।
-मीरतकी मीर
*****
आदम को मत खुदा कहो, आदम खुदा नही,
लेकिन खुदा के नूर से, आदम जुदा नहीं।
*****
आशिकी से मिलेगा खुदा,
बंदगी से खुदा नहीं मिलता।
-दाग
इक नहीं मांगी खुदा से आदमीयत की रविश,
और हर शै के लिए बंदे दुआ करते रहे।
1. रविश- शैली, तर्ज, आचार-व्यवहार
*****
इन्सान की बदबख्ती अन्दाज से बाहर है,
कमबख्त खुदा होकर भी बंदा नजर आता है।
1.बदबख्ती - बदनसीबी, बदकिस्मती
2.कमबख्त - अभागा, भाग्य का मारा, वदकिस्मत
*****
इलाही कैसे होते है जिन्हें है बंदगी की ख्वाहिश,
हमें तो शर्म दामनगीर होती है खुदा होते हुए।
-मीरतकी मीर
*****
कह दे ये कोई जाकर दुनिया के बागबाँ से ,
गुल मुतमइन नहीं हैं, तरतीबे-गुलिस्ताँ से।
-एहसन दानिश
*****
कहने को यूँ जहाँ में हजारों हैं यार-दोस्त
मुश्किल के वक्त एक है, परवरदिगार दोस्त।
-असीर
*****
कुछ लोगों से जब तक मुलाकात न हुई थी
मैं भी यह समझा था, खुदा सबसे बड़ा है।
*****
खिरदमंदों से क्या पुछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फिक्र में रहता हूँ मेरी इन्तिहा क्या है,
खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तकदीर से पहले
खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है?
-मोहम्मद इकबाल
1.खिरदमंद - बुद्धिमान, अक्लमंद 2.इब्तिदा - प्रारम्भ, आरम्भ, शुरूआत 3. इन्तिहा - अंत, आखिरी हद या छोर 4. रजा - इच्छा, तमन्ना, ख्वाहिश
*****
खुदा तौफीक देता है उन्हें जो यह समझते हैं,
कि खुद अपने ही हाथों से बना करती हैं तकदीरें।
-'अफसर' मेरठी
1.तौफीक - (i) दैव योग से ऐसे कारण पैदा हो जाना जिससे अभिलषित वस्तु की प्राप्ति में सुगमता हो, ईश्वर की कृपा, दैवानुग्रह (ii) सामर्थ्य, शक्ति (iii) योग्यता, पात्रता, अहलियत
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खुदा और नाखुदा मिलकर डुबो दें यह तो मुमकिन है,
मेरी वजहे-तबाही सिर्फ तूफां हो नहीं सकता।
-सीमाब अकबराबादी
1. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, केवट, कर्णधार
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खुदा तो इक तरफ, खुद से भी कोसों दूर होता है,
बशर जिस वक्त ताकत के नशे में चूर होता है।
1. बशर - मानव, आदमी, मनुष्य
*****
खुदा या नाखुदा अब जिसको चाहो बख्श दो इज्जत,
हकीकत में तो कश्ती इत्तिफाकन बच गई अपनी।
-गोपाल मित्तल
1. कश्ती - नौका, नाव
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खुदाबंदा मेरी गुमराहियों पर दरगुजर फरमां,
मै उस माहौल में रहता हूँ जिसका नाम दुनिया है।
-'अकबर' हैदरी
1. खुदाबंदा -. हे ईश्वर, हे खुदा 2. गुमराहियों-. गलतियों, गुनाहों, रास्ता भूलना 3. दरगुजर - दोष देखकर उसे अनदेखा कर देना, चश्मपोशी
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खुदी की इब्तिदा यह थी कि अपने आप में गुम थे,
खूदी की इन्तिहा ये है कि खुदा को याद करता हूँ।
1.खुदी - यह भाव कि बस हमीं हम है, अहंकार, गर्व, घमंड
2.इब्तिदा - शुरूआत, आरम्भ
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खुलूसे-दिल से हो सिज्दे तो उन सिज्दों का क्या कहना,
सरक आया वहीं काबा, जहां हमने जबीं रख दी।
1.खुलूसे-दिल - सच्चे दिल से, निष्कपट दिल से 2. काबा - मक्के की एक इमारत जिसे मुसलमान ईश्वर का घर मानते हैं 3. जबीं - माथा, भाल
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छोड़ा नहीं खुदी को, दौड़े खुदा के पीछे,
आसां को छोड़ बंदे, मुश्किल को ढूंढ़ते हैं।
1.खुदी - अहंकार, अभिमान, यह भाव कि हमीं हम है
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'जफर' आदमी उसको न जानिएगा,
हों वो कैसा ही साहिबे-फहमो-जका।
जिसे ऐश में यादे - खुदा न रहा,
जिसे तैश में खौफे - खुदा न रहा।
-'जफर'
1.साहिबे-फहमो-जका - समझ-बूझ वाला, विवेकशील, समझदार
2. ऐश - भोग-विलास, खाने-पीने का आनन्द, विषयवासना
3.तैश - क्रोध, कोप, गुस्सा
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जहाँ सिज्दे को मन आया वहीं पर लिया सिज्दा,
न कोई संगे - दर अपना न कोई आस्तां अपना।
1.सिज्दा - ईश्वर के लिए सर झुकाना, नमाज में जमीन पर सर रखना
2संगे–दर - चौखट 3. आस्तां - दहलीज, ड्योढ़ी, चौखट.
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जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर,
या वो जगह बता दे जहां पर खुदा नहीं।
1.जाहिद - संयम, नियम और जप-तप करने वाला व्यक्ति
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जिन्दगीअपनी जब इस शक्ल से गुजरी 'गालिब',
हम भी क्या याद करेंगे कि खुदा रखते थे।
-मिर्जा 'गालिब'
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तिफ्ल-ए-शीरख्वार को ज्यों-ज्यों शऊर हो चला,
जितना खुदा के पास था, उतना ही दूर हो चला।
1.शीरख्वार - दूध मुंहा बच्चा
2.शऊर - (i) विवेक, समझ, अच्छे-बुरे की पहचान
(ii) सभ्यता, तमीज (iii) शिष्टता, सलीका
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तेरा करम तो आम है दुनिया के वास्ते,
मैं कितना ले सका, मुकद्दर की बात है।
1. करम - कृपा, मेहरबानी
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दावर के सामने बुते-काफिर को क्या कहें,
दोनों की शक्ल एक है, किसको खुदा कहूँ
मारो भी तुम, जिलाओ भी तुम तुमको क्या कहूँ,
तुमको खुदा कहूँ या खुदा को खुदा कहूँ।
-रियाज खैराबादी
1. दावर – ईश्वर 2.बुते-काफिर - बेहद हसीन औरत
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बंदे न होंगे जितने खुदा हैं खुदाई में,
किस-किस खुदा के सामने सिज्दा करे कोई।
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यही हुस्नो-इश्क का राज है कोई राज इसके सिवा नहीं
जो खुदा नहीं तो खुदी नही, जो खुदी नहीं तो खुदा नहीं।
-जिगर मुरादाबादी
1.खुदी - (i) यह भाव की हम है (ii) अहंकार, अभिमान, घमंड
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रकीबों ने रपट लिखवाई है यह जा के थाने में,
कि 'अकबर' नाम लेता है खुदा का इस जमाने में।
-अकबर इलाहाबादी
1.रकीबों - प्रतिद्वंदियों, एक स्त्री से प्रेम करने वाले दो व्यक्ति परस्पर रकीब होते हैं।
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रिन्दाने-जहां से ये नफरत, ऐ हजरते-वाइज क्या कहना,
अल्लाह के आगे बस न चला, बंदों से बगावत कर बैठे।
-फैज अहमद 'फैज'
1.रिन्दाने-जहां - मैकशी की दुनिया यानी शराब पीने वाले
2.हजरते-वाइज - धर्मोपदेशक महोदय
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सिज्दे करते भी हैं इंसां खुद दरे-इंसां पै रोज,
और फिर कहते भी है, बंदा खुदा होता नहीं।
-अर्श मल्सियानी
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हम खुदा थे गर न होता दिल में कोई मुद्दआ,
आरजूओं ने हमारी हमको बंदा कर दिया।
1.मुद्दआ - (i) स्वार्थ, गरज (ii) मतलब, आशय (iii) उद्देश्य, मंशा
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हर जर्रा चमकता है, अनवारे – इलाही से,
हर सांस यह कहती है, हम हैं तो खुदा भी है।
-अकबर इलाहाबादी
1. अनवार - प्रकाशपुंज, जगमगाहट, रोशनियां('नूर’ का बहुबचन)
2. इलाही - ईश्वर, खुदा, मेरा ईश्वर, मेरा खुदा
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Desh Ratna's Collection of Munnawar rana Shayari "(बच्चे)"
(बच्चे)
फ़रिश्ते आ के उनके जिस्म पर ख़ुशबू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बे में जो झाड़ू लगाते हैं
हुमकते खेलते बच्चों की शैतानी नहीं जाती
मगर फिर भी हमारे घर की वीरानी नहीं जाती
अपने मुस्तक़्बिल की चादर पर रफ़ू करते हुए
मस्जिदों में देखिये बच्चे वज़ू करते हुए
मुझे इस शहर की सब लड़कियाँ आदाब करती हैं
मैं बच्चों की कलाई के लिए राखी बनाता हूँ
घर का बोझ उठाने वाले बच्चे की तक़दीर न पूछ
बचपन घर से बाहर निकला और खिलौना टूट गया
जो अश्क गूँगे थे वो अर्ज़े—हाल करने लगे
हमारे बच्चे हमीं पर सवाल करने ल्गे
जब एक वाक़्या बचपन का हमको याद आया
हम उन परिंदों को फिर से घरों में छोड़ आए
भरे शहरों में क़ुर्बानी का मौसम जबसे आया है
मेरे बच्चे कभी होली में पिचकारी नहीं लाते
मस्जिद की चटाई पे ये सोते हुए बच्चे
इन बच्चों को देखो, कभी रेशम नहीं देखा
भूख से बेहाल बच्चे तो नहीं रोये मगर
घर का चूल्हा मुफ़लिसी की चुग़लियाँ खाने लगा
तलवार तो क्या मेरी नज़र तक नहीं उठ्ठी
उस शख़्स के बच्चों की तरफ़ देख लिया था
रेत पर खेलते बच्चों को अभी क्या मालूम
कोई सैलाब घरौंदा नहीं रहने देता
धुआँ बादल नहीं होता कि बचपन दौड़ पड़ता है
ख़ुशी से कौन बच्चा कारखाने तक पहुँचता है
मैं चाहूँ तो मिठाई की दुकानें खोल सकता हूँ
मगर बचपन हमेशा रामदाने तक पहुँचता है
हवा के रुख़ पे रहने दो ये जलना सीख जाएगा
कि बच्चा लड़खड़ाएगा तो चलना सीख जाएगा
इक सुलगते शहर में बच्चा मिला हँसता हुआ
सहमे—सहमे—से चराग़ों के उजाले की तरह
मैंने इक मुद्दत से मस्जिद नहीं देखी मगर
एक बच्चे का अज़ाँ देना बहुत अच्छा लगा
इन्हें अपनी ज़रूरत के ठिकाने याद रहते हैं
कहाँ पर है खिलौनों की दुकाँ बच्चे समझते हैं
ज़माना हो गया दंगे में इस घर को जले लेकिन
किसी बच्चे के रोने की सदाएँ रोज़ आती हैं
फ़रिश्ते आ के उनके जिस्म पर ख़ुशबू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बे में जो झाड़ू लगाते हैं
हुमकते खेलते बच्चों की शैतानी नहीं जाती
मगर फिर भी हमारे घर की वीरानी नहीं जाती
अपने मुस्तक़्बिल की चादर पर रफ़ू करते हुए
मस्जिदों में देखिये बच्चे वज़ू करते हुए
मुझे इस शहर की सब लड़कियाँ आदाब करती हैं
मैं बच्चों की कलाई के लिए राखी बनाता हूँ
घर का बोझ उठाने वाले बच्चे की तक़दीर न पूछ
बचपन घर से बाहर निकला और खिलौना टूट गया
जो अश्क गूँगे थे वो अर्ज़े—हाल करने लगे
हमारे बच्चे हमीं पर सवाल करने ल्गे
जब एक वाक़्या बचपन का हमको याद आया
हम उन परिंदों को फिर से घरों में छोड़ आए
भरे शहरों में क़ुर्बानी का मौसम जबसे आया है
मेरे बच्चे कभी होली में पिचकारी नहीं लाते
मस्जिद की चटाई पे ये सोते हुए बच्चे
इन बच्चों को देखो, कभी रेशम नहीं देखा
भूख से बेहाल बच्चे तो नहीं रोये मगर
घर का चूल्हा मुफ़लिसी की चुग़लियाँ खाने लगा
तलवार तो क्या मेरी नज़र तक नहीं उठ्ठी
उस शख़्स के बच्चों की तरफ़ देख लिया था
रेत पर खेलते बच्चों को अभी क्या मालूम
कोई सैलाब घरौंदा नहीं रहने देता
धुआँ बादल नहीं होता कि बचपन दौड़ पड़ता है
ख़ुशी से कौन बच्चा कारखाने तक पहुँचता है
मैं चाहूँ तो मिठाई की दुकानें खोल सकता हूँ
मगर बचपन हमेशा रामदाने तक पहुँचता है
हवा के रुख़ पे रहने दो ये जलना सीख जाएगा
कि बच्चा लड़खड़ाएगा तो चलना सीख जाएगा
इक सुलगते शहर में बच्चा मिला हँसता हुआ
सहमे—सहमे—से चराग़ों के उजाले की तरह
मैंने इक मुद्दत से मस्जिद नहीं देखी मगर
एक बच्चे का अज़ाँ देना बहुत अच्छा लगा
इन्हें अपनी ज़रूरत के ठिकाने याद रहते हैं
कहाँ पर है खिलौनों की दुकाँ बच्चे समझते हैं
ज़माना हो गया दंगे में इस घर को जले लेकिन
किसी बच्चे के रोने की सदाएँ रोज़ आती हैं
Monday, November 15, 2010
देश रत्न कि संग्रहिका... कुछ चुनिन्दा शेर.. इन्सानियत (Humanity)
कितने कांटों की बद्दुआ ली है
चन्द कलियों की जिन्दगी के लिए।
-शहीद फातिमी
*****
किसी चमन में बस इस खौफ से न गुजर हुआ,
किसी कली पै न भूले से पांव रख दूं।
-नदीम कासिमी
*****
कीजिए और कोई जुल्म अग जिद है यही,
लीजिए और मेरे लब पै दुआएं आई।
-जिगर मुरादाबादी
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कुछ और तो नहीं मेरे गरीब दामन में,
अगर कबूल हो तो जिन्दगी दे दूँ।
*****
जिस गम से तस्कीं मिलती हो, उस गम का मुदावा कौन करे,
जिस दर्द में लज्जत हो पिन्हा, उस दर्द का दरमाँ क्या होगा।
-जगन्नाथ आजाद
1.तस्कीं - (i) पीड़ा और दर्द में कमी, आराम (ii) संतोष, इत्मीनान 2.मुदावा - दवा,इलाज 3.लज्जत - आनन्द, लुत्फ 4.पिन्हा - छुपा हुआ 5.दरमाँ - उपचार, चिकित्सा, इलाज
*****
जो गमे-हबीब से दूर थे, वो खुद अपनी आग में जल गये,
जो गमे-हबीब को पा गये तो गमों से हंस के निकल गये।
-शायर लखनवी
1.गमे-हबीब – दोस्त या मित्र का ग़म
*****
तुम अपना रंजोगम अपनी परीशानी मुझे दे दो,
मुझे अपनी कसम, यह दुख, यह हैरानी मुझे दे दो।
मैं देखूं तो सही, यह दुनिया तुझे कैसे सतात है,
कोई दिन के लिये तुम अपनी निगहबानी मुझे दे दो।
ये माना मैं किसी काबिल नहीं इन निगाहों में,
बुरा क्या है अगर इस दिल की वीरानी मुझे दे दो।
-साहिर लुधियानवी
1. निगहबानी - देखरेख
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तेरी हमदर्द नजरों से मिला ऐसा सुकूं मुझको,
मैं ऐसा सुकूं मरकर भी शायद पा नहीं सकता।
-जाँनिसार अख्तर
1. हमदर्द - दुख-दर्द बांटने वाली या वाला
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दुश्मन भी हो तो दोस्ती से पेश आये हम,
बेगानगी से अपना नहीं आश्ना मिजाज।
-आतिश
1.बेगानगी - (i) परायापन (ii) अनजानापन, ज्ञान का न होना, बेइल्मी 2.आश्ना - परिचित, वाकिफ
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दूसरों पैं जब तबसिरा कीजिए,
सामने आइना रख लिया कीजिए।
1. तबसिरा - आलोचना
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मेरे गुनाहों पर करें तब्सिरा लेकिन,
सिर्फ मैं ही तो गुनहगार नहीं।
-सीमाब अकबराबादी
1.तब्सिरा - आलोचना
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बेचैनियाँ समेटकर सारे जहान की,
जब कुछ न बन सका तो मेरा दिल बना दिया।
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मैं परीशाँ था, परीशाँ हूँ, नई बात नहीं,
आज वो भी है परीशान, खुदा खैर करे।
-उमर अंसारी
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अंधेरे माँगने आये थे रौशनी की भीख,
हम अपना घर न जलाते तो क्या करते?
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अपना दर्दे-दिल समझने की यहाँ फुर्सत किसे,
हम तो औरों का तड़पना देखकर तड़पा किये।
-आनन्द नारायण 'मुल्ला'
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अपनी फिक्र न कुछ करेंप्रभू-प्रेम के दास,
सुई नंगी खुद रहे, सबके सिये लिबास।
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आदमीयत और शै है, इल्म है कुछ और चीज,
कितना तोते को रटाया, पर वह हैवां ही रहा।
1. हैवां - जानवर, पशु, चौपाया
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इलाही उनके हिस्से का भी गम मुझको अता कर दे,
कि उन मासूम आंखों में नमी देखी नहीं जाती।
1. अता - (i) प्रदान, दान (ii) पुरस्कार
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इश्क के रूतबे के आगे आस्मां भी पस्त है,
सर झुकाया है फरिश्तों ने बशर के सामने।
-'नसीम'
1.पस्त - (i) नीचा (ii) लघु, छोटा (iii) अधम, नीच,कमीना
2. बशर - मनुष्य, मानव, आदमी
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उनको इन्साँ मत समझ, हो सरकशी जिनमें 'जफर'
खाकसारी के लिये है खाक से इन्साँ बना।
-बहादुर शाह 'जफर'
1.सरकशी - (i) उद्दंडता, उज्जड़पन, अशिष्टता (ii) अवज्ञा, हुक्मउदूली (iii) विद्रोह, बगावत 2. खाकसारी - विनम्रता 3. खाक - (i) धूल, रज, गुबार, गर्द (ii)मिट्टी (iii) भूमि, जमीन
उम्मीदे सुलह क्या हो किसी हकपरस्त से,
पीछे वो क्या हटेगा जो हद से बढ़ा न हो।
-यगाना चंगेजी
1. हकपरस्त - सत्यनिष्ट, सत्य का पुजारी, धर्मात्मा
*****
एक दिल में गम जमाने भर का क्यो भर दिया,
खू-ए-हमदर्दी ने कूजे मे समन्दर भर दिया।
1.खू - स्वभाव, आदत, फितरत 2. कूजा - मिट्टी का सकोरा
*****
करूँ मैं दुश्मनी किससे कोई दुश्मन भी हो अपना,
मुहब्ब्त ने नहीं दिल में जगह छोड़ी अदावत की।
1.अदावत - दुश्मनी, शत्रुता
*****
कसरते-गम में लुत्फे-गमख्वारी, सागरे-मय का काम देती है,
वक्त पर इक लफ्जे-हमदर्दी, इब्ने-मरियम का काम देता है।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1.कसरत - प्राचुर्य, बाहुल्य, अधिकता 2. लुत्फ - (i)आनन्द, मजा (ii) करूणा, तरस (iii) दया, रहम, अनुकम्पा, मेहरबानी
3.सागरे-मय - शराब का याला 4.गमख्वारी – हमदर्दी
5.इब्ने-मरियम - मरियम का पुत्र हजरत ईसा, ईसा मसीह जो ईसाई धर्म के संस्थापक थे और जो फूंक से मुर्दों को जिला देते थे।
*****
कितने कांटों की बददुआ ली है,
चन्द कलियों की जिन्दगी के लिए।
*****
कितने हसीन लोग थे जो मिलकर एक बार,
आंखों में जज्ब हो गये, दिल में समा गये।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1.जज्ब - (i) आत्मसात, एक में समाया हुआ (ii) आकर्षण, कशिश
*****
किसी का रंज देखूँ यह नहीं होता मेरे दिल से,
नजर सैयाद कि झपके तो कुछ कह दूँ अनादिल से।
1.सैयाद - बहेलिया, चिड़िमार, आखेटक, शिकारी
2. अनादिल - अंदलीब का बहुवचन, बुलबुले
*****
किसी के काम न आए तो आदमी क्या है,
जो अपनी ही फिक्र में गुजरे वह जिन्दगी क्या है?
-'असर' लखनवी
*****
कुछ मेरे बाद और भी आयेंगे काफिले वाले,
कांटे यहाँ रास्ते से हटालूँ तो चैन लूं।
-'तसव्वर'
*****
कुछ लोगों से जब तक मुलाकात न हुई थी,
मैं भी यह समझा था, खुदा सबसे बड़ा है।
*****
कोई हद ही नहीं शायद मुहब्बत के फसाने की,
सुनाता जा रहा है, जिसको जितना याद होता है।
*****
खाकसारी का है गाफिल बहुत ऊँचा मर्तबा,
यह जमीं वह है जिसमें आसमां कोई नहीं।
-'अलम' मुजफ्फरनगरी
1.खाकसारी - विनम्रता 2.गाफिल - असावधान,बेखबर
3. मर्तबा - पद,दर्ज़ा
*****
खिज्रे-मंजिल से कम नहीं ऐ दोस्त,
एक हमदर्द अजनबी का खुलूस।
-रविश सिद्दकी
1.खिज्रे-मंजिल - राह दिखने वाला2. खुलूस - सच्चा प्यार
*****
खुद ही सरशारे-मये-उल्फत नहीं होना 'असर',
इससे भर-भर कर दिलों के जाम छलकाना भी है।
-'असर' लखनवी
1.सरशारे-मये-उल्फत - मोहब्बत की मदिरा से लबालब या परिपूर्ण
*****
खूने-दिल जाया न हो मुझको तो इतनी फिक्र है,
अपने काम आया तो क्या, गैरों के काम आया तो क्या?
-आनन्द नारायण 'मुल्ला'
*****
गुलों ने खारों के छेड़ने पर सिवा खामोशी के दम न मारा,
शरीफ उलझें अगर किसी से तो फिर शराफत कहाँ रहेगी।
-'शाद' अजीमाबादी
*****
घर से तो बहुत दूर है मंदिर का रास्ता,
आओ किसी रोते हुए चेहरे को हसाएं।
*****
'जफर' आदमी उसको न जानियेगा,
हो वो कैसा भी साहिबो-फहमो-जका।
जिसे ऐश में यादे-खुदा न रहा,
जिसे तैश में खौफे-खुदा न रहा।
-'जफर'.
1.साहिबो-फहमो-जका - बुद्धि और विवेक वाला, अत्यन्त बुद्धिमान
2. तैश - क्रोध, कोप, गुस्सा
*****
जब तक गमे-इन्साँ से 'जिगर' इन्साँ का दिल मामूर नहीं,
जन्नत ही सही दुनिया लेकिन जन्नत से जहन्नुम दूर नहीं।
-'जिगर' मुरादाबादी
1.मामूर - आबाद, भराहुआ, बसा हुआ 2. जन्नत - स्वर्ग, बहिश्त 3.जहन्नुम - नरक, दोजख, बहुत ही कष्ट और दुख की जगह
*****
तू जिसे जर्रा समझकर कर रहा है पायमाल,
देख उस जर्रे के सीने में कहीं दुनिया न हो।
-'शफा' ग्वालियरी
1. पायमाल - (i) पाँव तले रौंदा हुआ, पद-दलित(ii)दुर्दशाग्रस्त, मुसीबतजदा 2. जर्रा - (i) कण, बहुतहीबारीक रेज़ा (ii) अति तुच्छ, बहुत ही हकीर
*****
चन्द कलियों की जिन्दगी के लिए।
-शहीद फातिमी
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किसी चमन में बस इस खौफ से न गुजर हुआ,
किसी कली पै न भूले से पांव रख दूं।
-नदीम कासिमी
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कीजिए और कोई जुल्म अग जिद है यही,
लीजिए और मेरे लब पै दुआएं आई।
-जिगर मुरादाबादी
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कुछ और तो नहीं मेरे गरीब दामन में,
अगर कबूल हो तो जिन्दगी दे दूँ।
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जिस गम से तस्कीं मिलती हो, उस गम का मुदावा कौन करे,
जिस दर्द में लज्जत हो पिन्हा, उस दर्द का दरमाँ क्या होगा।
-जगन्नाथ आजाद
1.तस्कीं - (i) पीड़ा और दर्द में कमी, आराम (ii) संतोष, इत्मीनान 2.मुदावा - दवा,इलाज 3.लज्जत - आनन्द, लुत्फ 4.पिन्हा - छुपा हुआ 5.दरमाँ - उपचार, चिकित्सा, इलाज
*****
जो गमे-हबीब से दूर थे, वो खुद अपनी आग में जल गये,
जो गमे-हबीब को पा गये तो गमों से हंस के निकल गये।
-शायर लखनवी
1.गमे-हबीब – दोस्त या मित्र का ग़म
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तुम अपना रंजोगम अपनी परीशानी मुझे दे दो,
मुझे अपनी कसम, यह दुख, यह हैरानी मुझे दे दो।
मैं देखूं तो सही, यह दुनिया तुझे कैसे सतात है,
कोई दिन के लिये तुम अपनी निगहबानी मुझे दे दो।
ये माना मैं किसी काबिल नहीं इन निगाहों में,
बुरा क्या है अगर इस दिल की वीरानी मुझे दे दो।
-साहिर लुधियानवी
1. निगहबानी - देखरेख
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तेरी हमदर्द नजरों से मिला ऐसा सुकूं मुझको,
मैं ऐसा सुकूं मरकर भी शायद पा नहीं सकता।
-जाँनिसार अख्तर
1. हमदर्द - दुख-दर्द बांटने वाली या वाला
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दुश्मन भी हो तो दोस्ती से पेश आये हम,
बेगानगी से अपना नहीं आश्ना मिजाज।
-आतिश
1.बेगानगी - (i) परायापन (ii) अनजानापन, ज्ञान का न होना, बेइल्मी 2.आश्ना - परिचित, वाकिफ
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दूसरों पैं जब तबसिरा कीजिए,
सामने आइना रख लिया कीजिए।
1. तबसिरा - आलोचना
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मेरे गुनाहों पर करें तब्सिरा लेकिन,
सिर्फ मैं ही तो गुनहगार नहीं।
-सीमाब अकबराबादी
1.तब्सिरा - आलोचना
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बेचैनियाँ समेटकर सारे जहान की,
जब कुछ न बन सका तो मेरा दिल बना दिया।
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मैं परीशाँ था, परीशाँ हूँ, नई बात नहीं,
आज वो भी है परीशान, खुदा खैर करे।
-उमर अंसारी
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अंधेरे माँगने आये थे रौशनी की भीख,
हम अपना घर न जलाते तो क्या करते?
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अपना दर्दे-दिल समझने की यहाँ फुर्सत किसे,
हम तो औरों का तड़पना देखकर तड़पा किये।
-आनन्द नारायण 'मुल्ला'
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अपनी फिक्र न कुछ करेंप्रभू-प्रेम के दास,
सुई नंगी खुद रहे, सबके सिये लिबास।
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आदमीयत और शै है, इल्म है कुछ और चीज,
कितना तोते को रटाया, पर वह हैवां ही रहा।
1. हैवां - जानवर, पशु, चौपाया
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इलाही उनके हिस्से का भी गम मुझको अता कर दे,
कि उन मासूम आंखों में नमी देखी नहीं जाती।
1. अता - (i) प्रदान, दान (ii) पुरस्कार
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इश्क के रूतबे के आगे आस्मां भी पस्त है,
सर झुकाया है फरिश्तों ने बशर के सामने।
-'नसीम'
1.पस्त - (i) नीचा (ii) लघु, छोटा (iii) अधम, नीच,कमीना
2. बशर - मनुष्य, मानव, आदमी
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उनको इन्साँ मत समझ, हो सरकशी जिनमें 'जफर'
खाकसारी के लिये है खाक से इन्साँ बना।
-बहादुर शाह 'जफर'
1.सरकशी - (i) उद्दंडता, उज्जड़पन, अशिष्टता (ii) अवज्ञा, हुक्मउदूली (iii) विद्रोह, बगावत 2. खाकसारी - विनम्रता 3. खाक - (i) धूल, रज, गुबार, गर्द (ii)मिट्टी (iii) भूमि, जमीन
उम्मीदे सुलह क्या हो किसी हकपरस्त से,
पीछे वो क्या हटेगा जो हद से बढ़ा न हो।
-यगाना चंगेजी
1. हकपरस्त - सत्यनिष्ट, सत्य का पुजारी, धर्मात्मा
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एक दिल में गम जमाने भर का क्यो भर दिया,
खू-ए-हमदर्दी ने कूजे मे समन्दर भर दिया।
1.खू - स्वभाव, आदत, फितरत 2. कूजा - मिट्टी का सकोरा
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करूँ मैं दुश्मनी किससे कोई दुश्मन भी हो अपना,
मुहब्ब्त ने नहीं दिल में जगह छोड़ी अदावत की।
1.अदावत - दुश्मनी, शत्रुता
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कसरते-गम में लुत्फे-गमख्वारी, सागरे-मय का काम देती है,
वक्त पर इक लफ्जे-हमदर्दी, इब्ने-मरियम का काम देता है।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1.कसरत - प्राचुर्य, बाहुल्य, अधिकता 2. लुत्फ - (i)आनन्द, मजा (ii) करूणा, तरस (iii) दया, रहम, अनुकम्पा, मेहरबानी
3.सागरे-मय - शराब का याला 4.गमख्वारी – हमदर्दी
5.इब्ने-मरियम - मरियम का पुत्र हजरत ईसा, ईसा मसीह जो ईसाई धर्म के संस्थापक थे और जो फूंक से मुर्दों को जिला देते थे।
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कितने कांटों की बददुआ ली है,
चन्द कलियों की जिन्दगी के लिए।
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कितने हसीन लोग थे जो मिलकर एक बार,
आंखों में जज्ब हो गये, दिल में समा गये।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1.जज्ब - (i) आत्मसात, एक में समाया हुआ (ii) आकर्षण, कशिश
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किसी का रंज देखूँ यह नहीं होता मेरे दिल से,
नजर सैयाद कि झपके तो कुछ कह दूँ अनादिल से।
1.सैयाद - बहेलिया, चिड़िमार, आखेटक, शिकारी
2. अनादिल - अंदलीब का बहुवचन, बुलबुले
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किसी के काम न आए तो आदमी क्या है,
जो अपनी ही फिक्र में गुजरे वह जिन्दगी क्या है?
-'असर' लखनवी
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कुछ मेरे बाद और भी आयेंगे काफिले वाले,
कांटे यहाँ रास्ते से हटालूँ तो चैन लूं।
-'तसव्वर'
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कुछ लोगों से जब तक मुलाकात न हुई थी,
मैं भी यह समझा था, खुदा सबसे बड़ा है।
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कोई हद ही नहीं शायद मुहब्बत के फसाने की,
सुनाता जा रहा है, जिसको जितना याद होता है।
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खाकसारी का है गाफिल बहुत ऊँचा मर्तबा,
यह जमीं वह है जिसमें आसमां कोई नहीं।
-'अलम' मुजफ्फरनगरी
1.खाकसारी - विनम्रता 2.गाफिल - असावधान,बेखबर
3. मर्तबा - पद,दर्ज़ा
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खिज्रे-मंजिल से कम नहीं ऐ दोस्त,
एक हमदर्द अजनबी का खुलूस।
-रविश सिद्दकी
1.खिज्रे-मंजिल - राह दिखने वाला2. खुलूस - सच्चा प्यार
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खुद ही सरशारे-मये-उल्फत नहीं होना 'असर',
इससे भर-भर कर दिलों के जाम छलकाना भी है।
-'असर' लखनवी
1.सरशारे-मये-उल्फत - मोहब्बत की मदिरा से लबालब या परिपूर्ण
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खूने-दिल जाया न हो मुझको तो इतनी फिक्र है,
अपने काम आया तो क्या, गैरों के काम आया तो क्या?
-आनन्द नारायण 'मुल्ला'
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गुलों ने खारों के छेड़ने पर सिवा खामोशी के दम न मारा,
शरीफ उलझें अगर किसी से तो फिर शराफत कहाँ रहेगी।
-'शाद' अजीमाबादी
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घर से तो बहुत दूर है मंदिर का रास्ता,
आओ किसी रोते हुए चेहरे को हसाएं।
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'जफर' आदमी उसको न जानियेगा,
हो वो कैसा भी साहिबो-फहमो-जका।
जिसे ऐश में यादे-खुदा न रहा,
जिसे तैश में खौफे-खुदा न रहा।
-'जफर'.
1.साहिबो-फहमो-जका - बुद्धि और विवेक वाला, अत्यन्त बुद्धिमान
2. तैश - क्रोध, कोप, गुस्सा
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जब तक गमे-इन्साँ से 'जिगर' इन्साँ का दिल मामूर नहीं,
जन्नत ही सही दुनिया लेकिन जन्नत से जहन्नुम दूर नहीं।
-'जिगर' मुरादाबादी
1.मामूर - आबाद, भराहुआ, बसा हुआ 2. जन्नत - स्वर्ग, बहिश्त 3.जहन्नुम - नरक, दोजख, बहुत ही कष्ट और दुख की जगह
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तू जिसे जर्रा समझकर कर रहा है पायमाल,
देख उस जर्रे के सीने में कहीं दुनिया न हो।
-'शफा' ग्वालियरी
1. पायमाल - (i) पाँव तले रौंदा हुआ, पद-दलित(ii)दुर्दशाग्रस्त, मुसीबतजदा 2. जर्रा - (i) कण, बहुतहीबारीक रेज़ा (ii) अति तुच्छ, बहुत ही हकीर
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देश रत्न कि संग्रहिका... कुछ चुनिन्दा शेर.. हौसला (Perseverance)
हौसला (Perseverance)
अगर ऐ नाखुदा तूफान से लड़ने का दमखम है,
इधर कश्ती को मत लाना, इधर पानी बहुत कम है।
1. नाखुदा - मल्लाह, केवट, नाविक, कर्णधार
2. दमखम - शक्ति, हिम्मत, उत्साह, उमंग, हौसला
*****
अगर शोलाजन आशियाँ है तो क्या है,
बना लूँगा ऐसे, हजार आशियाँ मैं।
-निहाल सेहरारवी
1. शोलाजन - जलता हुआ, जिससे शोले निकल रहे हो
2. आशियाँ - घोसला, नीड़
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'अदम' इन्सान जब गहरी नजर डाले हवादिस पर,
तो इनमें बेहतरी के भी बहुत असबाब होते हैं।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1. हवादिस - दुर्घटनाओं 2. असबाब - सामान
*****
अपना जमाना आप बनाते हैं अहले-दिल,
हम वो नहीं है जिसको जमाना बना गया।
-'जिगर' मुरादाबाद
1. अहले-दिल - दिलवाले, साहसी, हिम्मती
अभी तो बहुत दूर है तुमको जाना,
है पुरपेच राहों से होकर गुजरना।
संभलकर है गिरना, है गिरकर संभलना,
कहाँ तक चलोगे किसी के सहारे।
-अफसर मेरठी
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अभी मरना बहुत दुश्वार है गम की कशाकश से,
अदा हो जायेगा यह फर्ज भी फुर्सत अगर होगी।
-नजर लखनवी
1. कशाकश - (i) खींचतान, खीचा-खींची, संघर्ष (ii) चढ़ा-ऊîपरी, स्पर्धा (iii) असमंजस
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अहले-हिम्मत ने हुसूले-मुद्दआ में जान दी,
और हम बैठे हुए रोया किये तकदीर को।
-असर लखनवी
1.अहले-हिम्मत - साहसी, हिम्मती 2. हुसूले-मुद्दआ - उद्देश्य की प्राप्ति
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आशियाँ फूंका है बिजली ने जहाँ सौ मर्तबा,
फिर उन्हीं शाखों पै, तरहे-आशियाँ रखता हूँ मैं।
-निहाल सेहरारवी
1. तरहे-आशियाँ - घोसले की नींव या बुनियाद
आहन नहीं कि चाहे जिधर मोड़ दीजिए,
शीशा हूँ मुड़ तो सकता नही, तोड़ दीजिए।
पत्थर तो रोज आते ही रहते हैं सहन में
हल इसका यह नहीं है कि घर छोड़ दीजिए।
1. आहन - लोहा, लौह 2. सहन - आंगन, अँगनाई
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इन्सान मुसीबत में हिम्मत न अगर हारे,
आसाँ से वह आसां है, मुश्किल से जो मुश्किल है।
-'सफी' लखनवी
*****
इब्तिदा में हर मुसीबत पर लरज जाता था दिल,
अब कोई गम इम्तिहाने-इश्क के काबिल नहीं।
1. इब्तिदा - शुरू, आरम्भ
*****
इरादे-कोहशिकन फौलाद जैसे दस्तोबाजू है,
मैं लंगर उठाने वाला हूँ तूफां को बता देना।
1.इरादे-कोहशिकन - पर्वत को तोड़ने वाला
इसी दुनिया की अक्सर तल्खियों में मुझको समझाया,
कि हिम्मत हो तो फिर है जहर भी इक चीज खाने की।
-'नैयर' अकबराबादी
1. तल्खियां- कटुता, कड़वाहट, अरूचिकर बातें
*****
इसी पै नाज घड़ी-दो-घड़ी जली होगी,
इसी पै शम्अ हमारी बराबरी होगी।
-'सफी' लखनवी
*****
उन्हीं को हम जहाँ में रहरवे-कामिल समझते हैं,
जो हस्ती को सफर और कब्र को मंजिल समझते हैं।
-बर्क
1. रहरव - पथिक, बटोही, मुसाफिर 2. कामिल - (i) निपुण, दक्ष, होशियार, चमत्कारी (ii) समूचा, सम्पूर्ण (iii) बिल्कुल, मुकम्मल, सर्वांगपूर्ण
*****
उन्हें सआदते-मंजिलरसी नसीब क्या होगी,
वह पाँव जो राहे-तलब में डगमगा न सके।
-जिगर मुरादाबादी
1. सआदत - प्रताप, तेज, इकबाल 2. मंजिलरसी - मंजिल
की प्राप्ति, मंजिल तक पहुंच 3. राहे-तलब - रास्ते की खोज
एक पत्थर की तकदीर भी संवर सकती है,
शर्त यह है कि उसे सलीके से संवारा जाए।
*****
एक मौज मचल जाए तो तूफां बन जाये,
एक फूल अगर चाहे तो गुलिस्तां बन जाये।
एक खून के कतरे में है तासीर इतनी
एक कौम की तारीख का उन्वान बन जाये।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1. तासीर - असर, प्रभाव 2. तारीख - इतिहास 3. उन्वान - विषय
*****
ऐ ताइरे-लाहूती, उस रिज्क से मौत अच्छी,
जिस रिज्क से आती हो,परवाज में कोताही।
-मोहम्मद इकबाल
1. ताइरे-लाहूती – आकाश में उड़ने वाला पंक्षी या
परिंदा 2. रिज्क - जीविका, रोजी, अन्न 3. परवाज - उड़ान
4. कोताही - (i) कमी ii) त्रुटि, खामी (iii) भूल
*****
ऐ देखने वाले साहिल से, मौजों से लिपट, तूफां से उलझ,
नज्जारा-ए-तूफां करने से, अन्दाजए-तूफां क्या होगा।
1. साहिल - किनारा, तट
कनाअत न कर आलमे-रंगो-बू पर,
चमन और भी, आशियां और भी है।
तू शाही है परवाज है काम तेरा,
तेरे सामने आसमां और भी है।
-मोहम्मद इकबाल
1. कनाअत - संतोष 2. आलम - जगत्, संसार, दुनिया 3. रंगो-बू - फूलों का रंग और उनका सुगंध (या दुनिया की रंगीनियाँ) 4. शाही - बाज पक्षी, श्येन 5.परवाज - उड़ान
*****
कनारों से मुझे ऐ नाखुदा तुम दूर ही रखना,
तहाँ लेकर चलो तूफां जहाँ से उठने वाला है।
1. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, कर्णधार
*****
कफस में खींच ले जाए मुकद्दर या निशेमन में,
हमें परवाजे-मतलब है, हवा कोई भी चलती हो।
-सीमाब अकबराबादी
1. कफस - पिंजड़ा, कारागार 2. निशेमन - घोंसला, नीड़
3. परवाजे - उड़ान
*****
कभी मौत कहती है अलहजर, कभी दर्द कहता है रहम कर,
मैं वह राह चलता हूँ पुरखतर कि जहाँ फना का गुजर नहीं।
-असर लखनवी
1.अलहजर - बस करो, बचाओ 2. रहम - दया, कृपा, मेहरबानी, इनायत 3.पुरखतर - भीषण, भयानक, अत्यन्त खतनराक
4. फना - (i) मृत्यु, मौत (ii) विनाश, बर्बादी
*****
कमाले - बुजदिली है पस्त होना अपनी नजरों में,
अगर थोड़ी-सी हिम्मत हो तो फिर क्या हो नहीं सकता।
-चकबस्त लखनवी
1. कमाले–बुजदिली - अव्वल दर्जे की नासमझी या डरपोकपन, नादानी की चरमसीमा 2. पस्त - नीचा, हीन, छोटा
*****
कश्ती को भंवर में घिरने दो, मौजों के थपेड़े सहने दे,
जिन्दों में अगर जीना है तुम्हें, तूफान की हलचल रहने दे।
-सागर
*****
कहा था सबने डूबेगी यह कश्ती,
मगर हम जानकर बैठे उसी में।
-खलीक बीकानेरी
*****
कहो नाखुदा से उठा दे वह लंगर,
मैं तूफां की जिद देखना चाहता हूँ।
1. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, कर्णधार
कारवां चलते हैं मंजिल का सहारा लेकर,
और मंजिल की कशिश रहनुमा होती है।
1. रहनुमा - मार्गदर्शक, पथप्रदर्शक, रास्ता दिखाने वाला
*****
किश्ती को तूफान से बचाना तो सहज है,
तूफान के वकार का दिल टूट जायेगा।
-नरेश कुमार 'शाद'
1. वकार - प्रतिष्ठा, इज्जत
*****
किस लिये शिकवा करें हम कातिबे-तकदीर का,
दिन बदल सकते है जब इन्सान के तदबीर से।
1. कातिबे-तकदीर - तकदीर लिखने वाला
2. तदबीर - (i) मेहनत, परिश्रम, प्रयत्न, कोशिश (ii) उपचार, इलाज
*****
कुछ और बढ़ाओ अब लो मशाल हिम्मत की,
मंजिल के करीब आकर बढ़ती है थकन यारों।
कुछ लोग हैं कि वक्त के साँचे में ढल गये,
कुछ लोग हैं कि वक्त के साँचे बदल गये।
*****
कुछ समझकर ही हुआ हूँ मौजे-दरिया का हरीफ,
वरना मैं भी जानता हूँ आफियत साहिल में है।
-वहशत कलकतवी
1.हरीफ – प्रतिद्वंद्वी, जिससे मुकाबला हो
2. आफियत - सुकून, सुख, चैन, आराम 3. साहिल - किनारा
*****
क्यों किसी रहबर से पुछूं अपनी मंजिल का पता,
मौजे-दरिया खुद लगा लेती है साहिल का पता।
-'आर्जू' लखनवी
1. रहबर - पथप्रदर्शक, रास्ता दिखाने वाला 2. साहिल - तट, किनारा
*****
खताओं पर खताएं हो रही थी नावकअफगन से,
इधर तीरों से बनता जा रहा था आशियाँ अपना।
1. खताओं - गलतियाँ 2. नावकअफगन - तीर चलाने वाला, तीरंदाज
खा-खा के शिकस्त फतह पाना सीखो
गिरदाब में कहकहा लगाना सीखो,
इसे दौरे –तलातुम में अगर जीना है
खुद अपने को तूफान बनाना सीखो।
-नजीर बनारसी
1. शिकस्त - पराजय, पराभव, हार 2. फतह - विजय, जीत, कामयाबी, सफलता 3. गिरदाब - भंवर, जलावर्त 4. दौरे–तलातुम - तूफानी दौर, पानी का मौजें मारना,बाढ़, तुग्यानी
*****
खाते रहे फरेब, संभलते रहे कदम,
चलते रहे जुनूं का सहारा लिये हुए।
-'शारक' मेरठी
1. जुनूं - उन्माद, पागलपन
*****
खिरदमंदों से क्या पुछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फिक्र में रहता हूँ मेरी इन्तिहा क्या है,
खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तकदीर से पहले
खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है?
-मोहम्मद इकबाल
1.खिरदमंदों - बुद्धिमानों, अक्लमंदों 2. इब्तिदा - प्रारम्भ, आरम्भ, शुरूआत
3. इन्तिहा - अंत, आखिरी हद या छोर 4. रजा - इच्छा, तमन्ना, ख्वाहिश
*****
खुद यकीं होता नहीं जिनको अपनी मंजिल का,
उनको राह के पत्थर कभी रास्ता नहीं देते।
*****
अगर ऐ नाखुदा तूफान से लड़ने का दमखम है,
इधर कश्ती को मत लाना, इधर पानी बहुत कम है।
1. नाखुदा - मल्लाह, केवट, नाविक, कर्णधार
2. दमखम - शक्ति, हिम्मत, उत्साह, उमंग, हौसला
*****
अगर शोलाजन आशियाँ है तो क्या है,
बना लूँगा ऐसे, हजार आशियाँ मैं।
-निहाल सेहरारवी
1. शोलाजन - जलता हुआ, जिससे शोले निकल रहे हो
2. आशियाँ - घोसला, नीड़
*****
'अदम' इन्सान जब गहरी नजर डाले हवादिस पर,
तो इनमें बेहतरी के भी बहुत असबाब होते हैं।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1. हवादिस - दुर्घटनाओं 2. असबाब - सामान
*****
अपना जमाना आप बनाते हैं अहले-दिल,
हम वो नहीं है जिसको जमाना बना गया।
-'जिगर' मुरादाबाद
1. अहले-दिल - दिलवाले, साहसी, हिम्मती
अभी तो बहुत दूर है तुमको जाना,
है पुरपेच राहों से होकर गुजरना।
संभलकर है गिरना, है गिरकर संभलना,
कहाँ तक चलोगे किसी के सहारे।
-अफसर मेरठी
*****
अभी मरना बहुत दुश्वार है गम की कशाकश से,
अदा हो जायेगा यह फर्ज भी फुर्सत अगर होगी।
-नजर लखनवी
1. कशाकश - (i) खींचतान, खीचा-खींची, संघर्ष (ii) चढ़ा-ऊîपरी, स्पर्धा (iii) असमंजस
*****
अहले-हिम्मत ने हुसूले-मुद्दआ में जान दी,
और हम बैठे हुए रोया किये तकदीर को।
-असर लखनवी
1.अहले-हिम्मत - साहसी, हिम्मती 2. हुसूले-मुद्दआ - उद्देश्य की प्राप्ति
*****
आशियाँ फूंका है बिजली ने जहाँ सौ मर्तबा,
फिर उन्हीं शाखों पै, तरहे-आशियाँ रखता हूँ मैं।
-निहाल सेहरारवी
1. तरहे-आशियाँ - घोसले की नींव या बुनियाद
आहन नहीं कि चाहे जिधर मोड़ दीजिए,
शीशा हूँ मुड़ तो सकता नही, तोड़ दीजिए।
पत्थर तो रोज आते ही रहते हैं सहन में
हल इसका यह नहीं है कि घर छोड़ दीजिए।
1. आहन - लोहा, लौह 2. सहन - आंगन, अँगनाई
*****
इन्सान मुसीबत में हिम्मत न अगर हारे,
आसाँ से वह आसां है, मुश्किल से जो मुश्किल है।
-'सफी' लखनवी
*****
इब्तिदा में हर मुसीबत पर लरज जाता था दिल,
अब कोई गम इम्तिहाने-इश्क के काबिल नहीं।
1. इब्तिदा - शुरू, आरम्भ
*****
इरादे-कोहशिकन फौलाद जैसे दस्तोबाजू है,
मैं लंगर उठाने वाला हूँ तूफां को बता देना।
1.इरादे-कोहशिकन - पर्वत को तोड़ने वाला
इसी दुनिया की अक्सर तल्खियों में मुझको समझाया,
कि हिम्मत हो तो फिर है जहर भी इक चीज खाने की।
-'नैयर' अकबराबादी
1. तल्खियां- कटुता, कड़वाहट, अरूचिकर बातें
*****
इसी पै नाज घड़ी-दो-घड़ी जली होगी,
इसी पै शम्अ हमारी बराबरी होगी।
-'सफी' लखनवी
*****
उन्हीं को हम जहाँ में रहरवे-कामिल समझते हैं,
जो हस्ती को सफर और कब्र को मंजिल समझते हैं।
-बर्क
1. रहरव - पथिक, बटोही, मुसाफिर 2. कामिल - (i) निपुण, दक्ष, होशियार, चमत्कारी (ii) समूचा, सम्पूर्ण (iii) बिल्कुल, मुकम्मल, सर्वांगपूर्ण
*****
उन्हें सआदते-मंजिलरसी नसीब क्या होगी,
वह पाँव जो राहे-तलब में डगमगा न सके।
-जिगर मुरादाबादी
1. सआदत - प्रताप, तेज, इकबाल 2. मंजिलरसी - मंजिल
की प्राप्ति, मंजिल तक पहुंच 3. राहे-तलब - रास्ते की खोज
एक पत्थर की तकदीर भी संवर सकती है,
शर्त यह है कि उसे सलीके से संवारा जाए।
*****
एक मौज मचल जाए तो तूफां बन जाये,
एक फूल अगर चाहे तो गुलिस्तां बन जाये।
एक खून के कतरे में है तासीर इतनी
एक कौम की तारीख का उन्वान बन जाये।
-अब्दुल हमीद 'अदम'
1. तासीर - असर, प्रभाव 2. तारीख - इतिहास 3. उन्वान - विषय
*****
ऐ ताइरे-लाहूती, उस रिज्क से मौत अच्छी,
जिस रिज्क से आती हो,परवाज में कोताही।
-मोहम्मद इकबाल
1. ताइरे-लाहूती – आकाश में उड़ने वाला पंक्षी या
परिंदा 2. रिज्क - जीविका, रोजी, अन्न 3. परवाज - उड़ान
4. कोताही - (i) कमी ii) त्रुटि, खामी (iii) भूल
*****
ऐ देखने वाले साहिल से, मौजों से लिपट, तूफां से उलझ,
नज्जारा-ए-तूफां करने से, अन्दाजए-तूफां क्या होगा।
1. साहिल - किनारा, तट
कनाअत न कर आलमे-रंगो-बू पर,
चमन और भी, आशियां और भी है।
तू शाही है परवाज है काम तेरा,
तेरे सामने आसमां और भी है।
-मोहम्मद इकबाल
1. कनाअत - संतोष 2. आलम - जगत्, संसार, दुनिया 3. रंगो-बू - फूलों का रंग और उनका सुगंध (या दुनिया की रंगीनियाँ) 4. शाही - बाज पक्षी, श्येन 5.परवाज - उड़ान
*****
कनारों से मुझे ऐ नाखुदा तुम दूर ही रखना,
तहाँ लेकर चलो तूफां जहाँ से उठने वाला है।
1. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, कर्णधार
*****
कफस में खींच ले जाए मुकद्दर या निशेमन में,
हमें परवाजे-मतलब है, हवा कोई भी चलती हो।
-सीमाब अकबराबादी
1. कफस - पिंजड़ा, कारागार 2. निशेमन - घोंसला, नीड़
3. परवाजे - उड़ान
*****
कभी मौत कहती है अलहजर, कभी दर्द कहता है रहम कर,
मैं वह राह चलता हूँ पुरखतर कि जहाँ फना का गुजर नहीं।
-असर लखनवी
1.अलहजर - बस करो, बचाओ 2. रहम - दया, कृपा, मेहरबानी, इनायत 3.पुरखतर - भीषण, भयानक, अत्यन्त खतनराक
4. फना - (i) मृत्यु, मौत (ii) विनाश, बर्बादी
*****
कमाले - बुजदिली है पस्त होना अपनी नजरों में,
अगर थोड़ी-सी हिम्मत हो तो फिर क्या हो नहीं सकता।
-चकबस्त लखनवी
1. कमाले–बुजदिली - अव्वल दर्जे की नासमझी या डरपोकपन, नादानी की चरमसीमा 2. पस्त - नीचा, हीन, छोटा
*****
कश्ती को भंवर में घिरने दो, मौजों के थपेड़े सहने दे,
जिन्दों में अगर जीना है तुम्हें, तूफान की हलचल रहने दे।
-सागर
*****
कहा था सबने डूबेगी यह कश्ती,
मगर हम जानकर बैठे उसी में।
-खलीक बीकानेरी
*****
कहो नाखुदा से उठा दे वह लंगर,
मैं तूफां की जिद देखना चाहता हूँ।
1. नाखुदा - मल्लाह, नाविक, कर्णधार
कारवां चलते हैं मंजिल का सहारा लेकर,
और मंजिल की कशिश रहनुमा होती है।
1. रहनुमा - मार्गदर्शक, पथप्रदर्शक, रास्ता दिखाने वाला
*****
किश्ती को तूफान से बचाना तो सहज है,
तूफान के वकार का दिल टूट जायेगा।
-नरेश कुमार 'शाद'
1. वकार - प्रतिष्ठा, इज्जत
*****
किस लिये शिकवा करें हम कातिबे-तकदीर का,
दिन बदल सकते है जब इन्सान के तदबीर से।
1. कातिबे-तकदीर - तकदीर लिखने वाला
2. तदबीर - (i) मेहनत, परिश्रम, प्रयत्न, कोशिश (ii) उपचार, इलाज
*****
कुछ और बढ़ाओ अब लो मशाल हिम्मत की,
मंजिल के करीब आकर बढ़ती है थकन यारों।
कुछ लोग हैं कि वक्त के साँचे में ढल गये,
कुछ लोग हैं कि वक्त के साँचे बदल गये।
*****
कुछ समझकर ही हुआ हूँ मौजे-दरिया का हरीफ,
वरना मैं भी जानता हूँ आफियत साहिल में है।
-वहशत कलकतवी
1.हरीफ – प्रतिद्वंद्वी, जिससे मुकाबला हो
2. आफियत - सुकून, सुख, चैन, आराम 3. साहिल - किनारा
*****
क्यों किसी रहबर से पुछूं अपनी मंजिल का पता,
मौजे-दरिया खुद लगा लेती है साहिल का पता।
-'आर्जू' लखनवी
1. रहबर - पथप्रदर्शक, रास्ता दिखाने वाला 2. साहिल - तट, किनारा
*****
खताओं पर खताएं हो रही थी नावकअफगन से,
इधर तीरों से बनता जा रहा था आशियाँ अपना।
1. खताओं - गलतियाँ 2. नावकअफगन - तीर चलाने वाला, तीरंदाज
खा-खा के शिकस्त फतह पाना सीखो
गिरदाब में कहकहा लगाना सीखो,
इसे दौरे –तलातुम में अगर जीना है
खुद अपने को तूफान बनाना सीखो।
-नजीर बनारसी
1. शिकस्त - पराजय, पराभव, हार 2. फतह - विजय, जीत, कामयाबी, सफलता 3. गिरदाब - भंवर, जलावर्त 4. दौरे–तलातुम - तूफानी दौर, पानी का मौजें मारना,बाढ़, तुग्यानी
*****
खाते रहे फरेब, संभलते रहे कदम,
चलते रहे जुनूं का सहारा लिये हुए।
-'शारक' मेरठी
1. जुनूं - उन्माद, पागलपन
*****
खिरदमंदों से क्या पुछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फिक्र में रहता हूँ मेरी इन्तिहा क्या है,
खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तकदीर से पहले
खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है?
-मोहम्मद इकबाल
1.खिरदमंदों - बुद्धिमानों, अक्लमंदों 2. इब्तिदा - प्रारम्भ, आरम्भ, शुरूआत
3. इन्तिहा - अंत, आखिरी हद या छोर 4. रजा - इच्छा, तमन्ना, ख्वाहिश
*****
खुद यकीं होता नहीं जिनको अपनी मंजिल का,
उनको राह के पत्थर कभी रास्ता नहीं देते।
*****
Monday, October 25, 2010
Gharibi --- Muflisi --- sher (Desh Ratna's Collection)
घर की दीवार पे कौवे नहीं अच्छे लगते
मुफ़लिसी में ये तमाशे नहीं अच्छे लगते
मुफ़लिसी ने सारे आँगन में अँधेरा कर दिया
भाई ख़ाली हाथ लौटे और बहनें बुझ गईं
अमीरी रेशम—ओ—कमख़्वाब में नंगी नज़र आई
ग़रीबी शान से इक टाट के पर्दे में रहती है
इसी गली में वो भूका किसान रहता है
ये वो ज़मीं है जहाँ आसमान रहता है
दहलीज़ पे सर खोले खड़ी होग ज़रूरत
अब ऐसे घर में जाना मुनासिब नहीं होगा
ईद के ख़ौफ़ ने रोज़ों का मज़ा छीन लिया
मुफ़लिसी में ये महीना भी बुरा लगता है
अपने घर में सर झुकाये इस लिए आया हूँ मैं
इतनी मज़दूरी तो बच्चे की दुआ खा जायेगी
अल्लाह ग़रीबों का मददगार है ‘राना’!
हम लोगों के बच्चे कभी सर्दी नहीं खाते
बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है
रहते—रहते स्टेशन पर लोग कुली हो जाते हैं
मुफ़लिसी में ये तमाशे नहीं अच्छे लगते
मुफ़लिसी ने सारे आँगन में अँधेरा कर दिया
भाई ख़ाली हाथ लौटे और बहनें बुझ गईं
अमीरी रेशम—ओ—कमख़्वाब में नंगी नज़र आई
ग़रीबी शान से इक टाट के पर्दे में रहती है
इसी गली में वो भूका किसान रहता है
ये वो ज़मीं है जहाँ आसमान रहता है
दहलीज़ पे सर खोले खड़ी होग ज़रूरत
अब ऐसे घर में जाना मुनासिब नहीं होगा
ईद के ख़ौफ़ ने रोज़ों का मज़ा छीन लिया
मुफ़लिसी में ये महीना भी बुरा लगता है
अपने घर में सर झुकाये इस लिए आया हूँ मैं
इतनी मज़दूरी तो बच्चे की दुआ खा जायेगी
अल्लाह ग़रीबों का मददगार है ‘राना’!
हम लोगों के बच्चे कभी सर्दी नहीं खाते
बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है
रहते—रहते स्टेशन पर लोग कुली हो जाते हैं
बच्चे - shayari (Desh Ratna's Collection)
दौलत से मुहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन
बच्चों ने खिलौनों की तरफ़ देख लिया था
जिस्म पर मेरे बहुत शफ़्फ़ाफ़ कपड़े थे मगर
धूल मिट्टी में अटा बेटा बहुत अच्छा लगा
कम से बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर
ऐसे मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ
क़सम देता है बच्चों की, बहाने से बुलाता है
धुआँ चिमनी का हमको कारख़ाने से बुलाता है
बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद
अब जाग भी जाते हैं तो सहरी नहीं खाते
इन्हें फ़िरक़ा परस्ती मत सिखा देना कि ये बच्चे
ज़मी से चूम कर तितली के टूटे पर उठाते हैं
सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता
बिछड़ते वक़्त भी चेहरा नहीं उतरता है
यहाँ सरों से दुपट्टा नहीं उतरता है
कानों में कोई फूल भी हँस कर नहीं पहना
उसने भी बिछड़ कर कभी ज़ेवर नहीं पहना
मुझे बुलाता है मक़्तल मैं किस तरह जाऊँ
कि मेरी गोद से बच्चा नहीं उतरता है
शर्म आती है मज़दूरी बताते हुए हमको
इतने में तो बच्चों का ग़ुबारा नहीं मिलता
तलवार तो क्या मेरी नज़र तक नहीं उठ्ठी
उस शख़्स के बच्चों की तरफ़ देख लिया था
रेत पर खेलते बच्चों को अभी क्या मालूम
कोई सैलाब घरौंदा नहीं रहने देता
धुआँ बादल नहीं होता कि बचपन दौड़ पड़ता है
ख़ुशी से कौन बच्चा कारखाने तक पहुँचता है
मैं चाहूँ तो मिठाई की दुकानें खोल सकता हूँ
मगर बचपन हमेशा रामदाने तक पहुँचता है
हवा के रुख़ पे रहने दो ये जलना सीख जाएगा
कि बच्चा लड़खड़ाएगा तो चलना सीख जाएगा
इक सुलगते शहर में बच्चा मिला हँसता हुआ
सहमे—सहमे—से चराग़ों के उजाले की तरह
मैंने इक मुद्दत से मस्जिद नहीं देखी मगर
एक बच्चे का अज़ाँ देना बहुत अच्छा लगा
इन्हें अपनी ज़रूरत के ठिकाने याद रहते हैं
कहाँ पर है खिलौनों की दुकाँ बच्चे समझते हैं
ज़माना हो गया दंगे में इस घर को जले लेकिन
किसी बच्चे के रोने की सदाएँ रोज़ आती हैं
फ़रिश्ते आ के उनके जिस्म पर ख़ुशबू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बे में जो झाड़ू लगाते हैं
हुमकते खेलते बच्चों की शैतानी नहीं जाती
मगर फिर भी हमारे घर की वीरानी नहीं जाती
अपने मुस्तक़्बिल की चादर पर रफ़ू करते हुए
मस्जिदों में देखिये बच्चे वज़ू करते हुए
मुझे इस शहर की सब लड़कियाँ आदाब करती हैं
मैं बच्चों की कलाई के लिए राखी बनाता हूँ
घर का बोझ उठाने वाले बच्चे की तक़दीर न पूछ
बचपन घर से बाहर निकला और खिलौना टूट गया
जो अश्क गूँगे थे वो अर्ज़े—हाल करने लगे
हमारे बच्चे हमीं पर सवाल करने ल्गे
जब एक वाक़्या बचपन का हमको याद आया
हम उन परिंदों को फिर से घरों में छोड़ आए
भरे शहरों में क़ुर्बानी का मौसम जबसे आया है
मेरे बच्चे कभी होली में पिचकारी नहीं लाते
मस्जिद की चटाई पे ये सोते हुए बच्चे
इन बच्चों को देखो, कभी रेशम नहीं देखा
भूख से बेहाल बच्चे तो नहीं रोये मगर
घर का चूल्हा मुफ़लिसी की चुग़लियाँ खाने लगा
बच्चों ने खिलौनों की तरफ़ देख लिया था
जिस्म पर मेरे बहुत शफ़्फ़ाफ़ कपड़े थे मगर
धूल मिट्टी में अटा बेटा बहुत अच्छा लगा
कम से बच्चों के होंठों की हँसी की ख़ातिर
ऐसे मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊँ
क़सम देता है बच्चों की, बहाने से बुलाता है
धुआँ चिमनी का हमको कारख़ाने से बुलाता है
बच्चे भी ग़रीबी को समझने लगे शायद
अब जाग भी जाते हैं तो सहरी नहीं खाते
इन्हें फ़िरक़ा परस्ती मत सिखा देना कि ये बच्चे
ज़मी से चूम कर तितली के टूटे पर उठाते हैं
सबके कहने से इरादा नहीं बदला जाता
हर सहेली से दुपट्टा नहीं बदला जाता
बिछड़ते वक़्त भी चेहरा नहीं उतरता है
यहाँ सरों से दुपट्टा नहीं उतरता है
कानों में कोई फूल भी हँस कर नहीं पहना
उसने भी बिछड़ कर कभी ज़ेवर नहीं पहना
मुझे बुलाता है मक़्तल मैं किस तरह जाऊँ
कि मेरी गोद से बच्चा नहीं उतरता है
शर्म आती है मज़दूरी बताते हुए हमको
इतने में तो बच्चों का ग़ुबारा नहीं मिलता
तलवार तो क्या मेरी नज़र तक नहीं उठ्ठी
उस शख़्स के बच्चों की तरफ़ देख लिया था
रेत पर खेलते बच्चों को अभी क्या मालूम
कोई सैलाब घरौंदा नहीं रहने देता
धुआँ बादल नहीं होता कि बचपन दौड़ पड़ता है
ख़ुशी से कौन बच्चा कारखाने तक पहुँचता है
मैं चाहूँ तो मिठाई की दुकानें खोल सकता हूँ
मगर बचपन हमेशा रामदाने तक पहुँचता है
हवा के रुख़ पे रहने दो ये जलना सीख जाएगा
कि बच्चा लड़खड़ाएगा तो चलना सीख जाएगा
इक सुलगते शहर में बच्चा मिला हँसता हुआ
सहमे—सहमे—से चराग़ों के उजाले की तरह
मैंने इक मुद्दत से मस्जिद नहीं देखी मगर
एक बच्चे का अज़ाँ देना बहुत अच्छा लगा
इन्हें अपनी ज़रूरत के ठिकाने याद रहते हैं
कहाँ पर है खिलौनों की दुकाँ बच्चे समझते हैं
ज़माना हो गया दंगे में इस घर को जले लेकिन
किसी बच्चे के रोने की सदाएँ रोज़ आती हैं
फ़रिश्ते आ के उनके जिस्म पर ख़ुशबू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बे में जो झाड़ू लगाते हैं
हुमकते खेलते बच्चों की शैतानी नहीं जाती
मगर फिर भी हमारे घर की वीरानी नहीं जाती
अपने मुस्तक़्बिल की चादर पर रफ़ू करते हुए
मस्जिदों में देखिये बच्चे वज़ू करते हुए
मुझे इस शहर की सब लड़कियाँ आदाब करती हैं
मैं बच्चों की कलाई के लिए राखी बनाता हूँ
घर का बोझ उठाने वाले बच्चे की तक़दीर न पूछ
बचपन घर से बाहर निकला और खिलौना टूट गया
जो अश्क गूँगे थे वो अर्ज़े—हाल करने लगे
हमारे बच्चे हमीं पर सवाल करने ल्गे
जब एक वाक़्या बचपन का हमको याद आया
हम उन परिंदों को फिर से घरों में छोड़ आए
भरे शहरों में क़ुर्बानी का मौसम जबसे आया है
मेरे बच्चे कभी होली में पिचकारी नहीं लाते
मस्जिद की चटाई पे ये सोते हुए बच्चे
इन बच्चों को देखो, कभी रेशम नहीं देखा
भूख से बेहाल बच्चे तो नहीं रोये मगर
घर का चूल्हा मुफ़लिसी की चुग़लियाँ खाने लगा
Sunday, October 24, 2010
माँ -- शायरी --- देश रत्न की संग्राहिका से
जला अस्थियां बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाए
दीए से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है।
__________
हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते
————————————
हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं
————————————
हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह
————————————
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
————————————
सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं
————————————
मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है
————————————
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
————————————
भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े
————————————
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
————————————
तार पर बैठी हुई चिड़ियों को सोता देख कर
फ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा
————————————
इस चेहरे में पोशीदा है इक क़ौम का चेहरा
चेहरे का उतर जाना मुनासिब नहीं होगा
————————————
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है
————————————
मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है
————————————
जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
————————————
देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले
देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई
————————————
मुझे भी उसकी जदाई सताती रहती है
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है
————————————
मुफ़लिसी घर में ठहरने नहीं देती उसको
और परदेस में बेटा नहीं रहने देता
————————————
अगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता
परिन्दों के न होने पर शजर अच्छा नहीं लगता
————————————
गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं
————————————
कभी —कभी मुझे यूँ भी अज़ाँ बुलाती है
शरीर बच्चे को जिस तरह माँ बुलाती है
————————————
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
————————————
ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
————————————
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
————————————
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
————————————
मेरा खुलूस तो पूरब के गाँव जैसा है
सुलूक दुनिया का सौतेली माओं जैसा है
————————————
रौशनी देती हुई सब लालटेनें बुझ गईं
ख़त नहीं आया जो बेटों का तो माएँ बुझ गईं
————————————
वो मैला—सा बोसीदा—सा आँचल नहीं देखा
बरसों हुए हमने कोई पीपल नहीं देखा
————————————
कई बातें मुहब्बत सबको बुनियादी बताती है
जो परदादी बताती थी वही दादी बताती है
हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए
माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे
हवा उड़ाए लिए जा रही है हर चादर
पुराने लोग सभी इन्तेक़ाल करने लगे
ऐ ख़ुदा ! फूल —से बच्चों की हिफ़ाज़त करना
मुफ़लिसी चाह रही है मेरे घर में रहना
हमें हरीफ़ों की तादाद क्यों बताते हो
हमारे साथ भी बेटा जवान रहता है
ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे
जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई
ख़ुदा करे कि उम्मीदों के हाथ पीले हों
अभी तलक तो गुज़ारी है इद्दतों की तरह
घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें
मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है
यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा
ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा
स्टेशन से वापस आकर बूढ़ी आँखें सोचती हैं
पत्ते देहाती रहते हैं फल शहरी हो जाते हैं
अब देखिये कौम आए जनाज़े को उठाने
यूँ तार तो मेरे सभी बेटों को मिलेगा
अब अँधेरा मुस्तक़िल रहता है इस दहलीज़ पर
जो हमारी मुन्तज़िर रहती थीं आँखें बुझ गईं
अगर किसी की दुआ में असर नहीं होता
तो मेरे पास से क्यों तीर आ के लौट गया
अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
कहीं बे्नूर न हो जायें वो बूढ़ी आँखें
घर में डरते थे ख़बर भी मेरे भाई देते
क्या जाने कहाँ होते मेरे फूल-से बच्चे
विरसे में अगर माँ की दुआ भी नहीं मिलती
कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
क़दमों में ला के डाल दीं सब नेमतें मगर
सौतेली माँ को बच्चे से नफ़रत वही रही
धँसती हुई क़ब्रों की तरफ़ देख लिया था
माँ बाप के चेहरों मी तरफ़ देख लिया था
कोई दुखी हो कभी कहना नहीं पड़ता उससे
वो ज़रूरत को तलबगार से पहचानता है
किसी को देख कर रोते हुए हँसना नहीं अच्छा
ये वो आँसू हैं जिनसे तख़्ते—सुल्तानी पलटता है
दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है
दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है
दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके
महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा
खिलौनों की तरफ़ बच्चे को माँ जाने नहीं देती
मगर आगे खिलौनों की दुकाँ जाने नहीं देती
दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क आँखें तो दिखाने दो
कहीं बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है
बहन का प्यार माँ की मामता दो चीखती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था
बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है
बड़ी बेचारगी से लौटती बारात तकते हैं
बहादुर हो के भी मजबूर होते हैं दुल्हन वाले
खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही
मेरा बचपन था मेरा घर था खिलौने थे मेरे
सर पे माँ बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था
मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
मैं वो मेले में भटकता हुआ इक बच्चा हूँ
जिसके माँ बाप को रोते हुए मर जाना है
मिलता—जुलता हैं सभी माँओं से माँ का चेहरा
गुरूद्वारे की भी दीवार न गिरने पाये
मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं
सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़—ए—माँ रहने दिया
घेर लेने को मुझे जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बन कर सामने माँ की दुआएँ आ गईं
मैदान छोड़ देने स्र मैं बच तो जाऊँगा
लेकिन जो ये ख़बर मेरी माँ तक पहुँच गई
‘मुनव्वर’! माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
मिट्टी लिपट—लिपट गई पैरों से इसलिए
तैयार हो के भी कभी हिजरत न कर सके
मुफ़्लिसी ! बच्चे को रोने नहीं देना वरना
एक आँसू भरे बाज़ार को खा जाएगा
मुझे खबर नहीम जन्नत बड़ी कि माँ लेकिन
लोग कहते हैं कि जन्नत बशर के नीचे है
मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत है
किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है
बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता
कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता
मोहब्बत करते जाओ बस यही सच्ची इबादत है
मोहब्बत माँ को भी मक्का—मदीना मान लेती है
माँ ये कहती थी कि मोती हैं हमारे आँसू
इसलिए अश्कों का का पीना भी बुरा लगता है
परदेस जाने वाले कभी लौट आयेंगे
लेकिन इस इंतज़ार में आँखें चली गईं
शहर के रस्ते हों चाहे गाँव की पगडंडियाँ
माँ की उँगली थाम कर चलना मुझे अच्छा लगा
मैं कोई अहसान एहसान मानूँ भी तो आख़िर किसलिए
शहर ने दौलत अगर दी है तो बेटा ले लिया
अब भी रौशन हैं तेरी याद से घर के कमरे
रौशनी देता है अब तक तेरा साया मुझको
मेरे चेहरे पे ममता की फ़रावानी चमकती है
मैं बूढ़ा हो रहा हूँ फिर भी पेशानी चमकती है
वो जा रहा है घर से जनाज़ा बुज़ुर्ग का
आँगन में इक दरख़्त पुराना नहीं रहा
वो तो लिखा के लाई है क़िस्मत में जागना
माँ कैसे सो सकेगी कि बेटा सफ़र में है
३९.
शाहज़ादे को ये मालूम नहीं है शायद
माँ नहीं जानती दस्तार का बोसा लेना
आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हम
काग़ज़ पे जब भी देख किया माँ लिखा हुआ
अभी तो मेरी ज़रूरत है मेरे बच्चों को
बड़े हुए तो ये ख़ुद इन्त्ज़ाम कर लेंगे
मैं हूँ मेरा बच्चा है खिलौनों की दुकाँ है
अब कोई मेरे पास बहाना भी नहीं है
ऐ ख़ुदा ! तू फ़ीस के पैसे अता कर दे मुझे
मेरे बच्चों को भी यूनिवर्सिटी अच्छी लगी
भीख से तो भूख अच्छी गाँव को वापस चलो
शहर में रहने से ये बच्चा बुरा हो जाएगा
खिलौनों के लिए बच्चे अभी तक जागते होंगे
तुझे ऐ मुफ़्लिसी कोई बहाना ढूँढ लेना है
ममता की आबरू को बचाया है नींद ने
बच्चा ज़मीं पे सो भी गया खेलते हुए
मेरे बच्चे नामुरादी में जवाँ भी हो गये
मेरी ख़्वाहिश सिर्फ़ बाज़ारों को तकती रह गई
बच्चों की फ़ीस, उनकी किताबें, क़लम, दवात
मेरी ग़रीब आँखों में स्कूल चुभ गया
वो समझते ही नहीं हैं मेरी मजबूरी को
इसलिए बच्चों पे ग़ुस्सा भी नहीं आता है
किसी भी रंग को पहचानना मुश्किल नहीं होता
मेरे बच्चे की सूरत देख इसको ज़र्द कहते हैं
धूप से मिल गये हैं पेड़ हमारे घर के
मैं समझती थी कि काम आएगा बेटा अपना
फिर उसको मर के भी ख़ुद से जुदा होने नहीं देती
यह मिट्टी जब किसी को अपना बेटा मान लेती है
तमाम उम्र सलामत रहें दुआ है मेरी
हमारे सर पे हैं जो हाथ बरकतों वाले
हमारी मुफ़्लिसी हमको इजाज़त तो नहीं देती
मगर हम तेरी ख़ातिर कोई शहज़ादा भी देखेंगे
माँ—बाप की बूढ़ी आँखों में इक फ़िक़्र—सी छाई रहती है
जिस कम्बल में सब सोते थे अब वो भी छोटा पड़ता है
दोस्ती दुश्मनी दोनों शामिल रहीं दोस्तों की नवाज़िश थी कुछ इस तरह
काट ले शोख़ बच्चा कोई जिस तरह माँ के रुख़सार पर प्यार करते हुए
माँ की ममता घने बादलों की तरह सर पे साया किए साथ चलती रही
एक बच्चा किताबें लिए हाथ में ख़ामुशी से सड़क पार करते हुए
दुख बुज़ुर्गों ने काफ़ी उठाए मगर मेरा बचपन बहुत ही सुहाना रहा
उम्र भर धूप में पेड़ जलते रहे अपनी शाख़ें समरदार करते हुए
चलो माना कि शहनाई मसर्रत की निशानी है
मगर वो शख़्स जिसकी आ के बेटी बैठ जाती है
अभी मौजूद है इस गाँव की मिट्टी में ख़ुद्दारी
अभी बेवा की ग़ैरत से महाजन हार जाता है
मालूम नहीं कैसे ज़रूरत निकल आई
सर खोले हुए घर से शराफ़त निकल आई
इसमें बच्चों की जली लाशों की तस्वीरें हैं
देखना हाथ से अख़बार न गिरने पाये
ओढ़े हुए बदन पे ग़रीबी चले गये
बहनों को रोता छोड़ के भाई चले गये
किसी बूढ़े की लाठी छिन गई है
वो देखो इक जनाज़ा जा रहा है
आँगन की तक़सीम का क़िस्सा
मैं जानूँ या बाबा जानें
हमारी चीखती आँखों ने जलते शहर देखे हैं
बुरे लगते हैं अब क़िस्से हमॆं भाई —बहन वाले
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाए
दीए से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है।
__________
हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते
————————————
हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं
————————————
हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह
————————————
सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते
————————————
सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं
————————————
मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है
————————————
मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना
————————————
भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े
————————————
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती
————————————
तार पर बैठी हुई चिड़ियों को सोता देख कर
फ़र्श पर सोता हुआ बेटा बहुत अच्छा लगा
————————————
इस चेहरे में पोशीदा है इक क़ौम का चेहरा
चेहरे का उतर जाना मुनासिब नहीं होगा
————————————
अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाहों में छुपा लेती है
————————————
मुसीबत के दिनों में हमेशा साथ रहती है
पयम्बर क्या परेशानी में उम्मत छोड़ सकता है
————————————
जब तक रहा हूँ धूप में चादर बना रहा
मैं अपनी माँ का आखिरी ज़ेवर बना रहा
————————————
देख ले ज़ालिम शिकारी ! माँ की ममता देख ले
देख ले चिड़िया तेरे दाने तलक तो आ गई
————————————
मुझे भी उसकी जदाई सताती रहती है
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है
————————————
मुफ़लिसी घर में ठहरने नहीं देती उसको
और परदेस में बेटा नहीं रहने देता
————————————
अगर स्कूल में बच्चे हों घर अच्छा नहीं लगता
परिन्दों के न होने पर शजर अच्छा नहीं लगता
————————————
गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं
————————————
कभी —कभी मुझे यूँ भी अज़ाँ बुलाती है
शरीर बच्चे को जिस तरह माँ बुलाती है
————————————
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
————————————
ऐ अँधेरे! देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
————————————
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
————————————
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ
————————————
मेरा खुलूस तो पूरब के गाँव जैसा है
सुलूक दुनिया का सौतेली माओं जैसा है
————————————
रौशनी देती हुई सब लालटेनें बुझ गईं
ख़त नहीं आया जो बेटों का तो माएँ बुझ गईं
————————————
वो मैला—सा बोसीदा—सा आँचल नहीं देखा
बरसों हुए हमने कोई पीपल नहीं देखा
————————————
कई बातें मुहब्बत सबको बुनियादी बताती है
जो परदादी बताती थी वही दादी बताती है
हादसों की गर्द से ख़ुद को बचाने के लिए
माँ ! हम अपने साथ बस तेरी दुआ ले जायेंगे
हवा उड़ाए लिए जा रही है हर चादर
पुराने लोग सभी इन्तेक़ाल करने लगे
ऐ ख़ुदा ! फूल —से बच्चों की हिफ़ाज़त करना
मुफ़लिसी चाह रही है मेरे घर में रहना
हमें हरीफ़ों की तादाद क्यों बताते हो
हमारे साथ भी बेटा जवान रहता है
ख़ुद को इस भीड़ में तन्हा नहीं होने देंगे
माँ तुझे हम अभी बूढ़ा नहीं होने देंगे
जब भी देखा मेरे किरदार पे धब्बा कोई
देर तक बैठ के तन्हाई में रोया कोई
ख़ुदा करे कि उम्मीदों के हाथ पीले हों
अभी तलक तो गुज़ारी है इद्दतों की तरह
घर की दहलीज़ पे रौशन हैं वो बुझती आँखें
मुझको मत रोक मुझे लौट के घर जाना है
यहीं रहूँगा कहीं उम्र भर न जाउँगा
ज़मीन माँ है इसे छोड़ कर न जाऊँगा
स्टेशन से वापस आकर बूढ़ी आँखें सोचती हैं
पत्ते देहाती रहते हैं फल शहरी हो जाते हैं
अब देखिये कौम आए जनाज़े को उठाने
यूँ तार तो मेरे सभी बेटों को मिलेगा
अब अँधेरा मुस्तक़िल रहता है इस दहलीज़ पर
जो हमारी मुन्तज़िर रहती थीं आँखें बुझ गईं
अगर किसी की दुआ में असर नहीं होता
तो मेरे पास से क्यों तीर आ के लौट गया
अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
कहीं बे्नूर न हो जायें वो बूढ़ी आँखें
घर में डरते थे ख़बर भी मेरे भाई देते
क्या जाने कहाँ होते मेरे फूल-से बच्चे
विरसे में अगर माँ की दुआ भी नहीं मिलती
कुछ नहीं होगा तो आँचल में छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी
क़दमों में ला के डाल दीं सब नेमतें मगर
सौतेली माँ को बच्चे से नफ़रत वही रही
धँसती हुई क़ब्रों की तरफ़ देख लिया था
माँ बाप के चेहरों मी तरफ़ देख लिया था
कोई दुखी हो कभी कहना नहीं पड़ता उससे
वो ज़रूरत को तलबगार से पहचानता है
किसी को देख कर रोते हुए हँसना नहीं अच्छा
ये वो आँसू हैं जिनसे तख़्ते—सुल्तानी पलटता है
दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
माँ ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है
दुआएँ माँ की पहुँचाने को मीलों मील जाती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है
दिया है माँ ने मुझे दूध भी वज़ू करके
महाज़े-जंग से मैं लौट कर न जाऊँगा
खिलौनों की तरफ़ बच्चे को माँ जाने नहीं देती
मगर आगे खिलौनों की दुकाँ जाने नहीं देती
दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क आँखें तो दिखाने दो
कहीं बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है
बहन का प्यार माँ की मामता दो चीखती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था
बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है
बड़ी बेचारगी से लौटती बारात तकते हैं
बहादुर हो के भी मजबूर होते हैं दुल्हन वाले
खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी हैं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही
मेरा बचपन था मेरा घर था खिलौने थे मेरे
सर पे माँ बाप का साया भी ग़ज़ल जैसा था
मुक़द्दस मुस्कुराहट माँ के होंठों पर लरज़ती है
किसी बच्चे का जब पहला सिपारा ख़त्म होता है
मैं वो मेले में भटकता हुआ इक बच्चा हूँ
जिसके माँ बाप को रोते हुए मर जाना है
मिलता—जुलता हैं सभी माँओं से माँ का चेहरा
गुरूद्वारे की भी दीवार न गिरने पाये
मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं
सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़—ए—माँ रहने दिया
घेर लेने को मुझे जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बन कर सामने माँ की दुआएँ आ गईं
मैदान छोड़ देने स्र मैं बच तो जाऊँगा
लेकिन जो ये ख़बर मेरी माँ तक पहुँच गई
‘मुनव्वर’! माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती
मिट्टी लिपट—लिपट गई पैरों से इसलिए
तैयार हो के भी कभी हिजरत न कर सके
मुफ़्लिसी ! बच्चे को रोने नहीं देना वरना
एक आँसू भरे बाज़ार को खा जाएगा
मुझे खबर नहीम जन्नत बड़ी कि माँ लेकिन
लोग कहते हैं कि जन्नत बशर के नीचे है
मुझे कढ़े हुए तकिये की क्या ज़रूरत है
किसी का हाथ अभी मेरे सर के नीचे है
बुज़ुर्गों का मेरे दिल से अभी तक डर नहीं जाता
कि जब तक जागती रहती है माँ मैं घर नहीं जाता
मोहब्बत करते जाओ बस यही सच्ची इबादत है
मोहब्बत माँ को भी मक्का—मदीना मान लेती है
माँ ये कहती थी कि मोती हैं हमारे आँसू
इसलिए अश्कों का का पीना भी बुरा लगता है
परदेस जाने वाले कभी लौट आयेंगे
लेकिन इस इंतज़ार में आँखें चली गईं
शहर के रस्ते हों चाहे गाँव की पगडंडियाँ
माँ की उँगली थाम कर चलना मुझे अच्छा लगा
मैं कोई अहसान एहसान मानूँ भी तो आख़िर किसलिए
शहर ने दौलत अगर दी है तो बेटा ले लिया
अब भी रौशन हैं तेरी याद से घर के कमरे
रौशनी देता है अब तक तेरा साया मुझको
मेरे चेहरे पे ममता की फ़रावानी चमकती है
मैं बूढ़ा हो रहा हूँ फिर भी पेशानी चमकती है
वो जा रहा है घर से जनाज़ा बुज़ुर्ग का
आँगन में इक दरख़्त पुराना नहीं रहा
वो तो लिखा के लाई है क़िस्मत में जागना
माँ कैसे सो सकेगी कि बेटा सफ़र में है
३९.
शाहज़ादे को ये मालूम नहीं है शायद
माँ नहीं जानती दस्तार का बोसा लेना
आँखों से माँगने लगे पानी वज़ू का हम
काग़ज़ पे जब भी देख किया माँ लिखा हुआ
अभी तो मेरी ज़रूरत है मेरे बच्चों को
बड़े हुए तो ये ख़ुद इन्त्ज़ाम कर लेंगे
मैं हूँ मेरा बच्चा है खिलौनों की दुकाँ है
अब कोई मेरे पास बहाना भी नहीं है
ऐ ख़ुदा ! तू फ़ीस के पैसे अता कर दे मुझे
मेरे बच्चों को भी यूनिवर्सिटी अच्छी लगी
भीख से तो भूख अच्छी गाँव को वापस चलो
शहर में रहने से ये बच्चा बुरा हो जाएगा
खिलौनों के लिए बच्चे अभी तक जागते होंगे
तुझे ऐ मुफ़्लिसी कोई बहाना ढूँढ लेना है
ममता की आबरू को बचाया है नींद ने
बच्चा ज़मीं पे सो भी गया खेलते हुए
मेरे बच्चे नामुरादी में जवाँ भी हो गये
मेरी ख़्वाहिश सिर्फ़ बाज़ारों को तकती रह गई
बच्चों की फ़ीस, उनकी किताबें, क़लम, दवात
मेरी ग़रीब आँखों में स्कूल चुभ गया
वो समझते ही नहीं हैं मेरी मजबूरी को
इसलिए बच्चों पे ग़ुस्सा भी नहीं आता है
किसी भी रंग को पहचानना मुश्किल नहीं होता
मेरे बच्चे की सूरत देख इसको ज़र्द कहते हैं
धूप से मिल गये हैं पेड़ हमारे घर के
मैं समझती थी कि काम आएगा बेटा अपना
फिर उसको मर के भी ख़ुद से जुदा होने नहीं देती
यह मिट्टी जब किसी को अपना बेटा मान लेती है
तमाम उम्र सलामत रहें दुआ है मेरी
हमारे सर पे हैं जो हाथ बरकतों वाले
हमारी मुफ़्लिसी हमको इजाज़त तो नहीं देती
मगर हम तेरी ख़ातिर कोई शहज़ादा भी देखेंगे
माँ—बाप की बूढ़ी आँखों में इक फ़िक़्र—सी छाई रहती है
जिस कम्बल में सब सोते थे अब वो भी छोटा पड़ता है
दोस्ती दुश्मनी दोनों शामिल रहीं दोस्तों की नवाज़िश थी कुछ इस तरह
काट ले शोख़ बच्चा कोई जिस तरह माँ के रुख़सार पर प्यार करते हुए
माँ की ममता घने बादलों की तरह सर पे साया किए साथ चलती रही
एक बच्चा किताबें लिए हाथ में ख़ामुशी से सड़क पार करते हुए
दुख बुज़ुर्गों ने काफ़ी उठाए मगर मेरा बचपन बहुत ही सुहाना रहा
उम्र भर धूप में पेड़ जलते रहे अपनी शाख़ें समरदार करते हुए
चलो माना कि शहनाई मसर्रत की निशानी है
मगर वो शख़्स जिसकी आ के बेटी बैठ जाती है
अभी मौजूद है इस गाँव की मिट्टी में ख़ुद्दारी
अभी बेवा की ग़ैरत से महाजन हार जाता है
मालूम नहीं कैसे ज़रूरत निकल आई
सर खोले हुए घर से शराफ़त निकल आई
इसमें बच्चों की जली लाशों की तस्वीरें हैं
देखना हाथ से अख़बार न गिरने पाये
ओढ़े हुए बदन पे ग़रीबी चले गये
बहनों को रोता छोड़ के भाई चले गये
किसी बूढ़े की लाठी छिन गई है
वो देखो इक जनाज़ा जा रहा है
आँगन की तक़सीम का क़िस्सा
मैं जानूँ या बाबा जानें
हमारी चीखती आँखों ने जलते शहर देखे हैं
बुरे लगते हैं अब क़िस्से हमॆं भाई —बहन वाले
Saturday, October 23, 2010
बुलंद आवाज़ -- इंक़लाब की शायरी-- देश रत्न की संग्राहिका
तूफ़ान कर रहा था मेरे अजम का तव्वाफ़,
दुनिया समझ रही थी कि कश्ती मेरी भंवर में है .. सय्यद हुस्सैनी
Hum Jhuk Ke Mil Rahey Hai'n Toh Kamzor Math Samajh,
Phaldaar Shaakh Ho Toh Lachakti Zaroor Hai....
कह दो खुदा से कि लंगर उठा दे
मै तूफान की जिद देखना चाहता
चमक ऐसे नही आती है, खुद्दारी कि, चेहरे पर !
अना को हम ने दो दो वक्त का फाका कराया है !!
तरदामनी पै शैख़ हमारी न जाइयो,
दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें।
ना जाने किसकी दुआओं का असर है,
मैं डूब भी जाता हूँ तो दरिया उछाल देता है..
Aatish-e-barq o Sahaab paida kar
Ajal bhi kaanp utthay, wo shabaab paida kar
tu inqalaab ki aamad ka intezaar na kar
jo ho sakay, to abhi inqalaab paida kar
nahi tera nasheman qasr-e-sultani ke gumbad par
ki tu shaheen hai basera kar pahadon ki chattanooon par!
YE SAR AZEEM HAI JHUKNE KAHIN NA PAAYE 'WASEEM'
ZARA - SI JEENE KI KHWAHISH PE MAR NAHI JAANA.
bina toote koi pahad bada nahi hota,
pahad ko badhne ke liye kai baar kai jagahon se tootna padta hai..
मेरा ज़मीन गयी हैं , मेरा आसमान बाकी हैं
की टूट कर भी मेरी जान , मेरा स्वाभिमान बाकी हैं
तू कर ले गुस्ताखी मुझे नेस्तनाबूद करने की
पैदा हुएँ हैं शान से , अभी कई अरमान बाकी हैं ..
ख़िरदमन्दों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है......
यही अंदाज़ है मेरा ,समंदर फ़तह करने का ....!
मेरी कागज़ कि कश्ती में कई जुगनू भी होते हैं ..
मेरी कश्ती की रवानी देखकर तूफ़ान में
पड़ गए हैं सख़्त चक्कर में भँवर अपनी जगह..
हम भी दरिया है ,हमें अपना हुनर मालूम है ....!
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे ,रास्ता हो जाएगा ..
मैं खुद ज़मीन मेरा ज़र्फ़ आसमान का है,
कि टूट कर भी मेरा हौसला चट्टान का है..
उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है,
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है
Raah agyaar ki dekhain yeh bhale taur nahin,
Hum Bhagat Singh ke saathi hain koi aur nahin. Zindagi humse sada shola e jawaani maange,
Ilm o hikmat ka khazana humdaani maange.
aisi lalkaar ke talwaar bhi paani maange,
aisi raftaar ke dariya bhi rawaani maange
Zindaggi se zindagi ka wasta zinda rahe,
Hum rahe jab tak hamara hosla zinda rahe.
katra katra mil jao...jo tanha tanha na beh pao... kataar ki pehli boond hoon main....saath mere tum jud jaao... ek se bane hum anek, ahista se dariya ban jao, dariya dariya beh chalo....aur samandar ban jao...
tu shaheen hai, parvaz kaam hai tera,
tere aagey aasman aur bhi hai..
हमने माना जंग कड़ी है, सर फूटेंगे खून बहेगा,
खून में ग़म भी बह जायेंगे, हम ना रहें ग़म भी न रहेगा..
हमें नफरत नहीं थी अंग्रेजों की कौमी सूरत से,
हमें नफरत थी उनके अंदाजे हुकुमत से.
अगर अपनों की हुकुमत रहबर हो नहीं सकती,
तो अपनों की सूरत से भी मोहब्बत हो नहीं सकती...
aie khakh nashino uth baitho
wo waqt kareeb aa pahuncha hai
jab takht girayenge jayenge
aur taaz uchale jayenge......
दुनिया समझ रही थी कि कश्ती मेरी भंवर में है .. सय्यद हुस्सैनी
Hum Jhuk Ke Mil Rahey Hai'n Toh Kamzor Math Samajh,
Phaldaar Shaakh Ho Toh Lachakti Zaroor Hai....
कह दो खुदा से कि लंगर उठा दे
मै तूफान की जिद देखना चाहता
चमक ऐसे नही आती है, खुद्दारी कि, चेहरे पर !
अना को हम ने दो दो वक्त का फाका कराया है !!
तरदामनी पै शैख़ हमारी न जाइयो,
दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें।
ना जाने किसकी दुआओं का असर है,
मैं डूब भी जाता हूँ तो दरिया उछाल देता है..
Aatish-e-barq o Sahaab paida kar
Ajal bhi kaanp utthay, wo shabaab paida kar
tu inqalaab ki aamad ka intezaar na kar
jo ho sakay, to abhi inqalaab paida kar
nahi tera nasheman qasr-e-sultani ke gumbad par
ki tu shaheen hai basera kar pahadon ki chattanooon par!
YE SAR AZEEM HAI JHUKNE KAHIN NA PAAYE 'WASEEM'
ZARA - SI JEENE KI KHWAHISH PE MAR NAHI JAANA.
bina toote koi pahad bada nahi hota,
pahad ko badhne ke liye kai baar kai jagahon se tootna padta hai..
मेरा ज़मीन गयी हैं , मेरा आसमान बाकी हैं
की टूट कर भी मेरी जान , मेरा स्वाभिमान बाकी हैं
तू कर ले गुस्ताखी मुझे नेस्तनाबूद करने की
पैदा हुएँ हैं शान से , अभी कई अरमान बाकी हैं ..
ख़िरदमन्दों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है......
यही अंदाज़ है मेरा ,समंदर फ़तह करने का ....!
मेरी कागज़ कि कश्ती में कई जुगनू भी होते हैं ..
मेरी कश्ती की रवानी देखकर तूफ़ान में
पड़ गए हैं सख़्त चक्कर में भँवर अपनी जगह..
हम भी दरिया है ,हमें अपना हुनर मालूम है ....!
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे ,रास्ता हो जाएगा ..
मैं खुद ज़मीन मेरा ज़र्फ़ आसमान का है,
कि टूट कर भी मेरा हौसला चट्टान का है..
उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी है,
जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है
Raah agyaar ki dekhain yeh bhale taur nahin,
Hum Bhagat Singh ke saathi hain koi aur nahin. Zindagi humse sada shola e jawaani maange,
Ilm o hikmat ka khazana humdaani maange.
aisi lalkaar ke talwaar bhi paani maange,
aisi raftaar ke dariya bhi rawaani maange
Zindaggi se zindagi ka wasta zinda rahe,
Hum rahe jab tak hamara hosla zinda rahe.
katra katra mil jao...jo tanha tanha na beh pao... kataar ki pehli boond hoon main....saath mere tum jud jaao... ek se bane hum anek, ahista se dariya ban jao, dariya dariya beh chalo....aur samandar ban jao...
tu shaheen hai, parvaz kaam hai tera,
tere aagey aasman aur bhi hai..
हमने माना जंग कड़ी है, सर फूटेंगे खून बहेगा,
खून में ग़म भी बह जायेंगे, हम ना रहें ग़म भी न रहेगा..
हमें नफरत नहीं थी अंग्रेजों की कौमी सूरत से,
हमें नफरत थी उनके अंदाजे हुकुमत से.
अगर अपनों की हुकुमत रहबर हो नहीं सकती,
तो अपनों की सूरत से भी मोहब्बत हो नहीं सकती...
aie khakh nashino uth baitho
wo waqt kareeb aa pahuncha hai
jab takht girayenge jayenge
aur taaz uchale jayenge......
Thursday, October 14, 2010
राहत इन्दौरी की ग़ज़लें
मुर्ग़, माही, कबाब ज़िन्दाबाद
हर सनद हर ख़िताब ज़िन्दाबाद
मेरी बस्ती में एक दो अंधे
पढ़ चुके हर किताब ज़िन्दाबाद
यार अपना है क्या रहे न रहे
शहर की आब-ओ-ताब ज़िन्दाबाद
सीख लेते हैं गूंगे बहरे भी
नाराए-इंक़िलाब ज़िन्दाबाद
रूई की तितलियाँ सलामत बाश
काग़ज़ों के गुलाब ज़िन्दाबाद
लाख परदे में रहने वाले तुम
आजकल बेनक़ाब ज़िन्दाबाद
फिर पुरानी लतें पुराने शौक़
फिर पुरानी शराब ज़िन्दाबाद
दिन नमाज़ें नसीहतें फ़तवे
रात चंग-ओ-रबाब ज़िन्दाबाद
रोज़ दो चार छे गुनाह करो
रोज़ कारे-सवाब ज़िन्दाबाद
तूने दुनिया जवान रक्खी है
ऎ बुज़ुर्ग आफ़ताब ज़िन्दाबाद
हर सनद हर ख़िताब ज़िन्दाबाद
मेरी बस्ती में एक दो अंधे
पढ़ चुके हर किताब ज़िन्दाबाद
यार अपना है क्या रहे न रहे
शहर की आब-ओ-ताब ज़िन्दाबाद
सीख लेते हैं गूंगे बहरे भी
नाराए-इंक़िलाब ज़िन्दाबाद
रूई की तितलियाँ सलामत बाश
काग़ज़ों के गुलाब ज़िन्दाबाद
लाख परदे में रहने वाले तुम
आजकल बेनक़ाब ज़िन्दाबाद
फिर पुरानी लतें पुराने शौक़
फिर पुरानी शराब ज़िन्दाबाद
दिन नमाज़ें नसीहतें फ़तवे
रात चंग-ओ-रबाब ज़िन्दाबाद
रोज़ दो चार छे गुनाह करो
रोज़ कारे-सवाब ज़िन्दाबाद
तूने दुनिया जवान रक्खी है
ऎ बुज़ुर्ग आफ़ताब ज़िन्दाबाद
Monday, October 11, 2010
Friday, September 3, 2010
Ek Sher Ghalib Ka
तुम मुझे कभी दिल कभी आंखो से पुकारो ग़ालिब
ये होंठो का तकल्लुफ़ तो ज़माने के लिये है
ये होंठो का तकल्लुफ़ तो ज़माने के लिये है
Friday, August 20, 2010
जिस दिन से चला हूँ कभी मुड़कर नही देखा
जिस दिन से चला हूँ कभी मुड़कर नही देखा
मैने कोई गुजरा हुआ मंज़र नही देखा
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहनेवाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नही देखा
बेवक़्त अगर जाओंगा सब चोक पड़ेंगे
एक उम्र हुई दिन में कभी घर नही देखा
यह फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुमने मेरा काँटों भरा बिस्तर नही देखा
मैने कोई गुजरा हुआ मंज़र नही देखा
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहनेवाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नही देखा
बेवक़्त अगर जाओंगा सब चोक पड़ेंगे
एक उम्र हुई दिन में कभी घर नही देखा
यह फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुमने मेरा काँटों भरा बिस्तर नही देखा
Tuesday, August 17, 2010
सुना है:अहमद फ़राज़
सुना है:अहमद फ़राज़
अहमद फ़राज़ नए दौर के उर्दू शायरों में मुझे सबसे अच्छे लगते हैं| क्यों? इसका जवाब ये ग़ज़ल पढ़ के ही मिल जाएगा| बताने की जरूरत नहीं. ये ग़ज़ल यू-ट्यूब पर खुद उनकी जुबानी भी सुन सकते हैं|
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से
सो अपने आप को बरबाद करके देखते हैं
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी
सो हम भी उसकी गली से गुज़र कर देखते हैं
सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़
सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं
सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर कर देखते हैं
सुना है हश्र हैं उसकी ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुग्नू ठहर के देखते हैं
सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उसकी
सुना है शाम को साये गुज़र के देखते हैं
सुना है उसकी सियाह चश्मगी क़यामत है
सो उसको सुरमाफ़रोश आह भर के देखते हैं
सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पर इल्ज़ाम धर के देखते हैं
सुना है आईना तमसाल है जबीं उसकी
जो सादा दिल हैं उसे बन सँवर के देखते हैं
सुना है जब से हमाइल हैं उसकी गर्दन में
मिज़ाज और ही लाल-ओ-गौहर के देखते हैं
सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ में
पलंग ज़ाविए उसकी कमर के देखते हैं
सुना है उसके बदन के तराश ऐसे हैं
के फूल अपनी क़बायेँ कतर के देखते हैं
वो सर-ओ-कद है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं
के उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं
बस एक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल का
सो रहर्वान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं
सुना है उसके शबिस्तान से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीन उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं
रुके तो गर्दिशें उसका तवाफ़ करती हैं
चले तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैं
किसे नसीब के बे-पैरहन उसे देखे
कभी-कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं
कहानियाँ हीं सही सब मुबालग़े ही सही
अगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं
अब उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जायेँ
फ़राज़ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं
अहमद फ़राज़ नए दौर के उर्दू शायरों में मुझे सबसे अच्छे लगते हैं| क्यों? इसका जवाब ये ग़ज़ल पढ़ के ही मिल जाएगा| बताने की जरूरत नहीं. ये ग़ज़ल यू-ट्यूब पर खुद उनकी जुबानी भी सुन सकते हैं|
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
सुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से
सो अपने आप को बरबाद करके देखते हैं
सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी
सो हम भी उसकी गली से गुज़र कर देखते हैं
सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़
सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं
सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर कर देखते हैं
सुना है हश्र हैं उसकी ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुग्नू ठहर के देखते हैं
सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उसकी
सुना है शाम को साये गुज़र के देखते हैं
सुना है उसकी सियाह चश्मगी क़यामत है
सो उसको सुरमाफ़रोश आह भर के देखते हैं
सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पर इल्ज़ाम धर के देखते हैं
सुना है आईना तमसाल है जबीं उसकी
जो सादा दिल हैं उसे बन सँवर के देखते हैं
सुना है जब से हमाइल हैं उसकी गर्दन में
मिज़ाज और ही लाल-ओ-गौहर के देखते हैं
सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ में
पलंग ज़ाविए उसकी कमर के देखते हैं
सुना है उसके बदन के तराश ऐसे हैं
के फूल अपनी क़बायेँ कतर के देखते हैं
वो सर-ओ-कद है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं
के उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं
बस एक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल का
सो रहर्वान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं
सुना है उसके शबिस्तान से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीन उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं
रुके तो गर्दिशें उसका तवाफ़ करती हैं
चले तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैं
किसे नसीब के बे-पैरहन उसे देखे
कभी-कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं
कहानियाँ हीं सही सब मुबालग़े ही सही
अगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं
अब उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जायेँ
फ़राज़ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं
Monday, August 16, 2010
तितली sher

गुल से लिपटी हुई तितली को उड़ाकर देखो,
आंधियों तुमने दरख़्तों को गिराया होगा -
शर्मों हया से उनकी पलकों का झुकना इस तरह ''शौक''
जैसे कोई फूल झुक रहा हो एक तितली के बोझ से..
बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये .
फूलों से आगे उड़ ना सके हम
हमको मिले हैं तितली के पर
फ़कत इल्मी बातें ज़रूरी नही
कभी मासूम की ग़ज़लें भी पढ़
तितली देख पकड़ने को दिल इक बार मचलता है
उम्र कोई भी हो जाए हम सब में बचपन होता है
फूलों मे अब क्या कमी आ गयी है
काँटों पे तितली उतरने लगी है
फूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
सब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से
जो दिया था आपने, लौटा रहा है ये वही
किसलिए फिर कर रहे इतना गिला संसार से
शायर
शायर
ऊंगली के पोरों में
सख़्त गर्मी है
कलम पकड़ो
स्याही उबलती है
हर्फ़ सुलगते है
काग़ज में आग लगे
धू-धू कर जलते हैं
ग़ज़लें मशालों सी
नज़्में चिरागों सी
शेर की एक लौ
बे वक़्त भड़कती हैं
ये आग जो जलती है
हर शायर के सीने में
लफ़्ज उबलते हैं
ज़ेहन के पतीले में
कुछ तो पकता है
हर वक़्त सीने में
भाप निकलती है
माथे के पसीने में
वक़्त के पन्नों में
निशान बनातें हैं
गर्म लावा सा
बहता ही जाता है
पिघली चट्टानों सा
जहॉ जमता है
वहीं मीर व गालिब का
दीवान मिलता है
ऊंगली के पोरों में
सख़्त गर्मी है
कलम पकड़ो
स्याही उबलती है
हर्फ़ सुलगते है
काग़ज में आग लगे
धू-धू कर जलते हैं
ग़ज़लें मशालों सी
नज़्में चिरागों सी
शेर की एक लौ
बे वक़्त भड़कती हैं
ये आग जो जलती है
हर शायर के सीने में
लफ़्ज उबलते हैं
ज़ेहन के पतीले में
कुछ तो पकता है
हर वक़्त सीने में
भाप निकलती है
माथे के पसीने में
वक़्त के पन्नों में
निशान बनातें हैं
गर्म लावा सा
बहता ही जाता है
पिघली चट्टानों सा
जहॉ जमता है
वहीं मीर व गालिब का
दीवान मिलता है
शेरो-शायरी
मर जायें जो मजार ताज सी बने हाय
कौन कमबख्त जीना चाहे, मरना न चाहे
*******
हवाओं को थाम लो ये फुर्क़त की शाम है
आहिस्ता साँस लो कि अब बुझता चराग है
*******
इन्तजार के फूल तुमसे न तोड़े जाएंगे गुलचीं
शाखे मोहब्बत में, एक कली सदियों में खिलती है।
*******
हमारे तो हलक सूख रहे हैं, पानी की चंद बूंदों के लिए
न जाने कौन लोग हैं, जो दरिया में नहा कर आए हैं।
*******
शर्मों हया से उनकी पलकों का झुकना इस तरह ''शौक''
जैसे कोई फूल झुक रहा हो एक तितली के बोझ से।
*******
जुल्फ आपकी परेशां हो हजारों अश्आर बन जाए
और जो सँवर जाए तो एक ग़ज़ल बन जाए।
*******
जिन्दगी अपने आखरी मुकाम पे आके कहाँ आसरा पाती है
जैसे कांटे की नोंक पे, पानी की एक बूंद ठहर जाती है।
कौन कमबख्त जीना चाहे, मरना न चाहे
*******
हवाओं को थाम लो ये फुर्क़त की शाम है
आहिस्ता साँस लो कि अब बुझता चराग है
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इन्तजार के फूल तुमसे न तोड़े जाएंगे गुलचीं
शाखे मोहब्बत में, एक कली सदियों में खिलती है।
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हमारे तो हलक सूख रहे हैं, पानी की चंद बूंदों के लिए
न जाने कौन लोग हैं, जो दरिया में नहा कर आए हैं।
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शर्मों हया से उनकी पलकों का झुकना इस तरह ''शौक''
जैसे कोई फूल झुक रहा हो एक तितली के बोझ से।
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जुल्फ आपकी परेशां हो हजारों अश्आर बन जाए
और जो सँवर जाए तो एक ग़ज़ल बन जाए।
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जिन्दगी अपने आखरी मुकाम पे आके कहाँ आसरा पाती है
जैसे कांटे की नोंक पे, पानी की एक बूंद ठहर जाती है।
Thursday, August 12, 2010
छाती बैठ जाता है...-मुनव्वर राना
छाती बैठ जाता है...
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है,
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाता है,
यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे,
यही मौसम है अब सीने में सरदी बैठ जाता है,
चलो माना कि शहनाई मर्सरत की निशानी है,
मगर वह शख्*स जिसकी आ के बेटी बैठ जाता है,
बड़े बूढे कुऐं में नेकियां क्*यों फेंक आते हैं,
कुएं में छिप के आखि़र क्*यों ये नेकी बैठ जाता है,
नक़ाब उलटे हुये जब भी चमन से वह गुजरता है,
समझ् कर फूल उसके लब पर तितली बैठ जाती है,
सियासत नफ़रतों का ज़ख्*म भरने नहीं देती,
जहां भरने पे आता है तो मक्*खी बैठ जाती है,
वह दुशमन ही सही, आवाज दे उसको मुहब्*बत से,
सलीके से बिठा कर देख हड्डी बैठ जाती है.....
-मुनव्वर राना
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है,
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाता है,
यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे,
यही मौसम है अब सीने में सरदी बैठ जाता है,
चलो माना कि शहनाई मर्सरत की निशानी है,
मगर वह शख्*स जिसकी आ के बेटी बैठ जाता है,
बड़े बूढे कुऐं में नेकियां क्*यों फेंक आते हैं,
कुएं में छिप के आखि़र क्*यों ये नेकी बैठ जाता है,
नक़ाब उलटे हुये जब भी चमन से वह गुजरता है,
समझ् कर फूल उसके लब पर तितली बैठ जाती है,
सियासत नफ़रतों का ज़ख्*म भरने नहीं देती,
जहां भरने पे आता है तो मक्*खी बैठ जाती है,
वह दुशमन ही सही, आवाज दे उसको मुहब्*बत से,
सलीके से बिठा कर देख हड्डी बैठ जाती है.....
-मुनव्वर राना
देश रत्न की संग्राहिका 2

नये-नये रिश्तों में नई-नई सी महक साथ है
अब कौन कितनी देर महके, ये वक्त की बात है।
*******
दरमियाँ दो दिलों के हजारों बंदिशें हैं
किस-किस का नाम लें, किस-किस को छोड़ दें।
*******
मैं खैफजदा हूँ कहीं वो खुदा न बन जाए
तमाम उम्र करूं इबादत, वो नजर न आए।
*******
ये कोई चराग नहीं जो जल के बुझ जाएं बार-बार
ये मेरा यार चाँद है, इसकी रौनक के क्या कहने।
*******
माँगो तो उस रब से माँगो जो सबका दाता है
इंसानों की बात न करिए, जो नंगे बदन आता है
*******
नकाब के दम पे, वो चेहरा छुपाए रखा है
गुनाहगार खुद को रहनुमा बनाए रखा है
*******
मुझपर तू इतना हक़ न जता
कि मुझको मुझसे जुदा कर दे।
*******
Wednesday, August 4, 2010
Desh Ratna ki Sangrahika
apane Khuu-e-vafaa se Darataa huu.N aashiqii ba.ndagii na ho jaae ~Bekhud Dehlvi ~
Mumkin nahi ke bazm e tarab phir sajaa sakoon
Ab ye bhi hai bahut ke tumhe yaad aa sakoon
Zauq e nigaah aur bahaaron ke darmiyaaN
Parde gire hain wo ke naa jinko uthaa sakoon
Teri haseeN fizaa me mere ai naye watan
Aisa bhi hai koi jise apnaa banaa sakooN?
Jagannath Azaad
Behzad lucknawi
ab hai Khushii Khushii me.n na Gam hai malaal me.n
ab hai Khushii Khushii me.n na Gam hai malaal me.n
duniyaa se kho gayaa huu.N tumhaare Khayaal me.n
mujh ko na apanaa hosh na duniyaa kaa hosh hai
mast hoke baiThaa huu.N tumhaare Khayaal me.n
taaro.n se puuchh lo merii rudaad-e-zindagii
raato.n ko jaagataa huu.N tumhaare Khayaal me.n
[rudaad = story]
duniyaa ko ilm kyaa hai zamaane ko kyaa Khabar
duniyaa bhulaa chukaa huu.N tumhaare Khayaal me.n
[ilm = knowledge]
duniyaa kha.Dii hai muntazir-e-naGmaa-e-alam
'Behzad' chup kha.De hai.n kisii ke Khayaal me.n
[muntazir = waiting]
UNKNOWN SHAYAR
Do din ki zindagi ka mazaa hamse poochhiye
Ik pal me ik sadi ka mazaa hamse poochhiye
Bhoole hain rafta rafta unko muddatoN me hum
KistoN me khudkushi ka mazaa hamse poochhiye
Jalte diyoN me jalte GharoN jaisi Zau kahaan
Sarkaar raushni ka mazaa hamse poochhiye
Aaghaaz e aashiqi ka mazaa aap jaaniye
Anjaam e aashiqi ka mazaa hamse poochhiye
Hansne ka shauq hamko bhi thaa aap ki tarah
Hansiye magar hansee ka mazaa hamse poochhiye
Majaz arz kertay hain...
kyaa kyaa huaa hai ham se junuu.N me.n na puuchhiye
ulajhe kabhii zamii.n se kabhii aasamaa.N se ham
UNKNOWN
Yun to hote hai mohabbat me junoo ke asaar
Par kuch log bhi deewana bana dete hain
Insha ji kuch isterah ba yan kertay hain, mulahaza ferma ain
us husn ke sache motii ko ham dekh sake.n par chhuu na sake.n
jise dekh sake.n par chhuu na sake.n vo daulat kyaa vo Khazaanaa kyaa
Ek Kaifi saaheb ka bahut hi maarmik (absolute beauty) sher gaur kijiye:
Paya bhi unko kho bhi diya chup bhi ho rahe
Ik mukhtasar si raat me sadiyaaN guzar gayi
saadagii dekh ki bose kii havas rakhataa huu.N, jin labo.n se ki mayassar nahii.n dushnaam mujhe ~Mussafi ~
vasl me.n rang u.D gayaa meraa, kyaa judaa_ii ko muu.Nh dikhaa_uu.Ngaa ~Meer Taqi Meer ~
kyaa taab kyaa majaal hamaarii ki bosaa le.n lab ko tumhaare lab se milaakar kahe baGair ~Bahadur Shah Zafar ~
Here's a 2 liner that I heard somewhere. By Gulzar, I think.
Tumhare gam ki dali utha kar zubaaN pe rakh li hai dekho main
Ye katra katra pighal rahi hai, main katra katra hi jee raha hoon.
Zara kar jor seene par ki teer-e-pursitam nikle
Jo wo nikle to dil nikle, jo dil nikle to dam nikle
-Ghalib
dikhaake jumbish-e-lab hii tamaam kar ham ko na de jo bosaa to muu.Nh se kahii.n javaab to de ~Ghalib
chaar lafzon mein kaho, jo bhi kaho usko, kab furasat sune fariyaad sab ~Javed Akhtar ~
~
Meri qismat me gam gar itna thaa
Dil bhi yaa rab kayi diye hote
I think this one sher describes Ghalib in a nutshell.
ek bose ke talab-gaar hai.n ham aur maa.Nge to gunah-gaar hai.n ham ~Zar Azeemabadi ~
ham ko miTaa sake ye zamaane me.n dam nahii.n ham se zamaanaa Khud hai zamaane se ham nahii.n ~Jigar Moradbadi ~
Khanjar se karo baat na talwaar se poochho
Mai qatl hua kaise mere yaar se poochho
Anup Jalota’s Ghazal
yaad nahii.n kyaa kyaa dekhaa thaa saare manzar bhuul gaye us kii galiyo.n se jab lauTe apanaa bhii ghar bhuul gaye ~ Anonymous
nazar me.n khaTake hai bin tere ghar kii aabaadii hameshaa rote hai.n hai.n ham dekh ke dar-o-diivaar ~Mirza Ghalib ~
lab-e-Khaamosh se izhaar-e-tamannaa chaahe baat karane ko bhii tasviir kaa lahajaa chaahe ~Muzaffar Warsi ~
diivaar khastaa-haal hai aur dar udaas hai jab se ko_ii gayaa hai meraa ghar udaas hai ~Nasir Basheer ~
phirate huye kisii kii nazar dekhate rahe dil Khuun ho rahaa thaa magar dekhate rahe ~Asar Lucknawi ~
JOY’S LINES:-
Raat Kya Dhali,
Sitaare Chale Gaye,
Gairon Se Kya Gila,
Jab Apne Chale Gaye,
Jeet Toh Sakte Thae,
Ishq Ki Baazi Hum bhi,
Unhe Jitaane, Hum Haarte Chale Gaye...
Patthar ke Khuda vahaan bhi paaye
ham chaand se aaj laut aaye
Lailaa ne nayaa janam liyaa hai
Hai Qais koi jo dil lagaaye?
-Kaifi Azmi
ko_ii aahaT ko_ii aavaaz ko_ii chaap nahii.n dil kii galiyaa.n ba.Dii sunasaan hai aae ko_ii ~Parvin Shakir ~
ARZ HAY,
kuchh ishq thaa kuchh majabuurii thii so mai.n ne jiivan vaar diyaa
mai.n kaisaa zindaa aadamii thaa ik shaKhs ne mujh ko maar diyaa
UBAID U. ALEEM
sarakatii jaaye hai ruKh se naqaab aahistaa-aahistaa nikalataa aa rahaa hai aaftaab aahistaa-aahistaa ~Ameer Minai ~
shab-e-vasl aisii khilii chaa.Ndanii vo ghabaraake bole sahar ho ga_ii ~Daag Dehlvi ~
ranj kii jab guftaguu hone lagii aap se tum tum se tuu hone lagii ~Daag Dehlvi ~
vo aaye ghar me.n hamaare Khudaa kii qudrat hai kabhii ham un ko kabhii apane ghar ko dekhate hai.n ~Mirza Ghalib ~
ko_ii aahaT ko_ii aavaaz ko_ii chaap nahii.n dil kii galiyaa.n ba.Dii sunasaan hai aae ko_ii ~Parvin Shakir ~
kisii ke jaur-o-sitam kaa to ik bahaanaa thaa hamaare dil ko bahar-haal TuuT jaanaa thaa ~Naresh Kumar Shad ~
jaur-o-sitam = Tyranny/Torment
dil kaa kyaa ho gayaa, Khudaa jaane kyo.n hai aisaa udaas kyaa jaane ~Daag Delhavi ~
vo ek raat guzar bhii ga_ii magar ab tak visaal-e-yaar kii lazzat se TuuT rahaa hai badan ~Ahmed faraz ~
dil le ke muft, kahate hai.n kuchh kaam kaa nahii.n ulTii shikaayate.n huii.n, ehasaan to gayaa ~Daag Delhavi ~
diivaar khastaa-haal hai aur dar udaas hai jab se ko_ii gayaa hai meraa ghar udaas hai ~Nasir Basheer ~
khastaa-haal = broken/weary/sorrowful
kuchh ho lekin ye merii aadat hai jab vo aaye.n to muskuraa denaa ~Josh Malihabadi ~
shab-e-vasl kyaa muKhtasar ho ga_ii ke aate hii aate sahar ho ga_ii ~Ameer Minai ~
aaj bose un ke gin gin ke liye din gine jaate the is din ke liye ~Qavi Amrohi ~
vo aaye ghar me.n hamaare Khudaa kii qudrat hai kabhii ham un ko kabhii apane ghar ko dekhate hai.n ~Mirza Ghalib ~
"Poochhte hain wo ke 'Ghalib' Kaun hai
Koi batlaaye ke ham batlaayen kya"
Shaayad mujhe nikaal ke pachhtaa rahe hoN aap
Mahfil meN is Khayaal se phir aa gayaa hooN maiN
- Abdul Hameed 'Adam'
Saare musaafiroN se ta'alluq nikal paraa
Gaadi meN ek shakhs ne akhbaar kyaa liyaa
-Aslam Kolsari
Sher kahte ho bahut Khoob tum 'Akhtar' lekin
Achchhe shaayar, yeh sunaa hai, ke jawaaN marte haiN
-Jaan Nisaar 'Akhtar'
le gayaa chhiin ke kaun aaj teraa sabr-o-qaraar beqaraarii tujhe ai dil kabhii aisii to n thii ~Bahadurshah Zafar ~
vasl kaa din aur itanaa muKhtasar din gine jaate the jis din ke liye ~Ameer Minai ~
NAZIM:
DARD-E-DIL KO MEHMAAN BANAA RAKHA HAI
TERI ULFAT KO AANKHON MEIN CHHUPA RAKHA HAI
GHAM-E- DAURAN KI LARZISH SE KADAM BEHAKTE RAHE LEKIN
PHIR BHI AI NAZIM, KOOCHE YAAR MEIN AASHIAAN BANAA RAKHA HAI
ek hangaamaa pe mauquuf hai ghar kii raunaq nauhaa-e-Gam hii sahii naGmaa-e-shaadii na sahii ~Mirza Ghalib ~
_isakaa ronaa nahii.n, kyo.n tumane kiyaa dil barbaad isakaa Gam hai ki bahut der me.n barbaad kiyaa ~Josh Malihabadi ~
ra.nj se Khuugar huaa i.nsaa.N to mit jaataa hai ra.nj mushkile.n mujh par pa.Dii itanii ke aasaa.N ho ga_ii.n ~Ghalib ~
khuugar : accustomed / habituated / used to
Ek wada karo, aab humse na bich.Doge kabhi Naaz hum sare utthaa lenge tum aao to sahi ~ Begum Mumtaz Mirza Sahiba ~
(Naaz: airs / pride / arrogance)
kand-e-lab kaa un ke bosaa be-taqalluf le liyaa gaaliyaa.N khaa_ii.n balaa se muu.Nh to miiThaa ho gayaa ~Maftoon Dehlvi ~
jaan kar sotaa tujhe vo qasa-e-paabosii meraa aur teraa Thukaraa ke sar vo muskuraanaa yaad hai ~Hasrat Mohani ~
use kahanaa ke palko.n par na Taa.Nke Khvaab kii jhaalar samandar ke kinaare ghar banaa ke kuchh nahii.n milataa ~ unknown
ab kyaa bataauu.N mai.n tere milane se kyaa milaa irfaan-e-Gam huaa mujhe dil kaa pataa milaa ~Seemab Akbarabadi ~
go havaa-e-gulsitaa.N ne mere dil kii laaj rakh lii vo naqaab Khud uThaate to kuchh aur baat hotii ~Aga Hashr ~
dekh to dil ke jaa.N se uThataa hai ye dhuaa.N saa kahaa.N se uThataa hai ~Meer Taqi Meer ~
nagarii nagarii phiraa musaafir ghar kaa rastaa bhuul gayaa kyaa hai teraa kyaa hai meraa apanaa paraayaa bhuul gayaa ~Miraji ~
umr bhar re.ngate rahane kii sazaa hai jeenaa ek do din kii aziiyat ho to ko_ii sah le ~Sahir Hoshiarpuri ~
mai.n ne ye kab kahaa ke mere haq me.n ho javaab lekin Khaamosh kyuu.N hai tuu ko_ii faisalaa to de ~Rana Sahri ~
milatii hai Khuu-e-yaar se naar iltihaab me.n kaafir huu.N gar na milatii ho raahat azaab me.n ~Ghalib ~
nahii.n yaa sanam 'Momin' ab kufr se kuchh ke Khuu ho ga_ii hai sadaa kahate kahate ~Momin Kham Momin ~
o aasmaa.N vaale kabhii to nigaah kar kab tak ye zulm sahate rahe.n Khaamoshii se ham ~Sahir Ludhianvi ~
aadatan tumne kar diye vaade aadatan hamne aitbaar kiiyaa ~Gulzar ~
zindagii yuu.N hu_ii basar tanhaa qaafilaa saath aur safar tanhaa ~Gulzar ~
chho.Daa na rashk ne ki tere ghar kaa naam luu.N har ek se puuchhataa huu.N ki jaa_uu.N kidhar ko mai.n ~Mirza Ghalib ~
yaar kii bastii me.n ek chhoTii sii ummiid-e-visaal ajanabii kii tarah phiratii hai ghabaraa_ii hu_ii ~Hafeez Jullundhary ~
dil-e-begaanaa-Khuu, duniyaa me.n teraa ko_ii hamadam ko_ii hamaraaz bhii hai ~Arsh Malsiyani ~
gar Duubanaa hii apanaa muqaddar hai to suno Duube.nge ham zaruur magar naaKhudaa ke saath ~Kaifi Azmi ~
ra.njish hii sahii dil hii dukhaane ke liye aa aa phir se mujhe chhoD ke jaane ke liye aa ~Ahmed Faraz ~
vahii hai zindagii lekin "Jigar" ye haal hai apanaa ke jaise zindagii se zindagii kam hotii jaatii hai ~Jigar Moradabadi ~
ik lafz-e-muhabbat kaa adanaa saa fasaanaa hai simaTe to dil-e-aashiq phaile to zamaanaa hai ~Jigar ~
kab se baitha huwa hoon mein jaanum, sada kaaghaz pe likh ke naam tera, Bus tera naam hi muqaamil hai,Iss se behtar, bhi nazm kyaa hogi ~ Gulzar ~
zindagii kii baat sun kar kyaa kahe.n ek tamannaa thii taqaazaa ban ga_ii ~Himayat Ali Shayar ~
Tamanna = wish/desire/yearning Taqaazaa = Want/Request
baarish hu_ii to ghar ke dariiche se lage ham chup-chaap sogavaar tumhe.n sochate rahe
Khuub gaye pardes ki apane diivaar-o-dar bhuul gaye shiish-mahal ne aisaa gheraa miTTii ke ghar bhuul gaye ~Nazeer Baqri ~
vo Gazal kii sachchhii kitaab hai use chupake chupake pa.Dhaa karo ~Bashir Badr ~
yahii hai zindagii kuchh Khaak chand ummiide.n inhii.n khilauno.n se tum bhii bahal sako to chalo ~Nida Fazli ~
ham bhii tasleem kii Khuu Daale.nge beniyaazii terii aadat hii sahii ~Ghalib ~
kah rahaa hai dariyaa se samandar kaa sukuut jis kaa jitanaa zarf hai utanaa vo Khaamosh hai ~Iqbal ~
kisii ko de ke dil ko_ii navaa sa.nj-e-fuGaa.N kyo.n ho na ho jab dil hii siine me.n to phir muu.Nh me.n zabaa.N kyo.n ho ~Ghalib ~
tujh bin ghar kitanaa suunaa thaa diivaaro.n se Dar lagataa thaa bhuulii nahii.n vo shaam-e-judaa_ii mai.n us roz bahut royaa thaa ~Nasir Kazmi ~
tanhaa_ii ko ghar se ruKhsat kar to do socho kis ke ghar jaayegii tanhaa_ii ~Zafar Gorakhpuri ~
raste me.n mil gayaa to shariik-e-safar na jaan jo chhaao.n maharbaa.N ho use apanaa ghar na jaan ~Parveen Shakir ~
mai.n is liye manaataa nahii.n vasl kii Khushii mere raqiib kii na mujhe bad_duaa lage ~Qateel Shifai ~
baaham shab-e-visaal uThaaye hai.n kyaa maze vo bhii ye kah rahe hai.n 'ilaahii sahar na ho' ~Riaz Khairabadi ~
Jis ki awaaz main salwat hoo nigahon main shikan Aaisee tasveer ke tukde nahi joda karte ~ Gulzar ~
uske paimane meiN kuch hai mere paimane meiN kuch dekh saaqi ho na jaaye tere maikhane meiN kuch ~Nawaaz Deobandi ~
dil naaumiid to nahii.n naakaam hii to hai lambii hai Gam kii shaam magar shaam hii to hai ~Faiz Ahmed Faiz ~
Khaamoshii kaa haasil bhii ek lambii sii Khaamoshii hai un kii baat sunii bhii ham ne apanii baat sunaa_ii bhii ~Gulzar ~
dil se Khayaal-e-yaar ko Taale huye to hai.n ham jaan de ke dil ko sambhaale hue to hai.n ~Fani Badayuni ~
bosaa jo ruKh kaa nahii.n dete lab kaa diijiye hai ye misl-e-phuul nahii.n panKha.Dii sahii ~Zauq ~
ye achchhaa hai ke aapis ke bharam na TuuTane paaye.n kabhii bhii dosto.n ko aazamaa kar kuchh nahiiln milataa ~ ~
umr bhar jalataa rahaa dil aur Khaamoshii ke saath shamaa ko ek raat kii soz-e-dilii pe naaz thaa ~Saqib Lucknawi ~
ab kyaa bataauu.N mai.n tere milane se kyaa milaa irfaan-e-Gam huaa mujhe dil kaa pataa milaa ~Seemab Akbarabadi ~
gar Duubanaa hii apanaa muqaddar hai to suno Duube.nge ham zaruur magar naaKhudaa ke saath ~Kaifi Azmi ~
apane Khuu-e-vafaa se Darataa huu.N aashiqii ba.ndagii na ho jaae ~Bekhud Dehlvi ~
kuuchaa-e-yaar me.n jaane kii kabhii Khuu na ga_ii Thokare.n khaa ke bhii sambhale na sambhalane vaale ~Mohammed Ali Nazir ~
dil-e-begaanaa-Khuu, duniyaa me.n teraa ko_ii hamadam ko_ii hamaraaz bhii hai ~Arsh Malsiyani ~
dil se Khayaal-e-yaar ko Taale huye to hai.n ham jaan de ke dil ko sambhaale hue to hai.n ~Fani Badayuni ~
aaye hai.n bekasii-e-ishq pe ronaa "Ghalib" kis ke ghar jaayegaa sailaab-e-balaa mere baad ~Mirza Ghalib ~
Akhtar Shirani
ai ishq ye kaisaa rog lagaa
jiite hai.n na zaalim marate hai.n
ye zulm to ai jallaad na kar
ai ishq hame.n barbaad na kar
is baar vo milaa to ajiib us kaa r.ang thaa alfaaz me.n tara.ng na lahajaa daba.ng tha ~Himayat Ali Shayar ~
ujaale apanii yaado.n ke hamaare saath rahane do na jaane kis galii me.n zindagii kii shaam ho jaaye ~Bashir Badr ~
Mumkin nahi ke bazm e tarab phir sajaa sakoon
Ab ye bhi hai bahut ke tumhe yaad aa sakoon
Zauq e nigaah aur bahaaron ke darmiyaaN
Parde gire hain wo ke naa jinko uthaa sakoon
Teri haseeN fizaa me mere ai naye watan
Aisa bhi hai koi jise apnaa banaa sakooN?
Jagannath Azaad
Behzad lucknawi
ab hai Khushii Khushii me.n na Gam hai malaal me.n
ab hai Khushii Khushii me.n na Gam hai malaal me.n
duniyaa se kho gayaa huu.N tumhaare Khayaal me.n
mujh ko na apanaa hosh na duniyaa kaa hosh hai
mast hoke baiThaa huu.N tumhaare Khayaal me.n
taaro.n se puuchh lo merii rudaad-e-zindagii
raato.n ko jaagataa huu.N tumhaare Khayaal me.n
[rudaad = story]
duniyaa ko ilm kyaa hai zamaane ko kyaa Khabar
duniyaa bhulaa chukaa huu.N tumhaare Khayaal me.n
[ilm = knowledge]
duniyaa kha.Dii hai muntazir-e-naGmaa-e-alam
'Behzad' chup kha.De hai.n kisii ke Khayaal me.n
[muntazir = waiting]
UNKNOWN SHAYAR
Do din ki zindagi ka mazaa hamse poochhiye
Ik pal me ik sadi ka mazaa hamse poochhiye
Bhoole hain rafta rafta unko muddatoN me hum
KistoN me khudkushi ka mazaa hamse poochhiye
Jalte diyoN me jalte GharoN jaisi Zau kahaan
Sarkaar raushni ka mazaa hamse poochhiye
Aaghaaz e aashiqi ka mazaa aap jaaniye
Anjaam e aashiqi ka mazaa hamse poochhiye
Hansne ka shauq hamko bhi thaa aap ki tarah
Hansiye magar hansee ka mazaa hamse poochhiye
Majaz arz kertay hain...
kyaa kyaa huaa hai ham se junuu.N me.n na puuchhiye
ulajhe kabhii zamii.n se kabhii aasamaa.N se ham
UNKNOWN
Yun to hote hai mohabbat me junoo ke asaar
Par kuch log bhi deewana bana dete hain
Insha ji kuch isterah ba yan kertay hain, mulahaza ferma ain
us husn ke sache motii ko ham dekh sake.n par chhuu na sake.n
jise dekh sake.n par chhuu na sake.n vo daulat kyaa vo Khazaanaa kyaa
Ek Kaifi saaheb ka bahut hi maarmik (absolute beauty) sher gaur kijiye:
Paya bhi unko kho bhi diya chup bhi ho rahe
Ik mukhtasar si raat me sadiyaaN guzar gayi
saadagii dekh ki bose kii havas rakhataa huu.N, jin labo.n se ki mayassar nahii.n dushnaam mujhe ~Mussafi ~
vasl me.n rang u.D gayaa meraa, kyaa judaa_ii ko muu.Nh dikhaa_uu.Ngaa ~Meer Taqi Meer ~
kyaa taab kyaa majaal hamaarii ki bosaa le.n lab ko tumhaare lab se milaakar kahe baGair ~Bahadur Shah Zafar ~
Here's a 2 liner that I heard somewhere. By Gulzar, I think.
Tumhare gam ki dali utha kar zubaaN pe rakh li hai dekho main
Ye katra katra pighal rahi hai, main katra katra hi jee raha hoon.
Zara kar jor seene par ki teer-e-pursitam nikle
Jo wo nikle to dil nikle, jo dil nikle to dam nikle
-Ghalib
dikhaake jumbish-e-lab hii tamaam kar ham ko na de jo bosaa to muu.Nh se kahii.n javaab to de ~Ghalib
chaar lafzon mein kaho, jo bhi kaho usko, kab furasat sune fariyaad sab ~Javed Akhtar ~
~
Meri qismat me gam gar itna thaa
Dil bhi yaa rab kayi diye hote
I think this one sher describes Ghalib in a nutshell.
ek bose ke talab-gaar hai.n ham aur maa.Nge to gunah-gaar hai.n ham ~Zar Azeemabadi ~
ham ko miTaa sake ye zamaane me.n dam nahii.n ham se zamaanaa Khud hai zamaane se ham nahii.n ~Jigar Moradbadi ~
Khanjar se karo baat na talwaar se poochho
Mai qatl hua kaise mere yaar se poochho
Anup Jalota’s Ghazal
yaad nahii.n kyaa kyaa dekhaa thaa saare manzar bhuul gaye us kii galiyo.n se jab lauTe apanaa bhii ghar bhuul gaye ~ Anonymous
nazar me.n khaTake hai bin tere ghar kii aabaadii hameshaa rote hai.n hai.n ham dekh ke dar-o-diivaar ~Mirza Ghalib ~
lab-e-Khaamosh se izhaar-e-tamannaa chaahe baat karane ko bhii tasviir kaa lahajaa chaahe ~Muzaffar Warsi ~
diivaar khastaa-haal hai aur dar udaas hai jab se ko_ii gayaa hai meraa ghar udaas hai ~Nasir Basheer ~
phirate huye kisii kii nazar dekhate rahe dil Khuun ho rahaa thaa magar dekhate rahe ~Asar Lucknawi ~
JOY’S LINES:-
Raat Kya Dhali,
Sitaare Chale Gaye,
Gairon Se Kya Gila,
Jab Apne Chale Gaye,
Jeet Toh Sakte Thae,
Ishq Ki Baazi Hum bhi,
Unhe Jitaane, Hum Haarte Chale Gaye...
Patthar ke Khuda vahaan bhi paaye
ham chaand se aaj laut aaye
Lailaa ne nayaa janam liyaa hai
Hai Qais koi jo dil lagaaye?
-Kaifi Azmi
ko_ii aahaT ko_ii aavaaz ko_ii chaap nahii.n dil kii galiyaa.n ba.Dii sunasaan hai aae ko_ii ~Parvin Shakir ~
ARZ HAY,
kuchh ishq thaa kuchh majabuurii thii so mai.n ne jiivan vaar diyaa
mai.n kaisaa zindaa aadamii thaa ik shaKhs ne mujh ko maar diyaa
UBAID U. ALEEM
sarakatii jaaye hai ruKh se naqaab aahistaa-aahistaa nikalataa aa rahaa hai aaftaab aahistaa-aahistaa ~Ameer Minai ~
shab-e-vasl aisii khilii chaa.Ndanii vo ghabaraake bole sahar ho ga_ii ~Daag Dehlvi ~
ranj kii jab guftaguu hone lagii aap se tum tum se tuu hone lagii ~Daag Dehlvi ~
vo aaye ghar me.n hamaare Khudaa kii qudrat hai kabhii ham un ko kabhii apane ghar ko dekhate hai.n ~Mirza Ghalib ~
ko_ii aahaT ko_ii aavaaz ko_ii chaap nahii.n dil kii galiyaa.n ba.Dii sunasaan hai aae ko_ii ~Parvin Shakir ~
kisii ke jaur-o-sitam kaa to ik bahaanaa thaa hamaare dil ko bahar-haal TuuT jaanaa thaa ~Naresh Kumar Shad ~
jaur-o-sitam = Tyranny/Torment
dil kaa kyaa ho gayaa, Khudaa jaane kyo.n hai aisaa udaas kyaa jaane ~Daag Delhavi ~
vo ek raat guzar bhii ga_ii magar ab tak visaal-e-yaar kii lazzat se TuuT rahaa hai badan ~Ahmed faraz ~
dil le ke muft, kahate hai.n kuchh kaam kaa nahii.n ulTii shikaayate.n huii.n, ehasaan to gayaa ~Daag Delhavi ~
diivaar khastaa-haal hai aur dar udaas hai jab se ko_ii gayaa hai meraa ghar udaas hai ~Nasir Basheer ~
khastaa-haal = broken/weary/sorrowful
kuchh ho lekin ye merii aadat hai jab vo aaye.n to muskuraa denaa ~Josh Malihabadi ~
shab-e-vasl kyaa muKhtasar ho ga_ii ke aate hii aate sahar ho ga_ii ~Ameer Minai ~
aaj bose un ke gin gin ke liye din gine jaate the is din ke liye ~Qavi Amrohi ~
vo aaye ghar me.n hamaare Khudaa kii qudrat hai kabhii ham un ko kabhii apane ghar ko dekhate hai.n ~Mirza Ghalib ~
"Poochhte hain wo ke 'Ghalib' Kaun hai
Koi batlaaye ke ham batlaayen kya"
Shaayad mujhe nikaal ke pachhtaa rahe hoN aap
Mahfil meN is Khayaal se phir aa gayaa hooN maiN
- Abdul Hameed 'Adam'
Saare musaafiroN se ta'alluq nikal paraa
Gaadi meN ek shakhs ne akhbaar kyaa liyaa
-Aslam Kolsari
Sher kahte ho bahut Khoob tum 'Akhtar' lekin
Achchhe shaayar, yeh sunaa hai, ke jawaaN marte haiN
-Jaan Nisaar 'Akhtar'
le gayaa chhiin ke kaun aaj teraa sabr-o-qaraar beqaraarii tujhe ai dil kabhii aisii to n thii ~Bahadurshah Zafar ~
vasl kaa din aur itanaa muKhtasar din gine jaate the jis din ke liye ~Ameer Minai ~
NAZIM:
DARD-E-DIL KO MEHMAAN BANAA RAKHA HAI
TERI ULFAT KO AANKHON MEIN CHHUPA RAKHA HAI
GHAM-E- DAURAN KI LARZISH SE KADAM BEHAKTE RAHE LEKIN
PHIR BHI AI NAZIM, KOOCHE YAAR MEIN AASHIAAN BANAA RAKHA HAI
ek hangaamaa pe mauquuf hai ghar kii raunaq nauhaa-e-Gam hii sahii naGmaa-e-shaadii na sahii ~Mirza Ghalib ~
_isakaa ronaa nahii.n, kyo.n tumane kiyaa dil barbaad isakaa Gam hai ki bahut der me.n barbaad kiyaa ~Josh Malihabadi ~
ra.nj se Khuugar huaa i.nsaa.N to mit jaataa hai ra.nj mushkile.n mujh par pa.Dii itanii ke aasaa.N ho ga_ii.n ~Ghalib ~
khuugar : accustomed / habituated / used to
Ek wada karo, aab humse na bich.Doge kabhi Naaz hum sare utthaa lenge tum aao to sahi ~ Begum Mumtaz Mirza Sahiba ~
(Naaz: airs / pride / arrogance)
kand-e-lab kaa un ke bosaa be-taqalluf le liyaa gaaliyaa.N khaa_ii.n balaa se muu.Nh to miiThaa ho gayaa ~Maftoon Dehlvi ~
jaan kar sotaa tujhe vo qasa-e-paabosii meraa aur teraa Thukaraa ke sar vo muskuraanaa yaad hai ~Hasrat Mohani ~
use kahanaa ke palko.n par na Taa.Nke Khvaab kii jhaalar samandar ke kinaare ghar banaa ke kuchh nahii.n milataa ~ unknown
ab kyaa bataauu.N mai.n tere milane se kyaa milaa irfaan-e-Gam huaa mujhe dil kaa pataa milaa ~Seemab Akbarabadi ~
go havaa-e-gulsitaa.N ne mere dil kii laaj rakh lii vo naqaab Khud uThaate to kuchh aur baat hotii ~Aga Hashr ~
dekh to dil ke jaa.N se uThataa hai ye dhuaa.N saa kahaa.N se uThataa hai ~Meer Taqi Meer ~
nagarii nagarii phiraa musaafir ghar kaa rastaa bhuul gayaa kyaa hai teraa kyaa hai meraa apanaa paraayaa bhuul gayaa ~Miraji ~
umr bhar re.ngate rahane kii sazaa hai jeenaa ek do din kii aziiyat ho to ko_ii sah le ~Sahir Hoshiarpuri ~
mai.n ne ye kab kahaa ke mere haq me.n ho javaab lekin Khaamosh kyuu.N hai tuu ko_ii faisalaa to de ~Rana Sahri ~
milatii hai Khuu-e-yaar se naar iltihaab me.n kaafir huu.N gar na milatii ho raahat azaab me.n ~Ghalib ~
nahii.n yaa sanam 'Momin' ab kufr se kuchh ke Khuu ho ga_ii hai sadaa kahate kahate ~Momin Kham Momin ~
o aasmaa.N vaale kabhii to nigaah kar kab tak ye zulm sahate rahe.n Khaamoshii se ham ~Sahir Ludhianvi ~
aadatan tumne kar diye vaade aadatan hamne aitbaar kiiyaa ~Gulzar ~
zindagii yuu.N hu_ii basar tanhaa qaafilaa saath aur safar tanhaa ~Gulzar ~
chho.Daa na rashk ne ki tere ghar kaa naam luu.N har ek se puuchhataa huu.N ki jaa_uu.N kidhar ko mai.n ~Mirza Ghalib ~
yaar kii bastii me.n ek chhoTii sii ummiid-e-visaal ajanabii kii tarah phiratii hai ghabaraa_ii hu_ii ~Hafeez Jullundhary ~
dil-e-begaanaa-Khuu, duniyaa me.n teraa ko_ii hamadam ko_ii hamaraaz bhii hai ~Arsh Malsiyani ~
gar Duubanaa hii apanaa muqaddar hai to suno Duube.nge ham zaruur magar naaKhudaa ke saath ~Kaifi Azmi ~
ra.njish hii sahii dil hii dukhaane ke liye aa aa phir se mujhe chhoD ke jaane ke liye aa ~Ahmed Faraz ~
vahii hai zindagii lekin "Jigar" ye haal hai apanaa ke jaise zindagii se zindagii kam hotii jaatii hai ~Jigar Moradabadi ~
ik lafz-e-muhabbat kaa adanaa saa fasaanaa hai simaTe to dil-e-aashiq phaile to zamaanaa hai ~Jigar ~
kab se baitha huwa hoon mein jaanum, sada kaaghaz pe likh ke naam tera, Bus tera naam hi muqaamil hai,Iss se behtar, bhi nazm kyaa hogi ~ Gulzar ~
zindagii kii baat sun kar kyaa kahe.n ek tamannaa thii taqaazaa ban ga_ii ~Himayat Ali Shayar ~
Tamanna = wish/desire/yearning Taqaazaa = Want/Request
baarish hu_ii to ghar ke dariiche se lage ham chup-chaap sogavaar tumhe.n sochate rahe
Khuub gaye pardes ki apane diivaar-o-dar bhuul gaye shiish-mahal ne aisaa gheraa miTTii ke ghar bhuul gaye ~Nazeer Baqri ~
vo Gazal kii sachchhii kitaab hai use chupake chupake pa.Dhaa karo ~Bashir Badr ~
yahii hai zindagii kuchh Khaak chand ummiide.n inhii.n khilauno.n se tum bhii bahal sako to chalo ~Nida Fazli ~
ham bhii tasleem kii Khuu Daale.nge beniyaazii terii aadat hii sahii ~Ghalib ~
kah rahaa hai dariyaa se samandar kaa sukuut jis kaa jitanaa zarf hai utanaa vo Khaamosh hai ~Iqbal ~
kisii ko de ke dil ko_ii navaa sa.nj-e-fuGaa.N kyo.n ho na ho jab dil hii siine me.n to phir muu.Nh me.n zabaa.N kyo.n ho ~Ghalib ~
tujh bin ghar kitanaa suunaa thaa diivaaro.n se Dar lagataa thaa bhuulii nahii.n vo shaam-e-judaa_ii mai.n us roz bahut royaa thaa ~Nasir Kazmi ~
tanhaa_ii ko ghar se ruKhsat kar to do socho kis ke ghar jaayegii tanhaa_ii ~Zafar Gorakhpuri ~
raste me.n mil gayaa to shariik-e-safar na jaan jo chhaao.n maharbaa.N ho use apanaa ghar na jaan ~Parveen Shakir ~
mai.n is liye manaataa nahii.n vasl kii Khushii mere raqiib kii na mujhe bad_duaa lage ~Qateel Shifai ~
baaham shab-e-visaal uThaaye hai.n kyaa maze vo bhii ye kah rahe hai.n 'ilaahii sahar na ho' ~Riaz Khairabadi ~
Jis ki awaaz main salwat hoo nigahon main shikan Aaisee tasveer ke tukde nahi joda karte ~ Gulzar ~
uske paimane meiN kuch hai mere paimane meiN kuch dekh saaqi ho na jaaye tere maikhane meiN kuch ~Nawaaz Deobandi ~
dil naaumiid to nahii.n naakaam hii to hai lambii hai Gam kii shaam magar shaam hii to hai ~Faiz Ahmed Faiz ~
Khaamoshii kaa haasil bhii ek lambii sii Khaamoshii hai un kii baat sunii bhii ham ne apanii baat sunaa_ii bhii ~Gulzar ~
dil se Khayaal-e-yaar ko Taale huye to hai.n ham jaan de ke dil ko sambhaale hue to hai.n ~Fani Badayuni ~
bosaa jo ruKh kaa nahii.n dete lab kaa diijiye hai ye misl-e-phuul nahii.n panKha.Dii sahii ~Zauq ~
ye achchhaa hai ke aapis ke bharam na TuuTane paaye.n kabhii bhii dosto.n ko aazamaa kar kuchh nahiiln milataa ~ ~
umr bhar jalataa rahaa dil aur Khaamoshii ke saath shamaa ko ek raat kii soz-e-dilii pe naaz thaa ~Saqib Lucknawi ~
ab kyaa bataauu.N mai.n tere milane se kyaa milaa irfaan-e-Gam huaa mujhe dil kaa pataa milaa ~Seemab Akbarabadi ~
gar Duubanaa hii apanaa muqaddar hai to suno Duube.nge ham zaruur magar naaKhudaa ke saath ~Kaifi Azmi ~
apane Khuu-e-vafaa se Darataa huu.N aashiqii ba.ndagii na ho jaae ~Bekhud Dehlvi ~
kuuchaa-e-yaar me.n jaane kii kabhii Khuu na ga_ii Thokare.n khaa ke bhii sambhale na sambhalane vaale ~Mohammed Ali Nazir ~
dil-e-begaanaa-Khuu, duniyaa me.n teraa ko_ii hamadam ko_ii hamaraaz bhii hai ~Arsh Malsiyani ~
dil se Khayaal-e-yaar ko Taale huye to hai.n ham jaan de ke dil ko sambhaale hue to hai.n ~Fani Badayuni ~
aaye hai.n bekasii-e-ishq pe ronaa "Ghalib" kis ke ghar jaayegaa sailaab-e-balaa mere baad ~Mirza Ghalib ~
Akhtar Shirani
ai ishq ye kaisaa rog lagaa
jiite hai.n na zaalim marate hai.n
ye zulm to ai jallaad na kar
ai ishq hame.n barbaad na kar
is baar vo milaa to ajiib us kaa r.ang thaa alfaaz me.n tara.ng na lahajaa daba.ng tha ~Himayat Ali Shayar ~
ujaale apanii yaado.n ke hamaare saath rahane do na jaane kis galii me.n zindagii kii shaam ho jaaye ~Bashir Badr ~
Desh Ratna ki Sangrahika
apane Khuu-e-vafaa se Darataa huu.N aashiqii ba.ndagii na ho jaae ~Bekhud Dehlvi ~
Mumkin nahi ke bazm e tarab phir sajaa sakoon
Ab ye bhi hai bahut ke tumhe yaad aa sakoon
Zauq e nigaah aur bahaaron ke darmiyaaN
Parde gire hain wo ke naa jinko uthaa sakoon
Teri haseeN fizaa me mere ai naye watan
Aisa bhi hai koi jise apnaa banaa sakooN?
Jagannath Azaad
Behzad lucknawi
ab hai Khushii Khushii me.n na Gam hai malaal me.n
ab hai Khushii Khushii me.n na Gam hai malaal me.n
duniyaa se kho gayaa huu.N tumhaare Khayaal me.n
mujh ko na apanaa hosh na duniyaa kaa hosh hai
mast hoke baiThaa huu.N tumhaare Khayaal me.n
taaro.n se puuchh lo merii rudaad-e-zindagii
raato.n ko jaagataa huu.N tumhaare Khayaal me.n
[rudaad = story]
duniyaa ko ilm kyaa hai zamaane ko kyaa Khabar
duniyaa bhulaa chukaa huu.N tumhaare Khayaal me.n
[ilm = knowledge]
duniyaa kha.Dii hai muntazir-e-naGmaa-e-alam
'Behzad' chup kha.De hai.n kisii ke Khayaal me.n
[muntazir = waiting]
UNKNOWN SHAYAR
Do din ki zindagi ka mazaa hamse poochhiye
Ik pal me ik sadi ka mazaa hamse poochhiye
Bhoole hain rafta rafta unko muddatoN me hum
KistoN me khudkushi ka mazaa hamse poochhiye
Jalte diyoN me jalte GharoN jaisi Zau kahaan
Sarkaar raushni ka mazaa hamse poochhiye
Aaghaaz e aashiqi ka mazaa aap jaaniye
Anjaam e aashiqi ka mazaa hamse poochhiye
Hansne ka shauq hamko bhi thaa aap ki tarah
Hansiye magar hansee ka mazaa hamse poochhiye
Majaz arz kertay hain...
kyaa kyaa huaa hai ham se junuu.N me.n na puuchhiye
ulajhe kabhii zamii.n se kabhii aasamaa.N se ham
UNKNOWN
Yun to hote hai mohabbat me junoo ke asaar
Par kuch log bhi deewana bana dete hain
Insha ji kuch isterah ba yan kertay hain, mulahaza ferma ain
us husn ke sache motii ko ham dekh sake.n par chhuu na sake.n
jise dekh sake.n par chhuu na sake.n vo daulat kyaa vo Khazaanaa kyaa
Ek Kaifi saaheb ka bahut hi maarmik (absolute beauty) sher gaur kijiye:
Paya bhi unko kho bhi diya chup bhi ho rahe
Ik mukhtasar si raat me sadiyaaN guzar gayi
saadagii dekh ki bose kii havas rakhataa huu.N, jin labo.n se ki mayassar nahii.n dushnaam mujhe ~Mussafi ~
vasl me.n rang u.D gayaa meraa, kyaa judaa_ii ko muu.Nh dikhaa_uu.Ngaa ~Meer Taqi Meer ~
kyaa taab kyaa majaal hamaarii ki bosaa le.n lab ko tumhaare lab se milaakar kahe baGair ~Bahadur Shah Zafar ~
Here's a 2 liner that I heard somewhere. By Gulzar, I think.
Tumhare gam ki dali utha kar zubaaN pe rakh li hai dekho main
Ye katra katra pighal rahi hai, main katra katra hi jee raha hoon.
Zara kar jor seene par ki teer-e-pursitam nikle
Jo wo nikle to dil nikle, jo dil nikle to dam nikle
-Ghalib
dikhaake jumbish-e-lab hii tamaam kar ham ko na de jo bosaa to muu.Nh se kahii.n javaab to de ~Ghalib
chaar lafzon mein kaho, jo bhi kaho usko, kab furasat sune fariyaad sab ~Javed Akhtar ~
~
Meri qismat me gam gar itna thaa
Dil bhi yaa rab kayi diye hote
I think this one sher describes Ghalib in a nutshell.
ek bose ke talab-gaar hai.n ham aur maa.Nge to gunah-gaar hai.n ham ~Zar Azeemabadi ~
ham ko miTaa sake ye zamaane me.n dam nahii.n ham se zamaanaa Khud hai zamaane se ham nahii.n ~Jigar Moradbadi ~
Khanjar se karo baat na talwaar se poochho
Mai qatl hua kaise mere yaar se poochho
Anup Jalota’s Ghazal
yaad nahii.n kyaa kyaa dekhaa thaa saare manzar bhuul gaye us kii galiyo.n se jab lauTe apanaa bhii ghar bhuul gaye ~ Anonymous
nazar me.n khaTake hai bin tere ghar kii aabaadii hameshaa rote hai.n hai.n ham dekh ke dar-o-diivaar ~Mirza Ghalib ~
lab-e-Khaamosh se izhaar-e-tamannaa chaahe baat karane ko bhii tasviir kaa lahajaa chaahe ~Muzaffar Warsi ~
diivaar khastaa-haal hai aur dar udaas hai jab se ko_ii gayaa hai meraa ghar udaas hai ~Nasir Basheer ~
phirate huye kisii kii nazar dekhate rahe dil Khuun ho rahaa thaa magar dekhate rahe ~Asar Lucknawi ~
JOY’S LINES:-
Raat Kya Dhali,
Sitaare Chale Gaye,
Gairon Se Kya Gila,
Jab Apne Chale Gaye,
Jeet Toh Sakte Thae,
Ishq Ki Baazi Hum bhi,
Unhe Jitaane, Hum Haarte Chale Gaye...
Patthar ke Khuda vahaan bhi paaye
ham chaand se aaj laut aaye
Lailaa ne nayaa janam liyaa hai
Hai Qais koi jo dil lagaaye?
-Kaifi Azmi
ko_ii aahaT ko_ii aavaaz ko_ii chaap nahii.n dil kii galiyaa.n ba.Dii sunasaan hai aae ko_ii ~Parvin Shakir ~
ARZ HAY,
kuchh ishq thaa kuchh majabuurii thii so mai.n ne jiivan vaar diyaa
mai.n kaisaa zindaa aadamii thaa ik shaKhs ne mujh ko maar diyaa
UBAID U. ALEEM
sarakatii jaaye hai ruKh se naqaab aahistaa-aahistaa nikalataa aa rahaa hai aaftaab aahistaa-aahistaa ~Ameer Minai ~
shab-e-vasl aisii khilii chaa.Ndanii vo ghabaraake bole sahar ho ga_ii ~Daag Dehlvi ~
ranj kii jab guftaguu hone lagii aap se tum tum se tuu hone lagii ~Daag Dehlvi ~
vo aaye ghar me.n hamaare Khudaa kii qudrat hai kabhii ham un ko kabhii apane ghar ko dekhate hai.n ~Mirza Ghalib ~
ko_ii aahaT ko_ii aavaaz ko_ii chaap nahii.n dil kii galiyaa.n ba.Dii sunasaan hai aae ko_ii ~Parvin Shakir ~
kisii ke jaur-o-sitam kaa to ik bahaanaa thaa hamaare dil ko bahar-haal TuuT jaanaa thaa ~Naresh Kumar Shad ~
jaur-o-sitam = Tyranny/Torment
dil kaa kyaa ho gayaa, Khudaa jaane kyo.n hai aisaa udaas kyaa jaane ~Daag Delhavi ~
vo ek raat guzar bhii ga_ii magar ab tak visaal-e-yaar kii lazzat se TuuT rahaa hai badan ~Ahmed faraz ~
dil le ke muft, kahate hai.n kuchh kaam kaa nahii.n ulTii shikaayate.n huii.n, ehasaan to gayaa ~Daag Delhavi ~
diivaar khastaa-haal hai aur dar udaas hai jab se ko_ii gayaa hai meraa ghar udaas hai ~Nasir Basheer ~
khastaa-haal = broken/weary/sorrowful
kuchh ho lekin ye merii aadat hai jab vo aaye.n to muskuraa denaa ~Josh Malihabadi ~
shab-e-vasl kyaa muKhtasar ho ga_ii ke aate hii aate sahar ho ga_ii ~Ameer Minai ~
aaj bose un ke gin gin ke liye din gine jaate the is din ke liye ~Qavi Amrohi ~
vo aaye ghar me.n hamaare Khudaa kii qudrat hai kabhii ham un ko kabhii apane ghar ko dekhate hai.n ~Mirza Ghalib ~
"Poochhte hain wo ke 'Ghalib' Kaun hai
Koi batlaaye ke ham batlaayen kya"
Shaayad mujhe nikaal ke pachhtaa rahe hoN aap
Mahfil meN is Khayaal se phir aa gayaa hooN maiN
- Abdul Hameed 'Adam'
Saare musaafiroN se ta'alluq nikal paraa
Gaadi meN ek shakhs ne akhbaar kyaa liyaa
-Aslam Kolsari
Sher kahte ho bahut Khoob tum 'Akhtar' lekin
Achchhe shaayar, yeh sunaa hai, ke jawaaN marte haiN
-Jaan Nisaar 'Akhtar'
le gayaa chhiin ke kaun aaj teraa sabr-o-qaraar beqaraarii tujhe ai dil kabhii aisii to n thii ~Bahadurshah Zafar ~
vasl kaa din aur itanaa muKhtasar din gine jaate the jis din ke liye ~Ameer Minai ~
NAZIM:
DARD-E-DIL KO MEHMAAN BANAA RAKHA HAI
TERI ULFAT KO AANKHON MEIN CHHUPA RAKHA HAI
GHAM-E- DAURAN KI LARZISH SE KADAM BEHAKTE RAHE LEKIN
PHIR BHI AI NAZIM, KOOCHE YAAR MEIN AASHIAAN BANAA RAKHA HAI
ek hangaamaa pe mauquuf hai ghar kii raunaq nauhaa-e-Gam hii sahii naGmaa-e-shaadii na sahii ~Mirza Ghalib ~
_isakaa ronaa nahii.n, kyo.n tumane kiyaa dil barbaad isakaa Gam hai ki bahut der me.n barbaad kiyaa ~Josh Malihabadi ~
ra.nj se Khuugar huaa i.nsaa.N to mit jaataa hai ra.nj mushkile.n mujh par pa.Dii itanii ke aasaa.N ho ga_ii.n ~Ghalib ~
khuugar : accustomed / habituated / used to
Ek wada karo, aab humse na bich.Doge kabhi Naaz hum sare utthaa lenge tum aao to sahi ~ Begum Mumtaz Mirza Sahiba ~
(Naaz: airs / pride / arrogance)
kand-e-lab kaa un ke bosaa be-taqalluf le liyaa gaaliyaa.N khaa_ii.n balaa se muu.Nh to miiThaa ho gayaa ~Maftoon Dehlvi ~
jaan kar sotaa tujhe vo qasa-e-paabosii meraa aur teraa Thukaraa ke sar vo muskuraanaa yaad hai ~Hasrat Mohani ~
use kahanaa ke palko.n par na Taa.Nke Khvaab kii jhaalar samandar ke kinaare ghar banaa ke kuchh nahii.n milataa ~ unknown
ab kyaa bataauu.N mai.n tere milane se kyaa milaa irfaan-e-Gam huaa mujhe dil kaa pataa milaa ~Seemab Akbarabadi ~
go havaa-e-gulsitaa.N ne mere dil kii laaj rakh lii vo naqaab Khud uThaate to kuchh aur baat hotii ~Aga Hashr ~
dekh to dil ke jaa.N se uThataa hai ye dhuaa.N saa kahaa.N se uThataa hai ~Meer Taqi Meer ~
nagarii nagarii phiraa musaafir ghar kaa rastaa bhuul gayaa kyaa hai teraa kyaa hai meraa apanaa paraayaa bhuul gayaa ~Miraji ~
umr bhar re.ngate rahane kii sazaa hai jeenaa ek do din kii aziiyat ho to ko_ii sah le ~Sahir Hoshiarpuri ~
mai.n ne ye kab kahaa ke mere haq me.n ho javaab lekin Khaamosh kyuu.N hai tuu ko_ii faisalaa to de ~Rana Sahri ~
milatii hai Khuu-e-yaar se naar iltihaab me.n kaafir huu.N gar na milatii ho raahat azaab me.n ~Ghalib ~
nahii.n yaa sanam 'Momin' ab kufr se kuchh ke Khuu ho ga_ii hai sadaa kahate kahate ~Momin Kham Momin ~
o aasmaa.N vaale kabhii to nigaah kar kab tak ye zulm sahate rahe.n Khaamoshii se ham ~Sahir Ludhianvi ~
aadatan tumne kar diye vaade aadatan hamne aitbaar kiiyaa ~Gulzar ~
zindagii yuu.N hu_ii basar tanhaa qaafilaa saath aur safar tanhaa ~Gulzar ~
chho.Daa na rashk ne ki tere ghar kaa naam luu.N har ek se puuchhataa huu.N ki jaa_uu.N kidhar ko mai.n ~Mirza Ghalib ~
yaar kii bastii me.n ek chhoTii sii ummiid-e-visaal ajanabii kii tarah phiratii hai ghabaraa_ii hu_ii ~Hafeez Jullundhary ~
dil-e-begaanaa-Khuu, duniyaa me.n teraa ko_ii hamadam ko_ii hamaraaz bhii hai ~Arsh Malsiyani ~
gar Duubanaa hii apanaa muqaddar hai to suno Duube.nge ham zaruur magar naaKhudaa ke saath ~Kaifi Azmi ~
ra.njish hii sahii dil hii dukhaane ke liye aa aa phir se mujhe chhoD ke jaane ke liye aa ~Ahmed Faraz ~
vahii hai zindagii lekin "Jigar" ye haal hai apanaa ke jaise zindagii se zindagii kam hotii jaatii hai ~Jigar Moradabadi ~
ik lafz-e-muhabbat kaa adanaa saa fasaanaa hai simaTe to dil-e-aashiq phaile to zamaanaa hai ~Jigar ~
kab se baitha huwa hoon mein jaanum, sada kaaghaz pe likh ke naam tera, Bus tera naam hi muqaamil hai,Iss se behtar, bhi nazm kyaa hogi ~ Gulzar ~
zindagii kii baat sun kar kyaa kahe.n ek tamannaa thii taqaazaa ban ga_ii ~Himayat Ali Shayar ~
Tamanna = wish/desire/yearning Taqaazaa = Want/Request
baarish hu_ii to ghar ke dariiche se lage ham chup-chaap sogavaar tumhe.n sochate rahe
Khuub gaye pardes ki apane diivaar-o-dar bhuul gaye shiish-mahal ne aisaa gheraa miTTii ke ghar bhuul gaye ~Nazeer Baqri ~
vo Gazal kii sachchhii kitaab hai use chupake chupake pa.Dhaa karo ~Bashir Badr ~
yahii hai zindagii kuchh Khaak chand ummiide.n inhii.n khilauno.n se tum bhii bahal sako to chalo ~Nida Fazli ~
ham bhii tasleem kii Khuu Daale.nge beniyaazii terii aadat hii sahii ~Ghalib ~
kah rahaa hai dariyaa se samandar kaa sukuut jis kaa jitanaa zarf hai utanaa vo Khaamosh hai ~Iqbal ~
kisii ko de ke dil ko_ii navaa sa.nj-e-fuGaa.N kyo.n ho na ho jab dil hii siine me.n to phir muu.Nh me.n zabaa.N kyo.n ho ~Ghalib ~
tujh bin ghar kitanaa suunaa thaa diivaaro.n se Dar lagataa thaa bhuulii nahii.n vo shaam-e-judaa_ii mai.n us roz bahut royaa thaa ~Nasir Kazmi ~
tanhaa_ii ko ghar se ruKhsat kar to do socho kis ke ghar jaayegii tanhaa_ii ~Zafar Gorakhpuri ~
raste me.n mil gayaa to shariik-e-safar na jaan jo chhaao.n maharbaa.N ho use apanaa ghar na jaan ~Parveen Shakir ~
mai.n is liye manaataa nahii.n vasl kii Khushii mere raqiib kii na mujhe bad_duaa lage ~Qateel Shifai ~
baaham shab-e-visaal uThaaye hai.n kyaa maze vo bhii ye kah rahe hai.n 'ilaahii sahar na ho' ~Riaz Khairabadi ~
Jis ki awaaz main salwat hoo nigahon main shikan Aaisee tasveer ke tukde nahi joda karte ~ Gulzar ~
uske paimane meiN kuch hai mere paimane meiN kuch dekh saaqi ho na jaaye tere maikhane meiN kuch ~Nawaaz Deobandi ~
dil naaumiid to nahii.n naakaam hii to hai lambii hai Gam kii shaam magar shaam hii to hai ~Faiz Ahmed Faiz ~
Khaamoshii kaa haasil bhii ek lambii sii Khaamoshii hai un kii baat sunii bhii ham ne apanii baat sunaa_ii bhii ~Gulzar ~
dil se Khayaal-e-yaar ko Taale huye to hai.n ham jaan de ke dil ko sambhaale hue to hai.n ~Fani Badayuni ~
bosaa jo ruKh kaa nahii.n dete lab kaa diijiye hai ye misl-e-phuul nahii.n panKha.Dii sahii ~Zauq ~
ye achchhaa hai ke aapis ke bharam na TuuTane paaye.n kabhii bhii dosto.n ko aazamaa kar kuchh nahiiln milataa ~ ~
umr bhar jalataa rahaa dil aur Khaamoshii ke saath shamaa ko ek raat kii soz-e-dilii pe naaz thaa ~Saqib Lucknawi ~
ab kyaa bataauu.N mai.n tere milane se kyaa milaa irfaan-e-Gam huaa mujhe dil kaa pataa milaa ~Seemab Akbarabadi ~
gar Duubanaa hii apanaa muqaddar hai to suno Duube.nge ham zaruur magar naaKhudaa ke saath ~Kaifi Azmi ~
apane Khuu-e-vafaa se Darataa huu.N aashiqii ba.ndagii na ho jaae ~Bekhud Dehlvi ~
kuuchaa-e-yaar me.n jaane kii kabhii Khuu na ga_ii Thokare.n khaa ke bhii sambhale na sambhalane vaale ~Mohammed Ali Nazir ~
dil-e-begaanaa-Khuu, duniyaa me.n teraa ko_ii hamadam ko_ii hamaraaz bhii hai ~Arsh Malsiyani ~
dil se Khayaal-e-yaar ko Taale huye to hai.n ham jaan de ke dil ko sambhaale hue to hai.n ~Fani Badayuni ~
aaye hai.n bekasii-e-ishq pe ronaa "Ghalib" kis ke ghar jaayegaa sailaab-e-balaa mere baad ~Mirza Ghalib ~
Akhtar Shirani
ai ishq ye kaisaa rog lagaa
jiite hai.n na zaalim marate hai.n
ye zulm to ai jallaad na kar
ai ishq hame.n barbaad na kar
is baar vo milaa to ajiib us kaa r.ang thaa alfaaz me.n tara.ng na lahajaa daba.ng tha ~Himayat Ali Shayar ~
ujaale apanii yaado.n ke hamaare saath rahane do na jaane kis galii me.n zindagii kii shaam ho jaaye ~Bashir Badr ~
Mumkin nahi ke bazm e tarab phir sajaa sakoon
Ab ye bhi hai bahut ke tumhe yaad aa sakoon
Zauq e nigaah aur bahaaron ke darmiyaaN
Parde gire hain wo ke naa jinko uthaa sakoon
Teri haseeN fizaa me mere ai naye watan
Aisa bhi hai koi jise apnaa banaa sakooN?
Jagannath Azaad
Behzad lucknawi
ab hai Khushii Khushii me.n na Gam hai malaal me.n
ab hai Khushii Khushii me.n na Gam hai malaal me.n
duniyaa se kho gayaa huu.N tumhaare Khayaal me.n
mujh ko na apanaa hosh na duniyaa kaa hosh hai
mast hoke baiThaa huu.N tumhaare Khayaal me.n
taaro.n se puuchh lo merii rudaad-e-zindagii
raato.n ko jaagataa huu.N tumhaare Khayaal me.n
[rudaad = story]
duniyaa ko ilm kyaa hai zamaane ko kyaa Khabar
duniyaa bhulaa chukaa huu.N tumhaare Khayaal me.n
[ilm = knowledge]
duniyaa kha.Dii hai muntazir-e-naGmaa-e-alam
'Behzad' chup kha.De hai.n kisii ke Khayaal me.n
[muntazir = waiting]
UNKNOWN SHAYAR
Do din ki zindagi ka mazaa hamse poochhiye
Ik pal me ik sadi ka mazaa hamse poochhiye
Bhoole hain rafta rafta unko muddatoN me hum
KistoN me khudkushi ka mazaa hamse poochhiye
Jalte diyoN me jalte GharoN jaisi Zau kahaan
Sarkaar raushni ka mazaa hamse poochhiye
Aaghaaz e aashiqi ka mazaa aap jaaniye
Anjaam e aashiqi ka mazaa hamse poochhiye
Hansne ka shauq hamko bhi thaa aap ki tarah
Hansiye magar hansee ka mazaa hamse poochhiye
Majaz arz kertay hain...
kyaa kyaa huaa hai ham se junuu.N me.n na puuchhiye
ulajhe kabhii zamii.n se kabhii aasamaa.N se ham
UNKNOWN
Yun to hote hai mohabbat me junoo ke asaar
Par kuch log bhi deewana bana dete hain
Insha ji kuch isterah ba yan kertay hain, mulahaza ferma ain
us husn ke sache motii ko ham dekh sake.n par chhuu na sake.n
jise dekh sake.n par chhuu na sake.n vo daulat kyaa vo Khazaanaa kyaa
Ek Kaifi saaheb ka bahut hi maarmik (absolute beauty) sher gaur kijiye:
Paya bhi unko kho bhi diya chup bhi ho rahe
Ik mukhtasar si raat me sadiyaaN guzar gayi
saadagii dekh ki bose kii havas rakhataa huu.N, jin labo.n se ki mayassar nahii.n dushnaam mujhe ~Mussafi ~
vasl me.n rang u.D gayaa meraa, kyaa judaa_ii ko muu.Nh dikhaa_uu.Ngaa ~Meer Taqi Meer ~
kyaa taab kyaa majaal hamaarii ki bosaa le.n lab ko tumhaare lab se milaakar kahe baGair ~Bahadur Shah Zafar ~
Here's a 2 liner that I heard somewhere. By Gulzar, I think.
Tumhare gam ki dali utha kar zubaaN pe rakh li hai dekho main
Ye katra katra pighal rahi hai, main katra katra hi jee raha hoon.
Zara kar jor seene par ki teer-e-pursitam nikle
Jo wo nikle to dil nikle, jo dil nikle to dam nikle
-Ghalib
dikhaake jumbish-e-lab hii tamaam kar ham ko na de jo bosaa to muu.Nh se kahii.n javaab to de ~Ghalib
chaar lafzon mein kaho, jo bhi kaho usko, kab furasat sune fariyaad sab ~Javed Akhtar ~
~
Meri qismat me gam gar itna thaa
Dil bhi yaa rab kayi diye hote
I think this one sher describes Ghalib in a nutshell.
ek bose ke talab-gaar hai.n ham aur maa.Nge to gunah-gaar hai.n ham ~Zar Azeemabadi ~
ham ko miTaa sake ye zamaane me.n dam nahii.n ham se zamaanaa Khud hai zamaane se ham nahii.n ~Jigar Moradbadi ~
Khanjar se karo baat na talwaar se poochho
Mai qatl hua kaise mere yaar se poochho
Anup Jalota’s Ghazal
yaad nahii.n kyaa kyaa dekhaa thaa saare manzar bhuul gaye us kii galiyo.n se jab lauTe apanaa bhii ghar bhuul gaye ~ Anonymous
nazar me.n khaTake hai bin tere ghar kii aabaadii hameshaa rote hai.n hai.n ham dekh ke dar-o-diivaar ~Mirza Ghalib ~
lab-e-Khaamosh se izhaar-e-tamannaa chaahe baat karane ko bhii tasviir kaa lahajaa chaahe ~Muzaffar Warsi ~
diivaar khastaa-haal hai aur dar udaas hai jab se ko_ii gayaa hai meraa ghar udaas hai ~Nasir Basheer ~
phirate huye kisii kii nazar dekhate rahe dil Khuun ho rahaa thaa magar dekhate rahe ~Asar Lucknawi ~
JOY’S LINES:-
Raat Kya Dhali,
Sitaare Chale Gaye,
Gairon Se Kya Gila,
Jab Apne Chale Gaye,
Jeet Toh Sakte Thae,
Ishq Ki Baazi Hum bhi,
Unhe Jitaane, Hum Haarte Chale Gaye...
Patthar ke Khuda vahaan bhi paaye
ham chaand se aaj laut aaye
Lailaa ne nayaa janam liyaa hai
Hai Qais koi jo dil lagaaye?
-Kaifi Azmi
ko_ii aahaT ko_ii aavaaz ko_ii chaap nahii.n dil kii galiyaa.n ba.Dii sunasaan hai aae ko_ii ~Parvin Shakir ~
ARZ HAY,
kuchh ishq thaa kuchh majabuurii thii so mai.n ne jiivan vaar diyaa
mai.n kaisaa zindaa aadamii thaa ik shaKhs ne mujh ko maar diyaa
UBAID U. ALEEM
sarakatii jaaye hai ruKh se naqaab aahistaa-aahistaa nikalataa aa rahaa hai aaftaab aahistaa-aahistaa ~Ameer Minai ~
shab-e-vasl aisii khilii chaa.Ndanii vo ghabaraake bole sahar ho ga_ii ~Daag Dehlvi ~
ranj kii jab guftaguu hone lagii aap se tum tum se tuu hone lagii ~Daag Dehlvi ~
vo aaye ghar me.n hamaare Khudaa kii qudrat hai kabhii ham un ko kabhii apane ghar ko dekhate hai.n ~Mirza Ghalib ~
ko_ii aahaT ko_ii aavaaz ko_ii chaap nahii.n dil kii galiyaa.n ba.Dii sunasaan hai aae ko_ii ~Parvin Shakir ~
kisii ke jaur-o-sitam kaa to ik bahaanaa thaa hamaare dil ko bahar-haal TuuT jaanaa thaa ~Naresh Kumar Shad ~
jaur-o-sitam = Tyranny/Torment
dil kaa kyaa ho gayaa, Khudaa jaane kyo.n hai aisaa udaas kyaa jaane ~Daag Delhavi ~
vo ek raat guzar bhii ga_ii magar ab tak visaal-e-yaar kii lazzat se TuuT rahaa hai badan ~Ahmed faraz ~
dil le ke muft, kahate hai.n kuchh kaam kaa nahii.n ulTii shikaayate.n huii.n, ehasaan to gayaa ~Daag Delhavi ~
diivaar khastaa-haal hai aur dar udaas hai jab se ko_ii gayaa hai meraa ghar udaas hai ~Nasir Basheer ~
khastaa-haal = broken/weary/sorrowful
kuchh ho lekin ye merii aadat hai jab vo aaye.n to muskuraa denaa ~Josh Malihabadi ~
shab-e-vasl kyaa muKhtasar ho ga_ii ke aate hii aate sahar ho ga_ii ~Ameer Minai ~
aaj bose un ke gin gin ke liye din gine jaate the is din ke liye ~Qavi Amrohi ~
vo aaye ghar me.n hamaare Khudaa kii qudrat hai kabhii ham un ko kabhii apane ghar ko dekhate hai.n ~Mirza Ghalib ~
"Poochhte hain wo ke 'Ghalib' Kaun hai
Koi batlaaye ke ham batlaayen kya"
Shaayad mujhe nikaal ke pachhtaa rahe hoN aap
Mahfil meN is Khayaal se phir aa gayaa hooN maiN
- Abdul Hameed 'Adam'
Saare musaafiroN se ta'alluq nikal paraa
Gaadi meN ek shakhs ne akhbaar kyaa liyaa
-Aslam Kolsari
Sher kahte ho bahut Khoob tum 'Akhtar' lekin
Achchhe shaayar, yeh sunaa hai, ke jawaaN marte haiN
-Jaan Nisaar 'Akhtar'
le gayaa chhiin ke kaun aaj teraa sabr-o-qaraar beqaraarii tujhe ai dil kabhii aisii to n thii ~Bahadurshah Zafar ~
vasl kaa din aur itanaa muKhtasar din gine jaate the jis din ke liye ~Ameer Minai ~
NAZIM:
DARD-E-DIL KO MEHMAAN BANAA RAKHA HAI
TERI ULFAT KO AANKHON MEIN CHHUPA RAKHA HAI
GHAM-E- DAURAN KI LARZISH SE KADAM BEHAKTE RAHE LEKIN
PHIR BHI AI NAZIM, KOOCHE YAAR MEIN AASHIAAN BANAA RAKHA HAI
ek hangaamaa pe mauquuf hai ghar kii raunaq nauhaa-e-Gam hii sahii naGmaa-e-shaadii na sahii ~Mirza Ghalib ~
_isakaa ronaa nahii.n, kyo.n tumane kiyaa dil barbaad isakaa Gam hai ki bahut der me.n barbaad kiyaa ~Josh Malihabadi ~
ra.nj se Khuugar huaa i.nsaa.N to mit jaataa hai ra.nj mushkile.n mujh par pa.Dii itanii ke aasaa.N ho ga_ii.n ~Ghalib ~
khuugar : accustomed / habituated / used to
Ek wada karo, aab humse na bich.Doge kabhi Naaz hum sare utthaa lenge tum aao to sahi ~ Begum Mumtaz Mirza Sahiba ~
(Naaz: airs / pride / arrogance)
kand-e-lab kaa un ke bosaa be-taqalluf le liyaa gaaliyaa.N khaa_ii.n balaa se muu.Nh to miiThaa ho gayaa ~Maftoon Dehlvi ~
jaan kar sotaa tujhe vo qasa-e-paabosii meraa aur teraa Thukaraa ke sar vo muskuraanaa yaad hai ~Hasrat Mohani ~
use kahanaa ke palko.n par na Taa.Nke Khvaab kii jhaalar samandar ke kinaare ghar banaa ke kuchh nahii.n milataa ~ unknown
ab kyaa bataauu.N mai.n tere milane se kyaa milaa irfaan-e-Gam huaa mujhe dil kaa pataa milaa ~Seemab Akbarabadi ~
go havaa-e-gulsitaa.N ne mere dil kii laaj rakh lii vo naqaab Khud uThaate to kuchh aur baat hotii ~Aga Hashr ~
dekh to dil ke jaa.N se uThataa hai ye dhuaa.N saa kahaa.N se uThataa hai ~Meer Taqi Meer ~
nagarii nagarii phiraa musaafir ghar kaa rastaa bhuul gayaa kyaa hai teraa kyaa hai meraa apanaa paraayaa bhuul gayaa ~Miraji ~
umr bhar re.ngate rahane kii sazaa hai jeenaa ek do din kii aziiyat ho to ko_ii sah le ~Sahir Hoshiarpuri ~
mai.n ne ye kab kahaa ke mere haq me.n ho javaab lekin Khaamosh kyuu.N hai tuu ko_ii faisalaa to de ~Rana Sahri ~
milatii hai Khuu-e-yaar se naar iltihaab me.n kaafir huu.N gar na milatii ho raahat azaab me.n ~Ghalib ~
nahii.n yaa sanam 'Momin' ab kufr se kuchh ke Khuu ho ga_ii hai sadaa kahate kahate ~Momin Kham Momin ~
o aasmaa.N vaale kabhii to nigaah kar kab tak ye zulm sahate rahe.n Khaamoshii se ham ~Sahir Ludhianvi ~
aadatan tumne kar diye vaade aadatan hamne aitbaar kiiyaa ~Gulzar ~
zindagii yuu.N hu_ii basar tanhaa qaafilaa saath aur safar tanhaa ~Gulzar ~
chho.Daa na rashk ne ki tere ghar kaa naam luu.N har ek se puuchhataa huu.N ki jaa_uu.N kidhar ko mai.n ~Mirza Ghalib ~
yaar kii bastii me.n ek chhoTii sii ummiid-e-visaal ajanabii kii tarah phiratii hai ghabaraa_ii hu_ii ~Hafeez Jullundhary ~
dil-e-begaanaa-Khuu, duniyaa me.n teraa ko_ii hamadam ko_ii hamaraaz bhii hai ~Arsh Malsiyani ~
gar Duubanaa hii apanaa muqaddar hai to suno Duube.nge ham zaruur magar naaKhudaa ke saath ~Kaifi Azmi ~
ra.njish hii sahii dil hii dukhaane ke liye aa aa phir se mujhe chhoD ke jaane ke liye aa ~Ahmed Faraz ~
vahii hai zindagii lekin "Jigar" ye haal hai apanaa ke jaise zindagii se zindagii kam hotii jaatii hai ~Jigar Moradabadi ~
ik lafz-e-muhabbat kaa adanaa saa fasaanaa hai simaTe to dil-e-aashiq phaile to zamaanaa hai ~Jigar ~
kab se baitha huwa hoon mein jaanum, sada kaaghaz pe likh ke naam tera, Bus tera naam hi muqaamil hai,Iss se behtar, bhi nazm kyaa hogi ~ Gulzar ~
zindagii kii baat sun kar kyaa kahe.n ek tamannaa thii taqaazaa ban ga_ii ~Himayat Ali Shayar ~
Tamanna = wish/desire/yearning Taqaazaa = Want/Request
baarish hu_ii to ghar ke dariiche se lage ham chup-chaap sogavaar tumhe.n sochate rahe
Khuub gaye pardes ki apane diivaar-o-dar bhuul gaye shiish-mahal ne aisaa gheraa miTTii ke ghar bhuul gaye ~Nazeer Baqri ~
vo Gazal kii sachchhii kitaab hai use chupake chupake pa.Dhaa karo ~Bashir Badr ~
yahii hai zindagii kuchh Khaak chand ummiide.n inhii.n khilauno.n se tum bhii bahal sako to chalo ~Nida Fazli ~
ham bhii tasleem kii Khuu Daale.nge beniyaazii terii aadat hii sahii ~Ghalib ~
kah rahaa hai dariyaa se samandar kaa sukuut jis kaa jitanaa zarf hai utanaa vo Khaamosh hai ~Iqbal ~
kisii ko de ke dil ko_ii navaa sa.nj-e-fuGaa.N kyo.n ho na ho jab dil hii siine me.n to phir muu.Nh me.n zabaa.N kyo.n ho ~Ghalib ~
tujh bin ghar kitanaa suunaa thaa diivaaro.n se Dar lagataa thaa bhuulii nahii.n vo shaam-e-judaa_ii mai.n us roz bahut royaa thaa ~Nasir Kazmi ~
tanhaa_ii ko ghar se ruKhsat kar to do socho kis ke ghar jaayegii tanhaa_ii ~Zafar Gorakhpuri ~
raste me.n mil gayaa to shariik-e-safar na jaan jo chhaao.n maharbaa.N ho use apanaa ghar na jaan ~Parveen Shakir ~
mai.n is liye manaataa nahii.n vasl kii Khushii mere raqiib kii na mujhe bad_duaa lage ~Qateel Shifai ~
baaham shab-e-visaal uThaaye hai.n kyaa maze vo bhii ye kah rahe hai.n 'ilaahii sahar na ho' ~Riaz Khairabadi ~
Jis ki awaaz main salwat hoo nigahon main shikan Aaisee tasveer ke tukde nahi joda karte ~ Gulzar ~
uske paimane meiN kuch hai mere paimane meiN kuch dekh saaqi ho na jaaye tere maikhane meiN kuch ~Nawaaz Deobandi ~
dil naaumiid to nahii.n naakaam hii to hai lambii hai Gam kii shaam magar shaam hii to hai ~Faiz Ahmed Faiz ~
Khaamoshii kaa haasil bhii ek lambii sii Khaamoshii hai un kii baat sunii bhii ham ne apanii baat sunaa_ii bhii ~Gulzar ~
dil se Khayaal-e-yaar ko Taale huye to hai.n ham jaan de ke dil ko sambhaale hue to hai.n ~Fani Badayuni ~
bosaa jo ruKh kaa nahii.n dete lab kaa diijiye hai ye misl-e-phuul nahii.n panKha.Dii sahii ~Zauq ~
ye achchhaa hai ke aapis ke bharam na TuuTane paaye.n kabhii bhii dosto.n ko aazamaa kar kuchh nahiiln milataa ~ ~
umr bhar jalataa rahaa dil aur Khaamoshii ke saath shamaa ko ek raat kii soz-e-dilii pe naaz thaa ~Saqib Lucknawi ~
ab kyaa bataauu.N mai.n tere milane se kyaa milaa irfaan-e-Gam huaa mujhe dil kaa pataa milaa ~Seemab Akbarabadi ~
gar Duubanaa hii apanaa muqaddar hai to suno Duube.nge ham zaruur magar naaKhudaa ke saath ~Kaifi Azmi ~
apane Khuu-e-vafaa se Darataa huu.N aashiqii ba.ndagii na ho jaae ~Bekhud Dehlvi ~
kuuchaa-e-yaar me.n jaane kii kabhii Khuu na ga_ii Thokare.n khaa ke bhii sambhale na sambhalane vaale ~Mohammed Ali Nazir ~
dil-e-begaanaa-Khuu, duniyaa me.n teraa ko_ii hamadam ko_ii hamaraaz bhii hai ~Arsh Malsiyani ~
dil se Khayaal-e-yaar ko Taale huye to hai.n ham jaan de ke dil ko sambhaale hue to hai.n ~Fani Badayuni ~
aaye hai.n bekasii-e-ishq pe ronaa "Ghalib" kis ke ghar jaayegaa sailaab-e-balaa mere baad ~Mirza Ghalib ~
Akhtar Shirani
ai ishq ye kaisaa rog lagaa
jiite hai.n na zaalim marate hai.n
ye zulm to ai jallaad na kar
ai ishq hame.n barbaad na kar
is baar vo milaa to ajiib us kaa r.ang thaa alfaaz me.n tara.ng na lahajaa daba.ng tha ~Himayat Ali Shayar ~
ujaale apanii yaado.n ke hamaare saath rahane do na jaane kis galii me.n zindagii kii shaam ho jaaye ~Bashir Badr ~
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