आखिरी ग़ज़ल

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Desh Ratna

Thursday, November 25, 2010

Desh Ratna's Collection -- Sher-o-Shayari - जिंदादिली

अगर खो गया इक निशेमन तो क्या गम,
मुकामाते - आहो - फुगाँ और भी है।
कनाअत न कर आलमे-रंगो - बू पर,
चमन और भी आशियाँ और भी हैं।
तू शाही है परवाज है काम तेरा,
तेरे सामने आसमाँ और भी है।
-मोहम्मद इकबाल

1.निशेमन - आशियाना, घोंसला, नीड़
2. मुकामात - (i) स्थान, जगह (ii) पड़ाव, मंजिल (iii) प्रतिष्ठा, इज्जत
3. फुगाँ - आर्तनाद, फरियाद, नाला 4. कनाअत - पर्दा
5. आलमे-रंगो - बू - रंग और खुशबू की दुनिया (यानी दुनिया की रंगीनियाँ)
6. शाही - बाज पक्षी, श्येन 7.परवाज - उड़ान, उड़ना

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अगर छुट गये कारवाँ से तो क्या गम,
कभी शामिले - कारवाँ भी रहे हैं।
-मुजीब

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अच्छा है दिल के पास रहे पासबाने-अक्ल,
लेकिन कभी-कभी इसे तन्हा भी छोड़ दें।
-मोहम्मद इकबाल

1. पासबाने - द्वारपाल, प्रहरी

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अपनी तबाहियों का मुझे कोई गम नहीं,
तुमने किसी के साथ मुहब्बत निभा तो दी।
-साहिर लुधियानवी

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अभी आस टूटी नहीं है खुशी की,
अभी गम उठाने को जी चाहता है।
तबस्सुम हो जिसमें निहाँ जिन्दगी का,
वह आंसू बहाने को जी चाहता है।
-'अदीब' मालीगाँवी

1.तबस्सुम - मुस्कान, मुस्कुराहट 2.निहाँ - छुपा हुआ।

असीरों के हक में यही फैसला है,
कफस को समझते रहें आशियाना।
-दिल शाहजहांपुरी

1.असीर - बंदी, कैदी 2.कफस - पिंजड़ा, कैद
3. आशियाना - घोंसला, नीड़

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आज तारीकिए-माहौल से दम घुटता है,
कल खुदा चाहेगा 'तालिब' तो सहर भी होगी।
-तालिब देहलवी

1.तारीकी- अंधकार, अंधेरा, धुंधलापन 2. सहर - सुबह, सबेरा

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आता है जज्बे-दिल को यह अंदाजे-मैकशी,
रिन्दों में रिन्द भी रहें,दामन भी तर न हो।
-जोश मल्सियानी

1.जज्बे-दिल - दिल की कशिश 2. अंदाजे-मैकशी - शराब पीने का अंदाज 3.रिन्द - शराबी

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आदमी को सिर्फ वहम है, पास उसके ही इतना गम है,
पूछो हंसते हुए चेहरों से, आंख भीतर से कितनी नम है।

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इक तबस्सुम हजार शिकवों का,
कितना प्यारा जवाब होता है।

1.तबस्सुम - मुस्कान, मुस्कुराहट

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इक न इक जुल्मत से जब वाबस्ता रहना है 'जोश',
जिन्दगी पर साया - ए -जुल्फे-परीशाँ क्यों न हो।
-जोश मलीहाबादी

1.जुल्मत - अंधियारा, अंधेरा, अंधकार, तिमिर 2. वाबस्ता - जुड़ा रहना 3. साया-ए-जुल्फे-परीशाँ - बिखरी जुल्फों का साया

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इक नई बुनियाद डालेंगे तजस्सुम की 'शफा',
हर गुबारे-कारवाँ में कारवाँ ढूंढ़ेंगे हम।
-शफा ग्वालियरी

1.तजस्सुम - खोज, तलाश 2. गुबार - धूल, रज, गर्द।

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इन बेनियाजियों पै दिल है रहीने-शौक,
क्या जाने इसको क्या हो, जो परवा करे कोई।
-त्रिलोकचन्द महरूम

1.बेनियाजी- उपेक्षा, अनदेखी, बेरूखी
2. रहीने-शौक - उत्साहित, लालायित

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इन्हीं गम की घटाओं से खुशी का चाँद निकलेगा,
अंधेरी रात के पर्दों में दिन की रौशनी भी है।

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इन्हीं जर्रों से कल होंगे नये कुछ कारवाँ पैदा,
जो जर्रे आज उड़ते हैं गुबारे-कारवाँ होकर।
-'शफक' टौंकी

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इशरतकदे को खाना-ए-वीरां बनायेंगे,
छोटे से अपने घर को बियाबाँ बनायेंगे।
-मिर्जा गालिब

1. इशरतकदा - आनन्द महल, रंगभवन
, रंगशाला, रंगमहल 2. खाना-ए-वीरां - वीरान घर
3. बियाबाँ - जंगल, कानन

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इशरते-सोहबते-खूबाँ ही गनीमत समझो,
न हुई 'गालिब' अगर उम्रे-तबीई न सही।
-मिर्जा गालिब

1. इशरते-सोहबते-खूबाँ - हसीनों की सोहबत का आनन्द
2.तबीई - प्राकृतिक

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उजाला तो हुआ कुछ देर को सहने-गुलिस्ताँ में,
बला से फूँक डाला बिजलियों ने आशियाँ मेरा।
-मिर्जा गालिब

1.सहन - आँगन
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उनको देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वह समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल को खुश रखने को 'गालिब' ये ख्यालअच्छा है।
-मिर्जा गालिब

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उनपै हँसिये शौक से जो माइले-फरियाद है,
उनसे डरिये जो सितम पर मुस्कुराकर रह गये।
-'असर' लखनवी

1.माइल - आसक्त, आशिक, प्रवृत्त, झुकाव रखने वाला आमादा
2. फरियाद - (i) सहायता के लिए पुकार, दुहाई (ii) शिकायत, परिवाद
(iii) आर्तनाद, दुख की आवाज (iv) नालिश, न्याय याचना।
3. सितम - जुल्म, अत्याचार

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उम्र भर रेंगते रहने से तो बेहतर है,
एक लमहा जो तेरी रूह में वुसअत भर दे।
-'साहिर' लुधियानवी

1.वुसअत - (i) शक्ति, ताकत, सामर्थ्य (ii) उदारता (iii) विस्तार

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उम्र फानी है तो फिर मौत से क्या डरना,
इक न इक रोज यह हंगामा हुआ रखा है।
-मिर्जा 'गालिब'

1.फानी - नश्वर, नाशवान, मिट जाने वाला, न रहने वाला।
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उस अश्क की तासीर से अल्लाह बचाये,
जो अश्क आंखों में रहे और न बरसे।

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एक हंगामे पै मौकूफ है घर की रौनक,
नौहा-ए-गम ही सही, नग्मा-ए-शादी न सही।
-मिर्जा गालिब

1.मौकूफ - आधारित, निर्भर 2. नौहा-ए-गम - गमी का शोक, गमी में रोना-पीटना। 3. शादी - (i) हर्ष, आनन्द (ii) विवाह, व्याह

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एक हँसती हुई परेशानी,
वाह क्या जिन्दगी हमारी है।

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एक लमहा भी मसर्रत का बहुत होता है,
लोग जीने का सलीका ही कहाँ रखते हैं।

1. मसर्रत - आनन्द, हर्ष, खुशी

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एहतिरामे-खिजाँ करो यारों,
यह नवेदे-बहार होती है।
-अब्दुल हमीद 'अदम'

1.एहतिरामे-खिजाँ - पतझड़ ऋतु का स्वागत 2. नवेदे-बहार - बहार के आने की शुभ सूचना, बहार के आगमन की खुशखबरी

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ऐ गमे-दुनिया न हो नाराज,
मुझको आदत है मुस्कुराने की।
-अब्दुल हमीद अदम

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ऐ शम्अ तेरी उम्र तवाई है एक रात,
रोकर गुजारा दे इसे, या हँसकर गुजार दे।
-अब्राहम जौक

1. तवाई - तवील, लंबी

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ऐ दिल जो हो सके तो लुत्फे-गम उठा ले,
तन्हाइयों में रो ले, महफिल में मुस्कुरा ले।
जिस दिन यह हाथ फैले अहले-करम के आगे,
ऐ काश उसके पहले हमको खुदा उठा ले।
-'शमीम' जयपुरी

1. अहले-करम - मेहरबानी करने वाले

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ऐ मौत आ के हमको खामोश तो कर गई तू,
मगर सदियों दिलों के अंदर, हम गूंजते रहेंगे।
-फिराक गोरखपुरी

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ऐसा लगता है, हर इम्तिहाँ के लिए,
किसी ने जिन्दगी को हमारा पता दे दिया है।

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कट गई यह बहरे-गमे मौजों से हँसते-खेलते,
बहते-बहते देख आखिर आ लगे साहिल से हम।
- फिराक गोरखपुरी

1.बहरे-गमे - गमों का सागर
2. मौज - लहर, तरंग 3. साहिल - तट, किनारा

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कफस में खींच ले जाये मुकद्दर या नशेमन में,
हमें परवाजे-मतलब है, हवा कोई भी चलती हो।
-सीमाब अकबराबादी

1.नशेमन - आशियाना, घोंसला, नीड़ 2. परवाज - उड़ान

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कभी शाखे-सब्जा-ओ- बर्ग पर, कभी गुंचा-ओ-गुलो -खार पर,
मैं चमन में चाहे जहाँ रहूँ, मुझे हक है फस्ले - बहार पर।
-जिगर मुरादाबादी

1.शाखे-सब्जा - हरियाली से भरी टहनी 2. बर्ग -पत्ता, पत्ती 3.गुंचा - कली 4.फस्ले - बहार - बसन्त ऋतु, बहार का मौसम

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कर्ज की पीते थे मय, लेकिन समझते थे कि हाँ,
रंग लायेगी हमारी फाकामस्ती एक दिन।
-मिर्जा गालिब

1.मय - शराब, मदिरा
2. फाकामस्ती - फाकों (निराहार, उपवास, अनशन) में बसर करना।

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कल जो अपने थे अब पराये हे, क्या सितम आसमाँ ने ढाये है,
दिल दुखा होंठ मुस्कराये है, हमने ऐसे भी गम उठाये हैं।
-'बेताब' अलीपुरी

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कहाँ दूर हट के जायें, हम दिल की सरजमीं से,
दोनों जहां की सैरें, हासिल है सब यहीं से।
-जिगर मुरादाबादी

1.सरजमीं - (i) पृथ्वी, जमीन (ii) देश, मुल्क

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कांटों से घिरा रहता है चारों तरफ से फूल,
फिर भी खिला ही रहता है, क्या खुशमजाज है।

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कारगाहे-हयात में ऐ दोस्त यह हकीकत मुझे नजर आई,
हर उजाले में तीरगी देखी, हर अंधेरे में रौशनी पाई।
-जिगर मुरादाबादी

1.कारगाह - कार्यालय, काम करने का स्थान 2. हयात - जिन्दगी 3.तीरगी - अंधेरा, अंधकार

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