आखिरी ग़ज़ल

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Desh Ratna

Monday, November 15, 2010

देश रत्न कि संग्रहिका... कुछ चुनिन्दा शेर.. इन्सानियत (Humanity)

कितने कांटों की बद्दुआ ली है
चन्द कलियों की जिन्दगी के लिए।
-शहीद फातिमी

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किसी चमन में बस इस खौफ से न गुजर हुआ,
किसी कली पै न भूले से पांव रख दूं।
-नदीम कासिमी

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कीजिए और कोई जुल्म अग जिद है यही,
लीजिए और मेरे लब पै दुआएं आई।
-जिगर मुरादाबादी

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कुछ और तो नहीं मेरे गरीब दामन में,
अगर कबूल हो तो जिन्दगी दे दूँ।

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जिस गम से तस्कीं मिलती हो, उस गम का मुदावा कौन करे,
जिस दर्द में लज्जत हो पिन्हा, उस दर्द का दरमाँ क्या होगा।
-जगन्नाथ आजाद

1.तस्कीं - (i) पीड़ा और दर्द में कमी, आराम (ii) संतोष, इत्मीनान 2.मुदावा - दवा,इलाज 3.लज्जत - आनन्द, लुत्फ 4.पिन्हा - छुपा हुआ 5.दरमाँ - उपचार, चिकित्सा, इलाज

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जो गमे-हबीब से दूर थे, वो खुद अपनी आग में जल गये,
जो गमे-हबीब को पा गये तो गमों से हंस के निकल गये।
-शायर लखनवी

1.गमे-हबीब – दोस्त या मित्र का ग़म


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तुम अपना रंजोगम अपनी परीशानी मुझे दे दो,
मुझे अपनी कसम, यह दुख, यह हैरानी मुझे दे दो।
मैं देखूं तो सही, यह दुनिया तुझे कैसे सतात है,
कोई दिन के लिये तुम अपनी निगहबानी मुझे दे दो।
ये माना मैं किसी काबिल नहीं इन निगाहों में,
बुरा क्या है अगर इस दिल की वीरानी मुझे दे दो।
-साहिर लुधियानवी

1. निगहबानी - देखरेख

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तेरी हमदर्द नजरों से मिला ऐसा सुकूं मुझको,
मैं ऐसा सुकूं मरकर भी शायद पा नहीं सकता।
-जाँनिसार अख्तर

1. हमदर्द - दुख-दर्द बांटने वाली या वाला

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दुश्मन भी हो तो दोस्ती से पेश आये हम,
बेगानगी से अपना नहीं आश्ना मिजाज।
-आतिश

1.बेगानगी - (i) परायापन (ii) अनजानापन, ज्ञान का न होना, बेइल्मी 2.आश्ना - परिचित, वाकिफ

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दूसरों पैं जब तबसिरा कीजिए,
सामने आइना रख लिया कीजिए।

1. तबसिरा - आलोचना

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मेरे गुनाहों पर करें तब्सिरा लेकिन,
सिर्फ मैं ही तो गुनहगार नहीं।
-सीमाब अकबराबादी

1.तब्सिरा - आलोचना

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बेचैनियाँ समेटकर सारे जहान की,
जब कुछ न बन सका तो मेरा दिल बना दिया।

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मैं परीशाँ था, परीशाँ हूँ, नई बात नहीं,
आज वो भी है परीशान, खुदा खैर करे।
-उमर अंसारी

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अंधेरे माँगने आये थे रौशनी की भीख,
हम अपना घर न जलाते तो क्या करते?

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अपना दर्दे-दिल समझने की यहाँ फुर्सत किसे,
हम तो औरों का तड़पना देखकर तड़पा किये।
-आनन्द नारायण 'मुल्ला'

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अपनी फिक्र न कुछ करेंप्रभू-प्रेम के दास,
सुई नंगी खुद रहे, सबके सिये लिबास।

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आदमीयत और शै है, इल्म है कुछ और चीज,
कितना तोते को रटाया, पर वह हैवां ही रहा।

1. हैवां - जानवर, पशु, चौपाया

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इलाही उनके हिस्से का भी गम मुझको अता कर दे,
कि उन मासूम आंखों में नमी देखी नहीं जाती।

1. अता - (i) प्रदान, दान (ii) पुरस्कार

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इश्क के रूतबे के आगे आस्मां भी पस्त है,
सर झुकाया है फरिश्तों ने बशर के सामने।
-'नसीम'

1.पस्त - (i) नीचा (ii) लघु, छोटा (iii) अधम, नीच,कमीना
2. बशर - मनुष्य, मानव, आदमी

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उनको इन्साँ मत समझ, हो सरकशी जिनमें 'जफर'
खाकसारी के लिये है खाक से इन्साँ बना।
-बहादुर शाह 'जफर'

1.सरकशी - (i) उद्दंडता, उज्जड़पन, अशिष्टता (ii) अवज्ञा, हुक्मउदूली (iii) विद्रोह, बगावत 2. खाकसारी - विनम्रता 3. खाक - (i) धूल, रज, गुबार, गर्द (ii)मिट्टी (iii) भूमि, जमीन




उम्मीदे सुलह क्या हो किसी हकपरस्त से,
पीछे वो क्या हटेगा जो हद से बढ़ा न हो।
-यगाना चंगेजी

1. हकपरस्त - सत्यनिष्ट, सत्य का पुजारी, धर्मात्मा

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एक दिल में गम जमाने भर का क्यो भर दिया,
खू-ए-हमदर्दी ने कूजे मे समन्दर भर दिया।

1.खू - स्वभाव, आदत, फितरत 2. कूजा - मिट्टी का सकोरा

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करूँ मैं दुश्मनी किससे कोई दुश्मन भी हो अपना,
मुहब्ब्त ने नहीं दिल में जगह छोड़ी अदावत की।

1.अदावत - दुश्मनी, शत्रुता

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कसरते-गम में लुत्फे-गमख्वारी, सागरे-मय का काम देती है,
वक्त पर इक लफ्जे-हमदर्दी, इब्ने-मरियम का काम देता है।
-अब्दुल हमीद 'अदम'

1.कसरत - प्राचुर्य, बाहुल्य, अधिकता 2. लुत्फ - (i)आनन्द, मजा (ii) करूणा, तरस (iii) दया, रहम, अनुकम्पा, मेहरबानी
3.सागरे-मय - शराब का याला 4.गमख्वारी – हमदर्दी
5.इब्ने-मरियम - मरियम का पुत्र हजरत ईसा, ईसा मसीह जो ईसाई धर्म के संस्थापक थे और जो फूंक से मुर्दों को जिला देते थे।

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कितने कांटों की बददुआ ली है,
चन्द कलियों की जिन्दगी के लिए।

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कितने हसीन लोग थे जो मिलकर एक बार,
आंखों में जज्ब हो गये, दिल में समा गये।
-अब्दुल हमीद 'अदम'

1.जज्ब - (i) आत्मसात, एक में समाया हुआ (ii) आकर्षण, कशिश

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किसी का रंज देखूँ यह नहीं होता मेरे दिल से,
नजर सैयाद कि झपके तो कुछ कह दूँ अनादिल से।

1.सैयाद - बहेलिया, चिड़िमार, आखेटक, शिकारी
2. अनादिल - अंदलीब का बहुवचन, बुलबुले

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किसी के काम न आए तो आदमी क्या है,
जो अपनी ही फिक्र में गुजरे वह जिन्दगी क्या है?
-'असर' लखनवी

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कुछ मेरे बाद और भी आयेंगे काफिले वाले,
कांटे यहाँ रास्ते से हटालूँ तो चैन लूं।
-'तसव्वर'

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कुछ लोगों से जब तक मुलाकात न हुई थी,
मैं भी यह समझा था, खुदा सबसे बड़ा है।

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कोई हद ही नहीं शायद मुहब्बत के फसाने की,
सुनाता जा रहा है, जिसको जितना याद होता है।

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खाकसारी का है गाफिल बहुत ऊँचा मर्तबा,
यह जमीं वह है जिसमें आसमां कोई नहीं।
-'अलम' मुजफ्फरनगरी

1.खाकसारी - विनम्रता 2.गाफिल - असावधान,बेखबर
3. मर्तबा - पद,दर्ज़ा

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खिज्रे-मंजिल से कम नहीं ऐ दोस्त,
एक हमदर्द अजनबी का खुलूस।
-रविश सिद्दकी

1.खिज्रे-मंजिल - राह दिखने वाला2. खुलूस - सच्चा प्यार

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खुद ही सरशारे-मये-उल्फत नहीं होना 'असर',
इससे भर-भर कर दिलों के जाम छलकाना भी है।
-'असर' लखनवी

1.सरशारे-मये-उल्फत - मोहब्बत की मदिरा से लबालब या परिपूर्ण

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खूने-दिल जाया न हो मुझको तो इतनी फिक्र है,
अपने काम आया तो क्या, गैरों के काम आया तो क्या?
-आनन्द नारायण 'मुल्ला'

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गुलों ने खारों के छेड़ने पर सिवा खामोशी के दम न मारा,
शरीफ उलझें अगर किसी से तो फिर शराफत कहाँ रहेगी।
-'शाद' अजीमाबादी

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घर से तो बहुत दूर है मंदिर का रास्ता,
आओ किसी रोते हुए चेहरे को हसाएं।

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'जफर' आदमी उसको न जानियेगा,
हो वो कैसा भी साहिबो-फहमो-जका।
जिसे ऐश में यादे-खुदा न रहा,
जिसे तैश में खौफे-खुदा न रहा।
-'जफर'.

1.साहिबो-फहमो-जका - बुद्धि और विवेक वाला, अत्यन्त बुद्धिमान
2. तैश - क्रोध, कोप, गुस्सा

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जब तक गमे-इन्साँ से 'जिगर' इन्साँ का दिल मामूर नहीं,
जन्नत ही सही दुनिया लेकिन जन्नत से जहन्नुम दूर नहीं।
-'जिगर' मुरादाबादी

1.मामूर - आबाद, भराहुआ, बसा हुआ 2. जन्नत - स्वर्ग, बहिश्त 3.जहन्नुम - नरक, दोजख, बहुत ही कष्ट और दुख की जगह

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तू जिसे जर्रा समझकर कर रहा है पायमाल,
देख उस जर्रे के सीने में कहीं दुनिया न हो।
-'शफा' ग्वालियरी

1. पायमाल - (i) पाँव तले रौंदा हुआ, पद-दलित(ii)दुर्दशाग्रस्त, मुसीबतजदा 2. जर्रा - (i) कण, बहुतहीबारीक रेज़ा (ii) अति तुच्छ, बहुत ही हकीर

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