आखिरी ग़ज़ल

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Desh Ratna

Monday, August 16, 2010

तितली sher


गुल से लिपटी हुई तितली को उड़ाकर देखो,
आंधियों तुमने दरख़्तों को गिराया होगा -


शर्मों हया से उनकी पलकों का झुकना इस तरह ''शौक''
जैसे कोई फूल झुक रहा हो एक तितली के बोझ से..

बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं
किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये .

फूलों से आगे उड़ ना सके हम
हमको मिले हैं तितली के पर
फ़कत इल्मी बातें ज़रूरी नही
कभी मासूम की ग़ज़लें भी पढ़

तितली देख पकड़ने को दिल इक बार मचलता है
उम्र कोई भी हो जाए हम सब में बचपन होता है

फूलों मे अब क्या कमी आ गयी है
काँटों पे तितली उतरने लगी है

फूल तितली रंग खुशबू जल हवा धरती गगन
सब दिया रब ने नहीं पर हम झुके आभार से

जो दिया था आपने, लौटा रहा है ये वही
किसलिए फिर कर रहे इतना गिला संसार से

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