आखिरी ग़ज़ल

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Desh Ratna

Thursday, August 12, 2010

देश रत्न की संग्राहिका 2


नये-नये रिश्तों में नई-नई सी महक साथ है
अब कौन कितनी देर महके, ये वक्त की बात है।
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दरमियाँ दो दिलों के हजारों बंदिशें हैं
किस-किस का नाम लें, किस-किस को छोड़ दें।
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मैं खैफजदा हूँ कहीं वो खुदा न बन जाए
तमाम उम्र करूं इबादत, वो नजर न आए।
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ये कोई चराग नहीं जो जल के बुझ जाएं बार-बार
ये मेरा यार चाँद है, इसकी रौनक के क्या कहने।
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माँगो तो उस रब से माँगो जो सबका दाता है
इंसानों की बात न करिए, जो नंगे बदन आता है
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नकाब के दम पे, वो चेहरा छुपाए रखा है
गुनाहगार खुद को रहनुमा बनाए रखा है
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मुझपर तू इतना हक़ न जता
कि मुझको मुझसे जुदा कर दे।
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