आखिरी ग़ज़ल

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Desh Ratna

Tuesday, August 17, 2010

सुना है:अहमद फ़राज़

सुना है:अहमद फ़राज़


अहमद फ़राज़ नए दौर के उर्दू शायरों में मुझे सबसे अच्छे लगते हैं| क्यों? इसका जवाब ये ग़ज़ल पढ़ के ही मिल जाएगा| बताने की जरूरत नहीं. ये ग़ज़ल यू-ट्यूब पर खुद उनकी जुबानी भी सुन सकते हैं|


सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं

सुना है रब्त है उसको ख़राब हालों से
सो अपने आप को बरबाद करके देखते हैं

सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी
सो हम भी उसकी गली से गुज़र कर देखते हैं

सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़
सो हम भी मोजज़े अपने हुनर के देखते हैं

सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं

सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर कर देखते हैं

सुना है हश्र हैं उसकी ग़ज़ाल सी आँखें
सुना है उस को हिरन दश्त भर के देखते हैं

सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं
सुना है रात को जुग्नू ठहर के देखते हैं

सुना है रात से बढ़ कर हैं काकुलें उसकी
सुना है शाम को साये गुज़र के देखते हैं

सुना है उसकी सियाह चश्मगी क़यामत है
सो उसको सुरमाफ़रोश आह भर के देखते हैं

सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं
सो हम बहार पर इल्ज़ाम धर के देखते हैं

सुना है आईना तमसाल है जबीं उसकी
जो सादा दिल हैं उसे बन सँवर के देखते हैं

सुना है जब से हमाइल हैं उसकी गर्दन में
मिज़ाज और ही लाल-ओ-गौहर के देखते हैं

सुना है चश्म-ए-तसव्वुर से दश्त-ए-इम्काँ में
पलंग ज़ाविए उसकी कमर के देखते हैं

सुना है उसके बदन के तराश ऐसे हैं
के फूल अपनी क़बायेँ कतर के देखते हैं

वो सर-ओ-कद है मगर बे-गुल-ए-मुराद नहीं
के उस शजर पे शगूफ़े समर के देखते हैं

बस एक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल का
सो रहर्वान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं

सुना है उसके शबिस्तान से मुत्तसिल है बहिश्त
मकीन उधर के भी जलवे इधर के देखते हैं

रुके तो गर्दिशें उसका तवाफ़ करती हैं
चले तो उसको ज़माने ठहर के देखते हैं

किसे नसीब के बे-पैरहन उसे देखे
कभी-कभी दर-ओ-दीवार घर के देखते हैं

कहानियाँ हीं सही सब मुबालग़े ही सही
अगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं

अब उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जायेँ
फ़राज़ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं

3 comments:

  1. स्वागत है ब्लॉग जगत की इस सरस दुनिया में........ हैं

    अब उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जायेँ
    फ़राज़ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं
    कहानियाँ हीं सही सब मुबालग़े ही सही
    अगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं

    अब उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जायेँ
    फ़राज़ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं

    फराज़ साहिब की हर गज़ल कमाल होती है इस जानीमानी गज़ल के सभी अश्यार भी सीधा दिल तक उतरते हैं....!
    मुबारक हो इस सफल कदम के लिए...!

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  2. ya he is great shayer....I loved this ....

    mujhe to ye itni pasad aaye ki maine ise apne blog pe bhi post kar diya...
    aasha hai aap bura nai manenge...

    maksad sirf itna ki ise adhik se adhik log padh sake


    thanks for this beautiful gazal....

    Anand

    www.Kavyalok.com

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